खबरी -- सुना है मध्यप्रदेश सरकार ने व्यापम का नाम बदल दिया ?
गप्पी -- ये बहुत अच्छा किया। बहुत बदनामी हो रही थी। वैसे तो शैक्सपीयर ने कहा था की नाम में क्या रक्खा है। परन्तु अब समय बदल गया है। अब नाम में बहुत कुछ रक्खा है। कुछ नाम दूसरी चीजों के पर्याय हो जाते हैं। जैसे कोलगेट टूथपेस्ट का पर्याय हो गया। डालडा वनस्पति घी का पर्याय हो गया। लोग नाम किसी चीज का लेते हैं और मगज में छवि किसी दूसरी चीज की होती है। जैसे बोफोर्स का नाम आते ही घोटाला याद आने लगता था। उसी तरह व्यापम की हालत हो गयी थी। व्यापम का नाम आते ही श्मशान याद आने लगता था। रात को कोई व्यापम का जिक्र कर देता तो डर के मारे रोंगटे खड़े हो जाते थे। दहशत होने लगती थी।
नाम बदलने के पीछे सरकार की दूसरी मजबूरियां भी रही होंगी। जहां व्यापम का दफ्तर है उस सड़क से लोगों ने डर के मारे आना जाना बंद कर दिया होगा। और एक सड़क बेकार हो गयी होगी। दूसरा जब कोई नई नौकरी या दाखिला निकलता होगा तो बहुत से बच्चे डर के मारे फार्म ही नही भरते होंगे। घर में छोटी मोटी कहासुनी होने पर संतान व्यापम का फार्म भर देने की धमकी देती होगी। व्यापम का नाम आते ही पता नही किस किस का चेहरा आँखों के आगे घूम जाता होगा। मुझे तो लगता है की कर्मचारियों ने व्यापम में काम करने से इंकार कर दिया होगा परन्तु सरकार ये बात दबा गयी होगी। सो उसने इस मसले का हल निकाल दिया। उसने व्यापम का नाम बदल दिया। अब अगर कोई संसद में या बाहर व्यापम घोटाले का मामला उठाएगा तो बीजेपी और शिवराज सिंह कह सकते हैं, ' कौनसा व्यापम ? हमारे यहां तो कोई व्यापम है नही। आपके यहां है क्या। " सामने वाला चुप हो जायेगा।
दूसरा राजनीती में नाम बदलने का उतना ही महत्त्व है जितना पार्टी बदलने का। महाराष्ट्र के चुनाओं में बीजेपी ने एनसीपी का नाम बदल कर नैशनल करप्ट पार्टी रख दिया। चुनाव खत्म हो गए। कुछ सीटें कम पड़ी तो शिवसेना ने आँख दिखानी शुरू कर दी। शरद पवार ने समर्थन की पेशकश की तो मोदीजी ने एनसीपी का नाम बदल कर " नैशनल कॉपरेटिव पार्टी " कर दिया। उसी तरह जम्मू-कश्मीर के चुनाव में बीजेपी ने पीडीपी का नाम बदल कर " बाप-बेटी कश्मीर लूटो पार्टी " रख दिया। लोगों ने फिर धोखा दे दिया। बीजेपी ने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली और पीडीपी का नाम बदल कर " कश्मीर विकास पार्टी " रख दिया।
अब बिहार में चुनाव आ रहे हैं तो ना जाने कितने नए नाम सुनने को मिलेंगे। शुरुआत भी हो गयी। मोदीजी ने RJD का नाम बदल कर " रोजाना जंगलराज का डर " पार्टी रख दिया। लालूजी कहाँ कम थे उन्होंने बीजेपी का नाम बदल कर " बेशर्म और झूठी पार्टी " रख दिया। मोदीजी ने नितीश पर मांझी को हटाने को लेकर " महादलित का अपमान " करार दे दिया। बिहार के कई लोग कह रहे हैं की ये बीजेपी ही थी जिसने मांझी को कहीं का नही छोड़ा।
उसी तरह नाम ही नही वायदे और नारे भी बदल रहे हैं। लोकसभा चुनाव में मोदीजी ने नारा दिया था, " कालाधन वापिस लाओ ' वायदा किया था सबको 15 -15 लाख देंगे। सारे युवाओं को रोजगार देंगे। अब नया नारा है " 24 घंटे बिजली देंगे " नया वायदा है की बिहार के लोगों को बिहार में ही काम देंगे। मोदीजी सोच रहे होंगे ये कोई दूसरे लोग हैं और लोकसभा चुनाव में दूसरे लोग थे। भूल गए होंगे, काम का दबाव रहता है। मोदीजी कह रहे हैं की बिहार को 50000 करोड़ से ज्यादा देंगे। नितीश कह रहे हैं की दे दो कौन रोक रहा है ? मोदीजी कह रहे हैं की सही समय पर इसकी घोषणा करेंगे। लोग हंस रहे हैं की नया जुमला है।
कांग्रेस आरोप लगा रही है की सरकार हमारी योजनाओं का नाम बदल बदल कर वहीं योजनाएं लागु कर रही हैं। मैं कहता हूँ की योजनाएं ही क्यों, सरकार तो हर वह काम कर रही है जो कांग्रेस करती थी। परन्तु सरकार के मंत्री इस बात के सख्त खिलाफ हैं। राजनाथसिंह कहते हैं की हमारा कोई मंत्री आरोप लगने पर UPA सरकार की तरह इस्तीफा नही देगा। बोलो फर्क हुआ की नही। अरुण जेटली जी कहते हैं की पहले हम कहते थे की संसद को चलाने की जिम्मेदारी सरकार की होती है अब हम विपक्ष से संसद चलाने की मांग को लेकर धरना दे रहे हैं। बोलो फर्क है की नही। शुष्मा जी पहले कहती थी मंत्री के पद पर रहते निष्पक्ष जाँच सम्भव ही नही है, अब कहती हैं की बिना आरोप सिद्ध हुए इस्तीफा कैसे ? बोलो फर्क हुआ की नही
सो राजनीती में नाम, वायदे, नारे और बयान बदलने का अपना महत्त्व है।
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