Saturday, October 10, 2015

Vyang -- बिजनेस, नैतिकता और राजनीती

जैसा की हमने पहले बताया था की हमारे मुहल्ले में एक करियाने के दुकानदार हैं और जो अपने आप को बीजेपी के अघोषित प्रवक्ता बताते हैं। हम कई बार उनकी राय जानने की कोशिश करते हैं। और वो बड़े धड़ल्ले से दुनिया के सभी मामलों पर अपना मत देते हैं। अब बिहार चुनाव पर कुछ घटनाएँ जो पिछले दिनों घटी, हमने उन पर उनकी राय जानने की कोशिश की।
          दुआ सलाम के बाद हमने उससे पूछा , " भाई साब ये खबर आई है की आपके तेज तर्रार हिंदूवादी नेता संगीत सोम उत्तर प्रदेश की मशहूर अल-दुआ नाम की बीफ सप्लाई करने वाली कम्पनी के हिस्सेदार रहे हैं, इस पर आपका क्या कहना है। "
            उन्होंने एक दम शान्ति से जवाब दिया ," देखिये लोगों को और खासकर विपक्षी पार्टियों को बिजनेस पर राजनीती नही करनी चाहिए। किसी कम्पनी में हिस्सेदारी  अपना निजी मामला है। किसी के निजी मामलों में दखल देना अच्छी बात नही है। "
            हमे इस जवाब की उम्मीद नही थी। सो कुछ देर हम सदमे की स्थिति में रहे। फिर अपने आप को संभाल कर बोले , " लेकिन अखलाक का परिवार क्या खाता है ये उसका निजी मामला नही था ? और व्यापार में अपनाये जाने वाले तरीके कब से निजी मामला हो गए ?"
              उसने फिर शान्ति से जवाब दिया, " व्यापार में केवल ये पूछा जाना चाहिए की क्या उसके पास लाइसेंस है या नही, अगर है तो बात खत्म हो जानी चाहिए। जहाँ तक अख़लाक़ की बात है वो एक हिन्दू देश में क्या खाता है ये उसका निजी मामला नही है। उसे क्या खाना चाहिए ये हम बताएंगे। इन दोनों मामलों को आपस में मिलाओ मत। अख़लाक़ का बीफ खाना गंभीर मामला है और लाइसेंस लेकर बीफ का निर्यात करना कानून के अनुसार सही है। "
              हमे समझ नही आ रहा था की हम उसके साथ बहस कैसे करें। हमने कहा , " अभी अख़बार में एक लेख आया है की विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व अध्यक्ष विष्णु हरी डालमिया का परिवार दूसरे विश्व युद्ध के समय अंग्रेज सेना को गौ-मांस सप्लाई करता था। ऐसे परिवार के सदष्य को विश्व हिन्दू परिषद का अध्यक्ष कैसे बना दिया ?"
               उसने हमे ऐसे देखा जैसे हम पागल हो गए हों। फिर बोला, " आपने फिर बिजनेस की बात की। मैं आपको पहले ही बता चूका हूँ की बिजनेस के मामलों में राजनीती नही करनी चाहिए। और आपने ये ध्यान दिया की डालमिया परिवार ने हिन्दू धर्म की कितनी सेवा की। उन्होंने सारा गौ-मांस अंग्रेजों को खिला दिया और अपने देश के लोगों को धर्म भृष्ट होने से  बचा लिया। मैं फिर आपको कहता हूँ की बिजनेस को राजनीती या नैतिकता से मत जोड़ो। बिजनेस और नैतिकता दोनों विरोधी चीजें हैं। इस तरह तो आप ये पूछोगे की कोई बिजनेसमैन राजनेता पूरा टैक्स देता है या नही। अब टैक्स का राजनीती से क्या लेना देना है ?"
                 " आपका मतलब ये है की कोई आदमी कानून के अनुसार टैक्स ना देकर भी अच्छा राजनेता हो सकता है ? " हमने पूछा।
                 उसने फिर शान्ति से जवाब दिया, " हो सकता है का क्या मतलब है ? होते ही हैं। रोज इनकम टैक्स की रेड होती हैं, लोगों के पास काला धन मिलता है तो कोई पार्टी उसको पार्टी से निकालती है क्या ? बिजनेस, नैतिकता और राजनीती ये अलग अलग चीजें हैं। जब तक तुम इस बात को ठीक से नही समझोगे तब तक राजनीती को नही समझ सकते। "
                "  आपके हिसाब से ये जितने अपराधी आपकी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं उसमे कोई बुराई नही है। " हमने पूछा।
                " उनके आपराधिक मामलों पर कानून अपना काम करेगा और कर रहा है। उन पर कानून के अनुसार चुनाव लड़ने पर कोई रोक तो है नही। फिर उनके चुनाव लड़ने पर सवाल क्यों उठा रहे हो ?" उसने एतराज किया।
                  " आपकी पार्टी पर ये आरोप है की आपने अपनी सरकार होने का फायदा उठाकर अमित शाह के मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील नही की, जिससे वो बच गए। " हमने कहा।
                     वो फिर हमारी नासमझी पर थोड़ा सा मुस्कुराया फिर बोला , " क्या किसी मुसीबत में फंसे भारतीय की मदद करना अपराध है। हमने तो मानवीय कारणों से ललित मोदी तक की मदद की थी। फिर वही कानून का सवाल आता है। कानून में कहां लिखा है की हर मामले की सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाएगी। देश की अदालतों पर वैसे ही मुकदमों की संख्या का बहुत भार है जिससे लोगों को न्याय मिलने में देरी हो रही है , हम चाहते हैं की अदालतें दूसरे मामलों पर ध्यान दें ताकि लोगों को जल्दी न्याय मिल सके। क्या लोगों को जल्दी न्याय मिले आपको इस पर एतराज है। " फिर उसने रास्ते पर जाते हुए दो-तीन लोगों को रोक कर ऊँची आवाज में पूछा , " क्यों भाइयो, देश के लोगों को जल्दी न्याय मिलना चाहिए की नही ?" जाने वाले लोगों ने कहा की जरूर मिलना चाहिए।
                        फिर उसने हमारी तरफ देख कर कहा, " देखो जनता भी अमित शाह के मामले में अपील न करने का समर्थन करती है। "
                 सचमुच हमारी समझ में कुछ नही आया और हम बेवकूफों की तरह आगे चले गए।

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