Friday, October 30, 2015

चेतन भगत - यानी एक भक्त का रुदन

कल के दिव्य भास्कर ( गुजराती ) में चेतन भगत का एक लेख छपा है। जिसमे चेतन भगत ने सोशल मिडिया में उन्हें और उन जैसे लोगों को " भक्त " कहने पर एतराज किया है। ये एतराज वो कर सकते हैं लेकिन उन्होंने इन तथाकथित भक्तों और उनके लिए इस शब्द का इस्तेमाल करने वाले उदारवादियों की परिभाषा और प्रकृति बताने की कोशिश भी की है। उसने इन उदारवादियों के बारे में कहा है की ये अपार पैसे और सम्पत्ति के बीच में  पैदा हुए और अंग्रेजी माध्यम में पढ़े लिखे ऐसे लोगों की जमात है जिन्हे दुनिया के बारे में और वैश्विक संस्कृति के बारे में तो ज्यादा जानकारी होती है लेकिन इनके पास किसी समस्या का कोई इलाज नही होता।
                     दूसरी तरफ उसने " भक्त " के सम्बोधन से सम्बोधित किये जाने वाले लोगों की विशेषता बताते हुए लिखा है की ये राष्ट्रवादी बच्चे, जो प्रतिभाशाली और भारतीय संस्कृति के जानकर और आर्थिक विकास के इच्छुक विशाल समूह हैं। उसके बाद  वो सब बातें कहि जो टीवी चैनलों में बैठने वाले बीजेपी और आरएसएस के प्रतिनिधि और सोशल मीडिया में बैठे ये " भक्त " हमेशा कहते हैं। जैसे ये कांग्रेस की लड़ाई लड़ रहे हैं और की असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और की मुस्लिम कटट्रपंथियों के खिलाफ कभी बोलते नही हैं।
                     चेतन भगत और उन जैसे लोगों के लिए " भक्त " शब्द का इस्तेमाल क्यों किया जाता है उसका एक मुख्य कारण तो खुद उनके लेख में ही है। अपने लेख के अंत में दिए गए प्रवचन में उसने कहा है की हमे एक समाज बन कर रहने की जरूरत है ये बात इन उदारवादियों को समझनी चाहिए। क्या बात है भगत साहब ! एक समाज बनाने के लिए आपकी सरकार और संगठन ने पिछले 18 महीनो और उससे पहले भी जितने काम किये हैं वो सबके सामने हैं। चेतन भगत ने हर बार की तरह और एक सच्चे भगत की तरह इस आरोप को भी दोहराया है की गोधरा की घटना में मारे गए कारसेवकों पर  शब्द नही बोले और उनके लिए कुछ नही किया। और उसके बाद के दंगों पर हमेशा बात करते हैं। तो मैं ये पूछना चाहता हूँ की 13 साल बाद भी आपकी सरकार ट्रेन जलाने वाले असली मुजरिमो को पकड़ क्यों नही पाई। जिन लोगों को आपकी सरकार ने  पकड़ा था उन्हें तो उच्चत्तम न्यायालय ये कह कर बरी कर चूका है की उनको फ्रेम किया गया था।
                       अब मैं मुख्य सवाल पर आता हूँ। जिन लोगों को चेतन भगत अपार पैसे में पले और अंग्रेजी के महंगे स्कूलों में पढ़ा लिखा बताते हैं, इनमे से ऐसा कौन है ? ये सब लोग तो दूरदराज के गावों से आने वाले वो लोग हैं जो इंसानियत और उसके रास्ते, दोनों चीजों को समझते हैं। ये पढ़े लिखे ज्यादा हैं या ये दुनिया को ज्यादा अच्छी तरह से समझते हैं तो ये कोई आरोप हुआ ? आप लोगों के पास गजेन्द्र चौहान से ज्यादा जानकार और काबिल लोग नही हैं तो इसमें इन उदारवादियों की क्या गलती है। विख्यात साहित्यकार काशीनाथ सिंह ने आपको बाजारू लेखक कहा तो एक बार उनके सामने बैठ कर पूछते तो की ऐसा क्यों कहा। वैसे आप जैसे भक्तों का ये नामकरण किया ही इसलिए गया है की एक भक्त कभी भी अपने आराध्य देव द्वारा किये गए किसी भी काम का  कभी विश्लेषण नही करता। अभी भी लोग आसाराम बापू को फूल चढ़ाने जेल के दरवाजे तक जाते हैं इन्हे कहते हैं भक्त।
                       मैं आपसे घटनाओं का सही और निष्पक्ष विश्लेषण करने के लिए नही कहूँगा , क्योंकि भक्तों में इसकी तो योग्यता ही नही होती। फिर भी मैं आपको उसी दिन के उसी अख़बार में उर्विश कोठारी का एक व्यंग लेख जो " ट्राफिक पोलिस-भद्रंभद्र संवाद " के शीर्षक से छपा है पढ़ने की सलाह जरूर दूंगा। उसमे उन्होंने लिखा है , " की भद्रंभद्रो केवल जड़ता पूर्वक भूतकाल से चिपके तो रह सकते है,  उसमे से कुछ भी ना सिखने के लिए कृत-निश्चयी भी होते हैं। यही उनके भद्रंभद्र होने का कारण है और यही प्रमाण है। "
                         चेतन भगत " भक्त " इसमें  भद्रंभद्र की जगह केवल भक्त कर लें तो शायद बात उनकी समझ में आ जाये, लेकिन हो सकता है तब भी ना आये आखिर " भक्त " जो ठहरे।

1 comment:

  1. बहुत सटीक प्रतिवाद ...पर उपदेश कुशल बहुतेरे .....

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