दादरी के घटना के बाद का जो घटना कर्म है और उससे जो संकेत मिलते हैं वो इस प्रकार हैं।
१. दादरी की घटना और उससे पहले के साम्प्रदायिक दंगों से समाज ने कोई सबक नही सीखा।
२. दंगों की राजनीती करने वालों को आज भी दंगे भीड़ आसानी से उपलब्ध है।
३. उत्तर प्रदेश की सरकार इसको रोकने की बजाय इसका राजनितिक फायदा उठाने की कोशिश में है। उसने अरविन्द केजरीवाल जैसे लोगों को तो बिसाहड़ा गांव में जाने से रोकने की कोशिश की लेकिन मुश्लिम विरोधी ब्यानो के लिए कुख्यात महेश शर्मा और ओवैसी को रोकने की कोई कोशिश नही की। यहां तक की मुजफ्फरनगर दंगों के अभियुक्त संगीत सोम को तो वहां धारा 144 के बावजूद सभा को भी सम्बोधित करने दिया।
४. बीजेपी और आरएसएस का नंगा चेहरा फिर सामने आ गया। लालकिले से भाषण देने वाले प्रधानमंत्री ने मौका आने पर मुंह में दही जमा ली और बीजेपी की तरफ से वहां जो लोग गए उनमे से एक कुख्यात मुस्लिम विरोधी महेश शर्मा थे और दूसरे मुजफ्फरनगर दंगों के अभियुक्त संगीत सोम थे। संगीत सोम ने वहां फिर व्ही जहर भरे बयान दिए। उन्होंने कहा की या तो " कानून कानून की तरह काम करे वरना हम इसका जवाब देने में सक्षम हैं पहले की तरह।" इससे साफ जाहिर है की बीजेपी इस घटना को साम्प्रदायिक धुर्वीकरण के लिए इस्तेमाल कर रही है।
५. देश का हिन्दू समाज एक बार फिर साम्प्रदायिक राजनीती के चारे की तरह इस्तेमाल हो गया। पता नही वो बार बार कुल्हाड़ी पर पैर क्यों मारता है। दसियों युवाओं का जीवन इस राजनीती ने फिर बर्बाद कर दिया। जिस मुस्लिम का कत्ल हुआ उसका तो परिवार बर्बाद हुआ ही , जिन युवाओं को अपनी जिंदगी के बेहतरीन साल सलाखों के पीछे गुजारने पड़ेंगे और जिन पर कातिल होने का कलंक लग गया उनके परिवार भी तो बर्बाद ही हो गए। हिन्दू समाज इस सच्चाई को कब समझेगा।
१. दादरी की घटना और उससे पहले के साम्प्रदायिक दंगों से समाज ने कोई सबक नही सीखा।
२. दंगों की राजनीती करने वालों को आज भी दंगे भीड़ आसानी से उपलब्ध है।
३. उत्तर प्रदेश की सरकार इसको रोकने की बजाय इसका राजनितिक फायदा उठाने की कोशिश में है। उसने अरविन्द केजरीवाल जैसे लोगों को तो बिसाहड़ा गांव में जाने से रोकने की कोशिश की लेकिन मुश्लिम विरोधी ब्यानो के लिए कुख्यात महेश शर्मा और ओवैसी को रोकने की कोई कोशिश नही की। यहां तक की मुजफ्फरनगर दंगों के अभियुक्त संगीत सोम को तो वहां धारा 144 के बावजूद सभा को भी सम्बोधित करने दिया।
४. बीजेपी और आरएसएस का नंगा चेहरा फिर सामने आ गया। लालकिले से भाषण देने वाले प्रधानमंत्री ने मौका आने पर मुंह में दही जमा ली और बीजेपी की तरफ से वहां जो लोग गए उनमे से एक कुख्यात मुस्लिम विरोधी महेश शर्मा थे और दूसरे मुजफ्फरनगर दंगों के अभियुक्त संगीत सोम थे। संगीत सोम ने वहां फिर व्ही जहर भरे बयान दिए। उन्होंने कहा की या तो " कानून कानून की तरह काम करे वरना हम इसका जवाब देने में सक्षम हैं पहले की तरह।" इससे साफ जाहिर है की बीजेपी इस घटना को साम्प्रदायिक धुर्वीकरण के लिए इस्तेमाल कर रही है।
५. देश का हिन्दू समाज एक बार फिर साम्प्रदायिक राजनीती के चारे की तरह इस्तेमाल हो गया। पता नही वो बार बार कुल्हाड़ी पर पैर क्यों मारता है। दसियों युवाओं का जीवन इस राजनीती ने फिर बर्बाद कर दिया। जिस मुस्लिम का कत्ल हुआ उसका तो परिवार बर्बाद हुआ ही , जिन युवाओं को अपनी जिंदगी के बेहतरीन साल सलाखों के पीछे गुजारने पड़ेंगे और जिन पर कातिल होने का कलंक लग गया उनके परिवार भी तो बर्बाद ही हो गए। हिन्दू समाज इस सच्चाई को कब समझेगा।
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