Friday, October 2, 2015

आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली ( proportional representation system ) सभी चुनावी बिमारियों का इलाज है।

किसी भी देश या संस्था जो लोकतंत्र या जन प्रतिनिधित्व पर आधारित होने की बात करती है , उसका मूल्यांकन उसके चुनाव के तरीके से होता है। सभी देश अपने अपने देश में विभिन्न प्रकार की चुनावी प्रणालियां अपनाते हैं। समय के साथ जब उनकी समस्याएं और सीमाएं सामने आती हैं तो उनमे परिवर्तन किये जाते हैं। अगर ये परिवर्तन ना किये जाएँ तो लोगों का सही प्रतिनिधित्व नही होता। इसलिए बार बार चुनाव सुधारों की बात चलती है। इसी तरह की एक प्रणाली है आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली। इस प्रणाली को सही प्रतिनिधित्व के लिए सटीक प्रणाली माना जाता है। हालाँकि विभिन्न देशों की जरूरतों और स्थितियों को ध्यान में रखते हुए इसमें कुछ अलग अलग तरीके भी अपनाये गए हैं। इस प्रणाली के बारे में सबसे पहले जॉन स्टुअर्ट मिल ने लिखा था

The case for proportional representation was made by John Stuart Mill in his 1861 essay Considerations on Representative Government:
In a representative body actually deliberating, the minority must of course be overruled; and in an equal democracy, the majority of the people, through their representatives, will outvote and prevail over the minority and their representatives. But does it follow that the minority should have no representatives at all? ... Is it necessary that the minority should not even be heard? Nothing but habit and old association can reconcile any reasonable being to the needless injustice. In a really equal democracy, every or any section would be represented, not disproportionately, but proportionately. A majority of the electors would always have a majority of the representatives, but a minority of the electors would always have a minority of the representatives. Man for man, they would be as fully represented as the majority. Unless they are, there is not equal government ... there is a part whose fair and equal share of influence in the representation is withheld from them, contrary to all just government, but, above all, contrary to the principle of democracy, which professes equality as its very root and foundation.[1]
Most academic political theorists agree with Mill,[7] that in a representative democracy the representatives should represent all segments of society.

