बीजेपी और आरएसएस ने गाय को राष्ट्रिय पशु घोषित करने की मांग की है। वैसे तो इस मांग में ही इस समस्या का हल है। आरएसएस और बीजेपी अगर ये मान लेती हैं की गाय एक पशु है, फिर तो कोई समस्या ही नही बचती। समस्या तब खड़ी होती है जब वो इसे पशु मानने की बजाय माता कहने लगते हैं। समस्या ये है की बहुत से लोग गाय को माता नही मानते। ये उनका अधिकार है। आप किसी के सोचने के तरीके पर कोई पाबंदी तो लगा नही सकते। ठीक उसी तरह जो लोग गाय को माता मानते हैं उनका भी ये अधिकार है आप उन पर भी पाबंदी नही लगा सकते। अगर कोई आदमी गाय को माता मानता है, और गाय ही क्यों , वो किसी भी जानवर को माता मानता है तो उसे इसका अधिकार है आप उसे रोक नही सकते। रोक तो आप उसे भी नही सकते जो सगी माता को माता नही मानते हैं। इनमे से बहुत से ऐसे भी हैं जो सगी माँ को माँ नही मानते लेकिन गाय को माता मानते हैं। उसका एक बड़ा कारण ये है की गाय एक सुविधा युक्त माता है। उस पर ये आग्रह नही होता की आप इस माता को अपने साथ रखें। आप पड़ोसी की गाय को भी माता मान सकते हैं और माता मानने के बाद आप पर कोई नैतिक या भौतिक जिम्मेदारी नही आती। जिन लोगों ने कभी अपनी सगी माता को माता नही माना, गाय को माता मानने से उनका अपराध बोध कुछ कम हो सकता है। अब ऐसी हालत में गाय को राष्ट्रिय पशु घोषित करने की मांग हो रही है। मैंने इस पर विचार करने की कोशिश की है की अगर गाय को राष्ट्रिय पशु घोषित कर दिया जाता है तो उसके बाद और क्या क्या करना पड़ेगा।
जो लोग गाय पालते हैं वो उसे दूध के लिए पालते हैं। उससे बैल भी मिलते हैं लेकिन अब इस दौर में बैलों की जरूरत कम हो गयी है। गाय हर रोज बीस से पच्चीस किलो चारा खाती है। इसलिए जो लोग गाय को दूध के लिए पालते हैं वो ये देखते हैं की कहीं चारे की कीमत दूध की कीमत से ज्यादा ना हो जाये। इसलिए जब गाय बूढी होकर दूध देना बंद कर देती है तब किसान उसे बेच देते हैं। अब जब काम के लायक ना रहने के कारण कुछ लोग अपने सगे माँ या बाप को भी साथ रखने को तैयार नही हैं, और ये एक बड़ी सामाजिक समस्या के रूप में हमारे सामने है, और हम इसका कोई पुख्ता हल नही निकाल पाये हैं उस हालात में सरकार किसानो को इस बात के लिए मजबूर तो नही कर सकती की वो बेकार हो चुके गाय या बैल को अपने घर में रखे। उस हालत में सरकार को ये काम करने पड़ेंगे।
१. सरकार को गाय की पहचान के लिए एक आधार कार्ड की स्कीम बनानी होगी ताकि ये पहचान हो सके की ये गाय किसकी है।
२. जिस तरह बूढ़े लोगों को राहत देने के लिए सरकार बुढ़ापा पेंशन देती है, उसी तरह उसे बूढ़े और नाकारा हो चुके गाय और बैलों के लिए भी बुढ़ापा पेंशन देनी होगी ताकि उनके चारे का खर्चा निकल सके।
