Sunday, July 5, 2015

Vyang -----बड़ा धार्मिक दिखने का मुकाबला

 

खबरी -- लोगों में धार्मिक होने की जैसे हौड़ लगी हुई है।


गप्पी -- ये हौड़ धार्मिक होने की नही है। धार्मिक दिखने की है। होने और दिखने में फर्क होता है। दिखने के लिए होना जरूरी शर्त नही है। उसी तरह जैसे होने के लिए दिखना जरूरी शर्त नही है। धार्मिक होने और दिखने में उतना ही फर्क है जितना आसाराम बापू और विवेकानन्द में है। आजकल विज्ञापन का जमाना है। हर चीज की मार्केटिंग हो रही है। व्यक्ति समाज में खुद की भी मार्केटिंग करता है। धर्म और व्यक्ति दोनों ब्राण्ड हो गए हैं।

                     विज्ञापन में किसी वस्तु के बारे में जो बातें कही गयी होती हैं जरूरी नही है की वो चीजें उसमे हों। बल्कि यों कहिये वे चीजें उसमे होती नही हैं। इसके क़ानूनी पचड़े से बचने के लिए विज्ञापन कम्पनी उसमे नीचे छोटे छोटे अक्षरों में सूचना लिख देती हैं। लेकिन धार्मिक दिखने के मुकाबले वाले लोग ऐसा नही करते बल्कि उल्टा जोर जोर से उसके होने का झूठा दावा करते हैं। 

                  कई बार ये लोग ऐसी हरकतें करते हैं की समझ से बाहर की बात हो जाती है। मेरे दो पड़ौसी हैं जो एक ही टाइम पर छत पर जाते हैं सूर्य को पानी देने। एक दिन एक आदमी ने देखा की दूसरे का पानी लाल रंग का है। उसने उससे पूछा की पानी लाल क्यों है। पहले ने जवाब दिया की पानी देने के बाद सूर्य महाराज को तिलक भी तो करना होता है इसलिए पानी में सिंदूर से तिलक किया हुआ है इसलिए पानी लाल दीखता है। पहले आदमी में काटो तो खून नही। इसका मतलब है तुम सूर्य के मुझसे बड़े भगत हो,  देख लूँगा तुम्हे, ऐसा मन ही मन बड़बड़ाता हुआ वो नीचे आ गया। चार पांच दिन वो अलग से पानी देने गया। छठे दिन वो उसके साथ ही पहुंचा। आज उसके पानी में सिंदूर तो था ही थोड़े से चावल और शककर के दाने  भी थे। अब पूछने की बारी पहले की थी। 

         " वो क्या है की हमारे यहां देवताओं को तिलक चावल के बिना नही करते। और तिलक करने के बाद मीठा मुंह तो करवाना ही होता है। अब जिनको ये नही मालूम तो नही मालूम। " दूसरे आदमी ने जवाब देकर पांच दिन से रोक कर रखी हुई भड़ास निकाल ली। 

               दूसरा आदमी  एक हफ्ते उसके साथ पानी देने नही गया। 

   एक हफ्ते बाद पहला आदमी पानी देने गया तो उसके पानी  में सिंदूर, चावल,शक़्क़र के साथ लाल रंग का धागा भी था जिसे मौली कहते हैं। 

                   दूसरे आदमी ने देखा और कुढ़ कर नीचे आ गया। 

           अगले हफ्ते उसके पानी के साथ बाकि की सारी चीजें तो थी ही साथ में जलती हुई अगरबत्ती भी थी। 

           अगले हफ्ते पहला आदमी अगरबत्ती के साथ दीपक भी लिए था। 

   दो महीने में ये हाल हो गया की दोनों पानी के लोटे के साथ सामान से भरी हुई एक थाली भी लेकर छत पर जाने लगे। 

                     ये बड़ा धार्मिक दिखने का मुकाबला था। 

       हमारी सोसायटी में एक आदमी ने सुंदर कांड का प्रोग्राम रखा। सोसायटी के कई लोगो को बुलाया। सबको प्रशाद देकर विदा किया। अगले शनिवार को दूसरे आदमी ने सुंदर कांड का प्रोग्राम रखा। बाकि सारी चीजें तो वैसी ही थी लेकिन उसने लाऊड स्पीकर और जोड़ दिया। पूरी रात सोसायटी शोर से परेशान रही। सुबह मैंने उससे पूछा की भाई साब आपने लाऊड स्पीकर क्यों रक्खा। 

                " देखो भाई साब, प्रोग्राम किआ जाये तो थोड़ा ढंग से किया जाए। सुंदर कांड रखते हो तो थोड़ा खर्चा करने की भी हिम्मत रखो। पूरी सोसायटी के कान में भगवान का नाम पड गया। " उसने आसपास के आदमियों को भी सुनाकर कहा। 

                  " लेकिन भाई साब, लोगों को परेशानी भी हुई। सारी रात लाऊड स्पीकर बजाना क्या अच्छी बात है। आप सभ्य आदमी हैं। " मैंने कहा। 

                 वो गुस्से से कांपने लगा। " सभ्य होगा तू, तेरा बाप। तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे सभ्य कहने की। जुबान संभालकर बात किया करो। "

               मैं वापिस आ गया। 

              एक पैसे वाला आदमी जागरण रखवाता है। बड़ी भीड़ होती है। दूसरे आदमी ने जागरण में फ़िल्मी हीरो और हीरोइन को बुलवा लिया। वो बड़ा भगत था। 

              शहर में एक बड़े नामी कथावाचक का प्रोग्राम हुआ। शहर के बड़े बड़े लोग कथा सुनने जाते। ये कथावाचक भी अपने नाम के आगे सन्त लिखते हैं। एक दिन एक पैसे वाले बड़े सेठ ने उन्हें घर बुला लिया। साथ में उसने अपने सारे विरोधिओं और मिलने वालों को भी न्योता भेज दिया। सभी आये। सबके भोजन के बाद भरे हुए हाल में सन्त ने कहा की " मैं कभी किसी के घर जाता नही हूँ। भई सन्तों को गृहस्थियों से जरा दूर ही रहना चाहिए। लेकिन इन भाई साब के साथ प्रेम का व्यवहार है, बहुत धार्मिक विचारों और संस्कारों वाला परिवार है इसलिए इंकार नही कर सका। "

                लाखों का खर्चा वसूल हो गया। ये बड़े धार्मिक हो गए। 

आजकल तो लोग एक दूसरे से सतसंग में जाने के बारे में इस तरह पूछते हैं जैसे क्लब के बारे में पूछ रहे हों। ये सतसंग नए जमाने के क्लब हैं। जो काम लोग पहले क्लबों में साधते थे अब सतसंग में साधते हैं। एक पुराने फ़िल्मी गाने की लाइने इस स्थिति को बखूबी बयान करती हैं। 

                             देवा हो देवा गणपति देवा ,

                                                  तुमसे बढ़कर कौन। 

                            और तुम्हारे भक्त जनो में ,

                                                    हमसे बढ़कर कौन।

1 comment:

  1. धर्मान्धता पर करारा व्यंग्य
    इसके लिए गर्ग जी को कोटिश साधुबाद

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