प्रणाली का प्रारूप 
                             इस प्रणाली के अनुसार पहले सभी पार्टियों के नाम पर वोट डाली जाती हैं। जिस पार्टी को जितने प्रतिशत वोट मिलते हैं उतने प्रतिशत सीटें उसे अलाट कर दी जाती हैं। चुनाव से पहले सभी पार्टिया अपने प्रतिनिधियों की लिस्ट चुनाव आयोग को सौंपती हैं और उनको जितनी सीटें मिलती हैं उस लिस्ट के अनुसार ऊपर से उतने प्रतिनिधि चुने हुए माने जाते हैं। ये प्रणाली विश्व के कई देशों में जैसे आस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड, फ़्रांस और रूस इत्यादि में लागु है। इस प्रणाली को सबसे बढ़िया और सटीक क्यों माना जाता है इसके कारण निम्नलिखित हैं।
उचित  प्रतिनिधित्व 
                            इस प्रणाली में सभी लोगों का उचित  प्रतिनिधित्व होता है। छोटे समूह जिनकी  संख्या 10 -12 % भी हो तो उनको भी उचित प्रतिनिधित्व मिलता है। हमारे देश में तो तमिलनाडु इत्यादि में पांच प्रतिशत वोट के फर्क से एक पार्टी सारी सीट जीत लेती है। दूसरे तरफ के लोग जिनकी  संख्या 40 % भी हो उन्हें कोई प्रतिनिधित्व नही मिलता।इस प्रणाली से दूसरे अल्पसंख्यक समूहों को भी उनका उचित प्रतिनिधित्व मिलता है संसद सही मायने में पुरे देश का प्रतिनिधित्व करती है।
धन के प्रभाव  पर रोक 
                             अलग अलग इलाके के अनुसार अलग अलग उम्मीदवार ना होने के कारण धन के बेतहाशा खर्चे पर भी रोक लगेगी। अभी तो उम्मीदवार खुद को जिताने के लिए भारी पैमाने पर पैसा खर्च करते हैं। ये प्रणाली लागु होने के बाद पार्टी के अनुसार खर्च की सीमा तय की जा सकती है। उस पर आयोग द्वारा नजर रखना भी आसान होगा। और इस बुराई को दूर करने के लिए मीडिया बहसों इत्यादि का इंतजाम किया जा सकता है ताकि लोगों के सवालों पर विभिन्न पार्टियों की राय जानी  जा सके। जब धनी उम्मीदवारों की मजबूरी नही रह जाएगी तो पार्टियां ईमानदार और काबिल लोगों के नाम अपनी लिस्ट में शामिल करेंगी और इस तरह संसद के प्रतिनिधियों का स्तर सुधरेगा।
बाहुबल पर रोक
                          धनी लोगों की तरह बाहुबलियों और अपराधियों पर भी अपने आप रोक लग जाएगी। इन बाहुबलियों का प्रभाव केवल अपने इलाके तक सिमित होता है। उसके बाद अगर कोई पार्टी किसी अपराधी को अपनी लिस्ट में शामिल करती है तो पुरे देश में उसका विरोध होगा और कोई पार्टी ये खतरा मोल नही लेना चाहेगी। अब तक ये गुंडा तत्व शरीफ लोगों को अपने क्षेत्र से जीतना तो दूर प्रचार भी नही करने देते।
महिलाओं का प्रतिनिधित्व 
                                  इस प्रणाली से महिलाओं को भी उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा। अभी तक पार्टियां उन्हें कम टिकट देती हैं और बहाना बनाती हैं की उनकी जीतने की संभावना कम होती है। एक स्तर तक इस बात में सच्चाई भी हो सकती है। इस प्रणाली के बाद महिलाओं की संख्या तय की जा सकती है और नियम बनाया जा सकता है की पार्टियां महिलाओं की लिस्ट अलग से देंगी। उसके बाद पार्टी को मिलने वाली सीटों में एक तिहाई सीटें उस लिस्ट में से चुनी जाएँगी। उसी तरफ अभी तक कमजोर वर्गों को प्रतिनिधित्व देने के लिए उनकी सीटें सुरक्षित कर दी जाती हैं जिससे दूसरे लोग वहां से चुनाव नही लड़ सकते। इस प्रणाली के अनुसार उनका हिस्सा भी सुनिश्चित किया जा सकता है।
                      इस तरह इस प्रणाली से कम से कम हमारे देश के चुनाव की तो सभी बिमारियों का अंत किया जा सकता है। फिर ये सवाल उठता है की अब तक इस प्रणाली को लागु करने के प्रयास क्यों नही किये गए। दरअसल राज करने वाली बड़ी पार्टियों को लगता है की उनके पास केवल 25 -30 % ही वोट प्रतिशत है और इस प्रणाली के लागु होने के बाद उनको कभी भी बहुमत नही मिलेगा और उन्हें दूसरी पार्टियों का समर्थन लेना पड़ेगा। दूसरी तरफ इन पार्टियों के पास पैसा भी अनाप-शनाप होता है और वो इसका उपयोग करके बहुमत प्राप्त कर लेती हैं। कुछ राजनैतिक पार्टिओं को ये बुराईया फायदा करती हैं इसलिए वो इस पर विचार ही नही करने देती। अब समय आ गया है की  देश  के लोग अपने सही प्रतिनिधित्व की मांग करें।
                    इस प्रणाली के बारे में और ज्यादा जानने के लिए विकिपीडिआ के इस पेज पर जा सकते हैं -https://en.wikipedia.org/wiki/Proportional_representation

ऊपर दिया गया एक संदर्भ यहां से लिया गया है।   ( 1 )

References--

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