Wednesday, October 14, 2015

व्यंग -- नाग ( सांप ) हत्या पर प्रतिबंध की मांग और इच्छाधारी नाग .

गौ हत्या पर प्रतिबंध की मांग जबसे जोर पकड़ रही है उसके बाद से मुझे उम्मीद बंधी है की नागों की हत्या पर प्रतिबंध की मांग भी उठेगी। गौ-हत्या पर तो राजनैतिक पार्टियां और खासकर बीजेपी तो ऐसे ऐसे राज्यों में प्रतिबंध की मांग कर रही है जहां सालों पहले से प्रतिबंध है। उसे पता है, लेकिन वो फिर भी कह रही है की अगर उसकी सरकार आई तो वो गौ-हत्या पर प्रतिबंध लगाएगी। कारण ये है की हिन्दू गाय की पूजा करते हैं। भगवान कृष्ण का गाय के साथ संबंध सबको पता है। भगवान शिव के परिवार में भी नंदी बैल स्थाई सदस्य है। देवी पार्वती को गुजरात में उमा ( उमिया ) देवी के नाम से जाना जाता है और गाय की सवारी करते दिखाया गया है। लेकिन मुझे बड़ा अफ़सोस है की इसी परिवार के दूसरे सदस्य नाग देवता को सब भूल गए हैं। नागों का महत्त्व शिव परिवार के बाहर भी है। स्वयं विष्णु शेषनाग पर विराजमान हैं। उसके अलावा भी नागों को हिन्दुओं का एक तबका देवता मानता है। उसकी पूजा होती है। उसके लिए तो दिन तक मुकर्रर किया गया है, नागपंचमी। हमारे हिन्दू धर्म में ये भी एक खासियत है की इसमें अधिकतर जानवरों को देवता का दर्जा दिया गया है भले ही आदमीओं को अछूत माना गया हो।
                      लेकिन सांपों की अपनी अलग महिमा है और इनके मारने पर प्रतिबंध जरूरी है। मेरे पड़ोसी को जब मैंने अपनी इस मांग के बारे में बताया तो उसने कहा की सभी बड़े सांपों को तो जैड-प्लस श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त है फिर तुम और क्या चाहते हो। लेकिन मैं तो सचमुच के सांपों के बारे में बात कर रहा था और वो उन सांपों के बारे में बात कर रहे थे जिन्होंने पुरे देश को अपनी जकड़ में ले रखा है। इनके जहर से बस्तियां की बस्तियां समाप्त हो रही हैं। इनकी फुफकार चारों और सुनाई दे रही है। इनकी फुफकार को राष्ट्रिय गान का दर्जा दिया जा चूका है। सरकार इनकी फुफकार को ही देश की असली श्वसन प्रणाली मानती है। इनकी फुफकार का जहर आहिस्ता आहिस्ता हवा में घुल रहा है और जो भाईचारा और एकता के अदृश्य धागे लोगों को जोड़े हुए हैं ये उनको गलाता रहता है। फिर इसकी गहनता बढ़ती जाती है और ये सांसों के द्वारा मनुष्य शरीर में प्रवेश करता है और जो मूल्य सदियों में मनुष्य जाति ने अर्जित किये हैं उन्हें कैंसर के वायरस की तरह खाता रहता है।  कुछ दिन बाद पूरा समाज मूल्य विहीन भीड़ में बदल जाता है। लेकिन इनको तो कोई खतरा नही है। मेरे पड़ोसी फिर कहते हैं की भाई, तुम आदमियों की सुरक्षा मांगने की बजाए सांपों की सुरक्षा के पीछे क्यों पड़े हो ?
                      मैंने कहा की रिवाज ही ऐसा है। जो लोग गायों की सुक्षा की मांग कर रहे हैं वो इसके लिए लाखो आदमियों को मारने को तैयार हैं। इस देश में आदमी अवांछित प्राणी है। आदमी गायों के लिए है, सांपों के लिए है। उसके मरने से किसी को कोई फर्क नही पड़ता। लेकिन गाय के मरने से पड़ता है। इसलिए मेरा मानना है की सांप भी  पवित्र हैं, बल्कि मेरी माने तो उससे भी ज्यादा पवित्र हैं इसलिए उनके मारने पर भी प्रतिबंध लगाया जाये।
                        मेरे पड़ोसी ने कहा की तुमने फिल्मों में देखा होगा की कुछ नाग इच्छाधारी भी होते हैं। वो जब चाहे कोई भी रूप धारण कर लेते हैं। इसलिए हो सकता है की कुछ इच्छाधारी नागों ने मंत्रियों का रूप धारण कर लिया हो और बाद में वो इतना पसंद आ गया हो की वापिस अपने रूप में आना ही नही चाहते हों। एक अजीब सा भय मेरे शरीर में दौड़ गया। अब उनको पहचाना कैसे जाये। क्या पता कल जो नेता मुझसे वोट मांगने आया था वो भी इच्छाधारी नाग हो ? इस तरह सरकार में मंत्रियों के भेष में कितने इच्छाधारी नाग शामिल हों। मैंने थोड़ा डरते डरते अपने पड़ोसी से पूछा की इन इच्छाधारी सांपों को कैसे पहचाना जाये ? उसने कहा की काम बहुत मुस्किल है लेकिन एक तरीका है।
       मैंने तुरंत पूछा की क्या ?
 मेरे पड़ोसी ने कहा की कोई भी सांप, चाहे वो साधारण हो या इच्छाधारी, और किसी भी भेष में हो, वो कभी ना कभी जहर जरूर उगलता है। इसलिए ये ध्यान रखा जाये की कौन जहर उगल रहा है। इस तरह इन इच्छाधारी नागों की पहचान हो सकती है।
          मैंने कहा की अगर हम सरकार से मांग करें की वो छानबीन करके पता लगाये की कौन-कौन इच्छाधारी सांप सरकार और पार्टी में शामिल हैं तो कैसा रहेगा ?
           मेरे पड़ोसी ने मुश्कुराते हुए पूछा की जिस से तुम ये मांग करोगे, अगर वो खुद ही इच्छाधारी नाग हुआ तो ? तब तुम क्या करोगे। इसलिए इनकी पहचान तो लोगों को ही करनी होगी।

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