खबरी -- मुझे बताइए की भारतीय जीवन में बिजली बिल का क्या महत्त्व है।
गप्पी -- अगर बिजली बिल की महिमा का पूरा वर्णन किआ जाये तो उसे उतनी ही जगह की जरूरत पड़ेगी जितनी भगवान की महिमा लिखने के लिए पड़ती। बिजली बिल ऐसा बिल है जिसके आने का समय होने पर कई लोगों को मियादी बुखार आने लगता है। दूसरी बड़ी बात ये है की बिल की रकम का बिजली के खर्च से कोई संबंध नही होता। आपने बिजली कितनी ही क्यों ना खर्च की हो बिल कितना भी आ सकता है। तीसरी बात ये है की आप बिजली खर्च करें तो भी ये जरूरी नही है की बिल जरूर आये। बहुत से लोग सालों से बिजली खर्च कर रहे हैं लेकिन उनका बिल कभी नही आता। चौथी बात ये है की सबको बिल भरना जरूरी नही होता। उनका करोड़ों का बिल बाकि रहता है और वो कभी नही भरते। इन बिलों को हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिखा कर हमारी खुशहाली का यकीन दिलाते हैं। हमारे यहां तो ऐसे भी हजारों उदाहरण हैं जहां बिजली का खम्बा भी नही है लेकिन बिल आ जाता है।
बिजली बिल के बारे में जो दूसरी अफवाह देश में फैलाई गई है वो ये है की बिल मीटर के हिसाब से आता है। बहुत से लोग इस पर विश्वास भी करने लगे हैं। जबकि सच्चाई ये है की ना तो मीटर का बिजली के खर्च से कोई संबन्ध होता है और ना बिल से। मेरे एक पड़ौसी को शक था की उसका मीटर तेज चलता है इसलिए उसका बिल ज्यादा आता है। उसने इसके खिलाफ शिकायत की लेकिन कोई कार्यवाही नही हुई। क्योंकि बिजली विभाग तो पहले से जानता है की बिल का मीटर से कोई संबंध नही है। पड़ौसी भी पक्के उस्ताद थे। वो हररोज किसी ना किसी अधिकारी से मिलने लगे। मामला तूल पकड़ गया तो एक लोकल अख़बार छाप दी। अख़बार केवल वही खबर छापते हैं जो पूरे शहर में फ़ैल चुकी हो। अधिकारी मीटर टेस्ट करने की मशीन के साथ पड़ौसी के घर पर पहुंचे। मशीन लगाई, टेस्ट किया मीटर ठीक निकला हमेशा की तरह। पास में खड़ा एक लड़का मेरे पड़ौसी के कान में धीरे से बोला ," अंकल, मुझे तो पहले से ही मालूम था की मीटर ठीक निकलेगा। "
" कैसे ?" पड़ौसी ने पूछा।
" क्योंकि ये मशीन भी उसी कम्पनी ने बनाई है जिसने मीटर बनाया है। " लड़के ने रहस्योद्घाटन किया।
मेरे पड़ौसी ने अधिकारी को मशीन चेक करने के लिए कहा।
' तुम्हारे बाप का राज है न। " अधिकारी ने पूरी विनम्रता से उत्तर दिया। विनम्रता में हमारे अधिकारीयों का कोई मुकाबला नही कर सकता। उन्हें ट्रेनिग दी जाती है जनता से विनम्रता से बात करने की। अगर कोई पुलिस वाला केवल गाली देता है और थप्पड़ नही मारता तो उसे विनम्रता माना जाता है।
खैर, तुमने पिछले दिनों देखा नही की तीन दिन तक सारी राजनीती बिजली बिल के चारों तरफ घूम रही थी। एक RTI के कार्यकर्ता ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के घर का बिजली का बिल मीडिया के सामने रख दिया। दो महीने का बिल 90000 रूपये था। बड़ा हो हल्ला हुआ। दूसरी पार्टिओं के नेताओं ने छाती पीट पीट कर जनता के पैसे की बर्बादी के लिए शोक मनाया। मुख्यमंत्री की पार्टी के प्रवक्ता ने कहा की बिल केवल घर का नही है उसमे दफ्तर का बिल भी शामिल है। आलोचना करने वाले कैमरे के सामने आँसू बहा रहे थे और कैमरा बंद होते ही खी खी करके हंस रहे थे। धन्य है हमारी राजनीती जो गंभीर सवालो को पैरोडी का रूप दे सकती है। इस तरह के नाटक और झूठे लांछनों की राजनीती केवल हम ही कर सकते हैं।
