अर्थ व्यवस्था में तेजी लाने के लिए ब्याज दरों में कमी की मांग लगातार उठती रही है। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के साथ तो इस मुद्दे पर वित्त मंत्री के मतभेद मीडिया में भी चर्चा का विषय रहे हैं। रिज़र्व बैंक महंगाई सहित कई चीजों को ध्यान में रखकर अपनी नीति की घोषणा करता है। देश के हालात की समीक्षा और उसके नतीजों पर अलग अलग विचार हो सकते हैं। परन्तु हमारे देश में ऊँची ब्याज दरों को अर्थ व्यवस्था में तेजी ना आने के लिए जिम्मेदार माना गया। इस पर वित्त मंत्री और दूसरे उद्योगपतियों के साथ साथ वित्त विशेषज्ञ भी अपना एतराज जताते रहे हैं। लेकिन मूल सवाल ये है की अर्थ व्यवस्था की तेजी का मामला केवल रिजर्व बैंक द्वारा रेट कम करने तक है या बैंकों द्वारा ब्याज दरों को कम करके आम उपभोक्ता तक पंहुचाने से जुड़ा है। अब तक रिजर्व बैंक 1. 25 % की दर कम कर चूका है लेकिन बैंकों ने केवल 50 -60 पैसे कम किये हैं। हैरत की बात है की जो वित्त मंत्री रिजर्व बैंक की रेट ना घटाने को लेकर सार्वजनिक आलोचना करते रहे हैं उन्होंने बैंको के रेट कम ना करने को लेकर एक शब्द नही बोला। दूसरे उद्योगपति और विशेषज्ञ भी इस पर आश्चर्य जनक रूप से चुप्पी साधे हुए हैं। आखिर ये खेल क्या है ?
खेल ये है की अब तक रिजर्व बैंक ने जिस रेट को कम करने की घोषणा की है उसका एक बड़ा हिस्सा बैंकों ने अपने मुनाफे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर लिया। एक तरफ उन्होंने लोन की दरें कम नही की , दूसरी तरफ उन्होंने लोगों द्वारा जमा करवाये जाने वाले डिपॉजिट पर ब्याज कम कर दिया। इससे लोन लेने वाले लोगों, या पहले से लोन ले चुके लोगों को तो कोई लाभ हुआ नही उल्टा बैंक में पैसा रखकर ब्याज पर गुजारा करने वाले रिटायर लोगों के लिए जरूर मुश्किलें खड़ी हो गयी। इस सारे खेल में किसी को अगर कोई फायदा हुआ तो वो बैंक ही हैं जिनके मुनाफे बिना कुछ किये बढ़ गए। आश्चर्य है की वित्त मंत्रीजी को अब अर्थ व्यवस्था पर उसके कुप्रभाव नजर नही आये। उद्योग पतिओं के मुनाफे पर आँख मूंदने वाली सरकार से और क्या उम्मीद की जा सकती है।
इस सारी व्यवस्था पर रिजर्व बैंक के गवर्नर जरूर अपनी नाराजगी व्यक्त करते रहे हैं। उन्होंने बैंको को ब्याज कम करने की हिदायत भी दी। लेकिन इस तरह की हिदायतों को हमेशा की तरह बैंकिंग सेक्टर ने नजरअंदाज कर दिया। इसलिए बैंको को ब्याज दर घटाने के लिए मजबूर करने के लिए और ग्राहकों तक इसका लाभ पंहुचाने के लिए रिजर्व बैंक को चाहिए की वो रिवर्स रेपो रेट में 1 % की कमी करे। पहले रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में दो प्रतिशत का अंतर होता था जिसे कम करते करते एक प्रतिशत पर ले आया गया। ये वो दर होती है जिसके अनुसार बैंको को अपना अतिरिक्त पैसा रिजर्व बैंक में पार्क करने पर रिजर्व बैंक उन्हें ब्याज के रूप में देती है। अगर ये दर अपेक्षाकृत रूप से कम होगी तो बैंक अपना पैसा रिजर्व बैंक में पार्क करने की बजाए थोड़ा कम ब्याज पर बाजार में लोन के रूप में देंगे। अगर सरकार और रिजर्व बैंक सचमुच ब्याज दरों में कमी लाना चाहती है और उपभोक्ताओं तक उसका लाभ पंहुचना चाहती है तो उसे तुरंत ये फैसला ले लेना चाहिए।
खेल ये है की अब तक रिजर्व बैंक ने जिस रेट को कम करने की घोषणा की है उसका एक बड़ा हिस्सा बैंकों ने अपने मुनाफे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर लिया। एक तरफ उन्होंने लोन की दरें कम नही की , दूसरी तरफ उन्होंने लोगों द्वारा जमा करवाये जाने वाले डिपॉजिट पर ब्याज कम कर दिया। इससे लोन लेने वाले लोगों, या पहले से लोन ले चुके लोगों को तो कोई लाभ हुआ नही उल्टा बैंक में पैसा रखकर ब्याज पर गुजारा करने वाले रिटायर लोगों के लिए जरूर मुश्किलें खड़ी हो गयी। इस सारे खेल में किसी को अगर कोई फायदा हुआ तो वो बैंक ही हैं जिनके मुनाफे बिना कुछ किये बढ़ गए। आश्चर्य है की वित्त मंत्रीजी को अब अर्थ व्यवस्था पर उसके कुप्रभाव नजर नही आये। उद्योग पतिओं के मुनाफे पर आँख मूंदने वाली सरकार से और क्या उम्मीद की जा सकती है।
इस सारी व्यवस्था पर रिजर्व बैंक के गवर्नर जरूर अपनी नाराजगी व्यक्त करते रहे हैं। उन्होंने बैंको को ब्याज कम करने की हिदायत भी दी। लेकिन इस तरह की हिदायतों को हमेशा की तरह बैंकिंग सेक्टर ने नजरअंदाज कर दिया। इसलिए बैंको को ब्याज दर घटाने के लिए मजबूर करने के लिए और ग्राहकों तक इसका लाभ पंहुचाने के लिए रिजर्व बैंक को चाहिए की वो रिवर्स रेपो रेट में 1 % की कमी करे। पहले रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में दो प्रतिशत का अंतर होता था जिसे कम करते करते एक प्रतिशत पर ले आया गया। ये वो दर होती है जिसके अनुसार बैंको को अपना अतिरिक्त पैसा रिजर्व बैंक में पार्क करने पर रिजर्व बैंक उन्हें ब्याज के रूप में देती है। अगर ये दर अपेक्षाकृत रूप से कम होगी तो बैंक अपना पैसा रिजर्व बैंक में पार्क करने की बजाए थोड़ा कम ब्याज पर बाजार में लोन के रूप में देंगे। अगर सरकार और रिजर्व बैंक सचमुच ब्याज दरों में कमी लाना चाहती है और उपभोक्ताओं तक उसका लाभ पंहुचना चाहती है तो उसे तुरंत ये फैसला ले लेना चाहिए।
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