गप्पी -- जम्मू के एक कार्यक्रम में प्रधानमन्त्री ने एक राष्ट्रीय समस्या की तरफ देश का ध्यान खींचा। यह समस्या है दामाद समस्या। इस समस्या का मूल भारतीय संस्कृति में बहुत गहरे तक है। कांग्रेस और मीडिया इसे राबर्ट वाड्रा से जोड़कर देखते हैं तो ये उनका समस्या का सरलीकरण करना हैं। मेरा मानना है की प्रधानमन्त्री बड़ी समस्या की तरफ देश का ध्यान आकर्षित करना चाहते थे। प्रधानमन्त्री जम्मू में कांग्रेस के स्वर्गीय नेता गिरधारीलाल डोगरा की शताब्दी के अवसर पर बोल रहे थे। और गिरधारीलाल डोगरा के दामाद अरुण जेटली उनके बाजू में बैठे हुए थे। उन्होंने भाजपा के प्रवक्ताओं को भी संदेश दे दिया की अगर भविष्य में अरुण जेटली का कोई घोटाला सामने आ जाये तो वो कह सकते हैं की आखिर हैं तो एक काँग्रेसी के ही दामाद।
छोड़िये, मुख्य समस्या पर आते है। भारतीय परम्परा में दामाद का महत्त्व बहुत अधिक होता है। उसे एक विशिष्ट दर्जा हासिल है। दामाद वो प्राणी होता है जो घर में बिना कुछ किये पूरी सुविधाओं और अतिरिक्त रोबदाब से रहता है। और ये सारे लक्षण उसमे सभी तरह की जाती और धर्म से परे पाये जाते हैं। दामाद किसी जाती का हो, किसी सामाजिक और आर्थिक श्रेणी में आता हो उसके इन लक्षणों पर कोई फर्क नही पड़ता। मेरे घर से थोड़ी दूर सड़क के नुक्क्ड़ पर एक बूट पालिस करने वाला लड़का बैठता था। उम्र कोई 30 साल होगी। आते जाते उससे दुआ सलाम और बातचीत हो जाती थी। वो मुझे कई दिन दिखाई नही दिया। कई दिन बाद जब वो दुबारा दिखाई दिया तो मैंने पूछा की इतने दिन कहां थे? तो उसने जवाब दिया, " मेरे साले की शादी थी। मैं ससुराल वालों से नाराज था सो मैंने घरवाली को अकेले भेज दिया और उसको बताया की मैं एक दो दिन बाद आऊंगा। ससुर को जब पता चला की मैं नाराजगी के कारण नही आया तो वो दूसरे चार पांच लोगों को लेकर मेरे घर आये। उन्होंने सबके बीच में मुझसे माफ़ी मांगी और पैर पकड़े, तब मैं उनके साथ ससुराल गया। मैंने भी उन्हें बता दिया की आखिर मेरी भी कोई इज्जत है। इस सारे प्रोग्राम में चार पांच दिन लग गए। "
दामाद होने का अहंकार उसके चेहरे से फूटा पड रहा था। और उसमें पूर्ण सन्तोष का भाव शामिल था। ये भरतीय दामाद का सर्वव्यापी लक्षण है।
अब फिर थोड़ी इस राष्ट्रीय समस्या की बात कर लेते हैं। हमारे देश में सरकारी अफसरों और कर्मचारियों को सरकारी दामाद कहा जाता है। क्योंकि उनमे भी वो सारे लक्षण पाये जाते हैं जो दूसरे दामादों में पाये जाते हैं। इस समस्या का कोई हल प्रधानमंत्रीजी के पास भी नही होगा क्योकि नेता भी अपने आप को सरकारी दामाद मानते हैं। अख़बार में खबर छपी थी की एक आदमी ने RTI के तहत प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों पर हुए खर्च का हिसाब माँगा तो सरकार ने इंकार कर दिया। भला कोई दामादों के खर्चे का हिसाब देता है ? RTI करने वाले को भारतीय परम्परा की जानकारी नही होगी। अधिकारीयों के खिलाफ ना जाने कितनी शिकायतें पैंडिंग हैं पर आज तक कुछ हुआ, हो ही नही सकता, दामाद जो ठहरे।
हमारे यहां पुरातन काल से ससुर दामादों के कुकर्मो का भोग बनते रहे हैं। कंस को बचाने के लिए और बाद में उसकी मौत का बदला लेने के लिए जरासंघ सारी उम्र कृष्ण से लड़ता रहा और आखिर में ससुरगति को प्राप्त हो गया। विरोधी पक्ष को हराने के लिए भी दामादों का प्रयोग हमारे यहां बखूबी होता रहा है। देवताओं को शुक्राचार्य से मृतसंजीवनी विद्या चुराने के लिए कच को उसका दामाद बनाना पड़ा था। शुक्राचार्य के पेट के अंदर पहुंचाने से पहले उसके घर अंदर पहुंचाने का सबसे आसान और पुख्ता रास्ता दामाद ही था।
भारतीय परम्परा में ऋषि मुनि पुत्र ना होने पर अपनी सारी विद्या और खोज दामाद को ही सौंपते थे। और जिनको दामाद भी प्राप्त नही होता था वो अपनी सदियों के मेहनत और विद्या अपने साथ ही लेकर मर जाता था। बाकी शिष्य भले ही कितने ही काबिल क्यों ना हों किसी को भरोसे के काबिल नही माना जाता था।
इसलिए राजनितिक पार्टियों और मीडिया को इस समस्या के मूल पर विचार करना चाहिए और इसे कोई छोटा मोटा ताना मानकर नही छोड़ देना चाहिए। मेरा तो ये मानना है की अगर हम ये समस्या हल करने में कामयाब हो गए तो विकास और महंगाई जैसी छोटी छोटी समस्याओं को तो चुटकी में हल किया जा सकता है।
खबरी -- पर मुझे तो लगता है की प्रधानमंत्रीजी को केवल देश के दामादों को सम्भालना चाहिए। इनमे बहुत से देशी विदेशी उद्योगपति भी शामिल हो गए हैं।
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