लेकिन मैंने सोचा की चलो अच्छा हुआ, कम से कम नेताओं के व्यक्तिगत खर्चे जो वो जनता के पैसों से करते हैं उन पर सवाल तो पूछा गया। शायद इसी भय से जनता का कुछ भला हो जाए। लेकिन ये तो दिन में सपने देखने वाली बात थी। दो दिन बाद प्रधानमन्त्री के घर का बिल किसी ने मीडिया में दे दिया। वो 22 लाख रुपए था। जवाब देने के लिए कोई नही आया। जो लोग दो दिन पहले 90000 के बिल पर छाती पीट रहे थे वो अब टीवी चैनलों को कह रहे थे की क्या फिजूल की बातों में टाइम खराब कर रहे हो। मैंने अपने एक मित्र से जब इस बारे में पूछा की उसका क्या ख्याल है तो उसने कहा की भाई साब ये तो अपने प्रधानमन्त्री महीने में कुल मिलाकर सात दिन ही घर पर रहते हैं, अगर पूरा महीना घर पर रहते तो क्या होता। और उनके घर पर तो कोई और रहता भी नही है।
देश के बिजली मंत्री प्रैस कॉन्फ्रेंस में कहते हैं की हमारे पास पूरी बिजली है लेकिन कोई खरीदने को तैयार नही है। लोग कहते हैं की बिजली इतनी महगी है की खरीद ही नही सकते। मैं परेशान हूँ की अब प्रधानमन्त्री के घर घर बिजली पहुंचाने के वायदे का क्या होगा। प्राइवेट बिजली कंपनियां बिजली बनायेंगी लेकिन कोई खरीदेगा नही। सरकार ने उन कम्पनियों के साथ जो करार किआ है वो पूरा नही होगा। बिजली कंपनियां हर साल करार की रकम जोड़ कर दिखाएंगी और कागजों में घाटा बढ़ता जाएगा। और एक दिन इतना हो जाएगा की देश उसको चूका नही पायेगा।
आपको मेरी बात मजाक लगती है। आज ही टीवी में खबर है की नोएडा टोल टैक्स की कम्पनी अब तक 4000 करोड़ रुपया इक्क्ठा कर चुकी है और उसने 3500 करोड़ का घाटा दिखाया हुआ है। जिस सड़क का ये टोल टैक्स ले रही है उसकी कुल लागत पता है कितनी थी, 408 करोड़। अब ये सारा हिसाब सरकार के उस करार के कारण है जिसमे सरकार ने कम्पनी को 20 % सालाना के मुनाफे की गारण्टी दी हुई है। ये असलियत है सरकार और कॉरपोरेट की मिलीभगत की। देश वासियो, सारी उम्र कमाते रहो तुम्हारा कर्जा नही उतरेगा।
लेकिन हम बिजली की बात कर रहे थे। एक बार की बात है की मेरे घर का बिल आया 300 रुपए। मैंने रकम तारीख निकलने के बाद जमा करवाई। तब कम्प्यूटर नही थे। अगले महीने का बिल आया उसमे जमा की गयी रकम घटाई नही गयी थी। मैंने बिजली दफ्तर जाकर रशीद दिखाई तो जवाब मिला पहले पूरा पैसा जमा करवा दो, जो भी फर्क होगा अगले महीने के बिल में ठीक हो जायेगा। मैंने एतराज किआ तो बोले भाई साब ऐसा ही नियम है। आज टीवी पर खबर थी की हरियाणा बिजली बोर्ड ने एक आदमी को 75 करोड़ 61 लाख का बिल भेज दिया। मुझे लगता है की NTPC बिजली बोर्ड की तरफ जितना बकाया मांगती होगी वो सारा बिल उस बेचारे को भेज दिया। खबर है की वो बेचारा बिल ठीक करवाने के लिए धक्के खा रहा है। मुझे लगता है की उसको भी पहले सारा पैसा जमा कराने को कह दिया हो सकता है क्योंकि नियम ही ऐसा है। अब ये बिल जमा कराने के लिए तो आधा गाँव बेचना पड़ेगा। जो उस बेचारे के कहने से कोई बेचने वाला नही।
बाकि दास्ताँ का ऐसा है की आप किसी राह चलते आदमी को पकड़ लो और कह दो की भाई साब वो आपके साथ बिजली बिल के बारे में क्या किस्सा हुआ था ? वो रुककर कहेगा की भाई साब वो ऐसा हुआ था की ---------------- सबके पास सुनाने के लिए एक किस्सा है कोई नही बचा है तो राजनीती कैसे बचेगी।
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