खबरी -- मीडिया में फर्जी डिग्रियों का ढेर लग गया है।
गप्पी -- ये जो फर्जी डिग्रियां दिखाई जा रही हैं, वो तो केवल एक ही किस्म की फर्जी डिग्रियां हैं। मुझे लगता है की बाकि के जो लोग दूसरे किस्म की फर्जी डिग्रियां लिए हैं वो अपनी डिग्री बचाने के चककर में दूसरों की डिग्रियों का मामला उठा रहे हैं।
मसलन ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हे बाकायदा यूनिवर्सिटी ने डिग्री दी है। उन लोगों ने वहां पढ़ाई भी की है लेकिन बहुत से लोगों को लगता है की ये डिग्रियां भी फर्जी हैं। छात्र कई साल लगाता है उसके बाद उसे डिग्री देते वक़्त कह दिया जाता है की लो बेटा हम लिख कर देते हैं की अब तुम किसी काम के नही रहे। वो आगे दाखिला लेने जाता है तो एंट्रेंस टेस्ट होता है। नए कालेज को पुरानी डिग्री पर भरोसा नही है। टेस्ट में फेल होता है और दाखिला नही मिलता। वो डिग्री दिखाता है दाखिला देने वाले कह देते हैं की जेब में रखो।
नौकरी के लिए आवेदन करता है तो पहले परीक्षा होती है फिर इंटरव्यू होता है। क्योंकि डिग्री पर किसी को भरोसा नही है। चार लाख लोग परीक्षा में बैठते हैं और चार हजार पास होते हैं। बाकि नालायक हैं। जिन्हे नालायक युनिवर्सिटियों ने डिग्रियां थमा दी हैं।
डिग्री किसी नौकरी की गारंटी नही है ये तो माना जा सकता है। लेकिन उसकी लायकात की गारंटी तो होनी ही चाहिए। आदमी के पास डिग्री असली है और लायकात फर्जी है। अब इसका क्या हो।
कई बार चुन लिए जाने के बाद मालूम पड़ता है की नालायक को चुन लिया। सरकारों के साथ तो हरबार यही होता है। चुनाव में नेता बड़े बड़े दावे करते हैं। कसम खा खा कर यकीन दिलाते हैं की हम पूरी तरह लायक हैं। लोग नए कपड़े पहन कर वोट देने जाते हैं। सरकार बन जाती है। बनते ही मालूम पड जाता है की नालायक है। लोग कहते हैं की तुम नालायक हो, सरकार कहती है की नही हम तो लायक हैं। लोग कहते हैं की तुमने फलां वायदा किया था, अब मुकर रहे हो इसलिए नालायक हो। सरकार कहती है की वायदों का संबन्ध तो केवल वोट लेने से होता है, सरकार चलाने से थोड़ा ना होता है। सरकार बनने के बाद हमे इस सत्य का बोध होता है की पिछली सरकार के जिस काम को हम देश विरोधी बता रहे थे वो तो देश के हित में था। पहले हमारे पास जानकारी नही थी अब है। जो काम पिछली सरकार ने लोगों की बार बार की मांग करने के बावजूद नही किया था और जिसके लिए हमने सरकार को जनविरोधी बताया था अब पता चला की वो तो किया ही नही जा सकता था । सरकार जनविरोधी नही थी हमे तो लगता है की जनता ही जनविरोधी है।
लोग नारे लगाते हैं की वापिस आओ नालायक हो। सरकार कहती है नही आएंगे, हम चुन कर आये हैं नालायक चुनने वाले हो सकते हैं हम नही हैं। जनता नालायक है इसे बदलना होगा। इसी में देश की भलाई है। अब हम लायक हैं या नालायक हैं इसका फैसला इस जनता से लेकर चैंबर आफ कामर्स पर छोड़ देते हैं। हम हमारे लायक होने का प्रमाणपत्र अमरीका से मंगवा लेते हैं। तब तो तुम्हे भरोसा होगा की हम लायक हैं।
लोग काम के लिए सरकारी दफ्तरों में जाते हैं। दस धक्के खाने के बाद काम नही होता। लोग कहते हैं कर्मचारी नालायक हैं। कर्मचारी कहते हैं की लोगों को काम करवाना ही नही आता, इन नालायक लोगों को झेलते हम परेशान हो गए हैं। लोग कहते हैं की तुम दो घण्टे लेट आये हो, कर्मचारी कहता है की साहब का बिजली का बिल भरकर आया हूँ लेट नही हूँ। लोग कहते हैं की तुम्हे साहब का बिल भरने का वेतन नही मिलता। कर्मचारी कहता है वेतन तो साहब ही देता है तुम कब देने आये थे बताओ।
जनता कहती है -नालायक
कर्मचारी कहता है -तुम नालायक
हर बार सरकार और सरकारी अमला जनता को नालायक सिद्ध कर देता है। मैं चाहता हूँ की इस नालायकी को टेस्ट करने का भी कोई तरीका निकाला जाये। लेकिन ध्यान रहे की वो तरीका जनता को नालायक न सिद्ध कर दे।
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