३. बहुत से किसान ऐसे भी हैं जिनके पास दो पशुओं को रखने की जगह ही नही होती है इसलिए सरकार को उनके लिए लाखों की तादाद में गौशालाएं और बैलो के लिए ओल्ड एज होम बनाने पड़ेंगे। जाहिर है की ये काम कोई PPP मॉडल से तो हो नही सकता, इसलिए सरकार को इसके लिए अपने बजट में प्रावधान करना होगा। और इनकी संख्या को देखते हुए हमारे पुरे बजट में ये अकेला काम भी हो सकेगा या नही इसमें शक है , वरना इसके लिए वर्ल्ड बैंक से लोन लेना होगा।
४. इस कानून के पालन के लिए विशेष निगरानी दस्तों की स्थापना करनी पड़ेगी और कुछ विशेष अदालतों का गठन भी करना पड़ेगा।
अगर सरकार ये सब काम कर सकती हो तो उसे गाय को राष्ट्रिय पशु घोषित करने की सोचनी चाहिए, वरना जो लोग आरएसएस की शाखाओं में बैठकर और सुबह एक रोटी गाय को खिलाकर अपना कर्तव्य पूरा समझ लेते हैं उन्हें कहा जाये की वो एक एक गाय पालकर दिखाएँ।
इसका दूसरा हल ये है की जो भी लोग भगवा कपड़े पहन कर समाज पर बोझ बने हुए हैं उनके लिए दो-चार गाय पालना अनिवार्य कर दिया जाये।
जो लोग गाय पालते हैं वो उसे दूध के लिए पालते हैं। उससे बैल भी मिलते हैं लेकिन अब इस दौर में बैलों की जरूरत कम हो गयी है। गाय हर रोज बीस से पच्चीस किलो चारा खाती है। इसलिए जो लोग गाय को दूध के लिए पालते हैं वो ये देखते हैं की कहीं चारे की कीमत दूध की कीमत से ज्यादा ना हो जाये। इसलिए जब गाय बूढी होकर दूध देना बंद कर देती है तब किसान उसे बेच देते हैं। अब जब काम के लायक ना रहने के कारण कुछ लोग अपने सगे माँ या बाप को भी साथ रखने को तैयार नही हैं, और ये एक बड़ी सामाजिक समस्या के रूप में हमारे सामने है, और हम इसका कोई पुख्ता हल नही निकाल पाये हैं उस हालात में सरकार किसानो को इस बात के लिए मजबूर तो नही कर सकती की वो बेकार हो चुके गाय या बैल को अपने घर में रखे। उस हालत में सरकार को ये काम करने पड़ेंगे।
१. सरकार को गाय की पहचान के लिए एक आधार कार्ड की स्कीम बनानी होगी ताकि ये पहचान हो सके की ये गाय किसकी है।
२. जिस तरह बूढ़े लोगों को राहत देने के लिए सरकार बुढ़ापा पेंशन देती है, उसी तरह उसे बूढ़े और नाकारा हो चुके गाय और बैलों के लिए भी बुढ़ापा पेंशन देनी होगी ताकि उनके चारे का खर्चा निकल सके।
३. बहुत से किसान ऐसे भी हैं जिनके पास दो पशुओं को रखने की जगह ही नही होती है इसलिए सरकार को उनके लिए लाखों की तादाद में गौशालाएं और बैलो के लिए ओल्ड एज होम बनाने पड़ेंगे। जाहिर है की ये काम कोई PPP मॉडल से तो हो नही सकता, इसलिए सरकार को इसके लिए अपने बजट में प्रावधान करना होगा। और इनकी संख्या को देखते हुए हमारे पुरे बजट में ये अकेला काम भी हो सकेगा या नही इसमें शक है , वरना इसके लिए वर्ल्ड बैंक से लोन लेना होगा।
४. इस कानून के पालन के लिए विशेष निगरानी दस्तों की स्थापना करनी पड़ेगी और कुछ विशेष अदालतों का गठन भी करना पड़ेगा।
अगर सरकार ये सब काम कर सकती हो तो उसे गाय को राष्ट्रिय पशु घोषित करने की सोचनी चाहिए, वरना जो लोग आरएसएस की शाखाओं में बैठकर और सुबह एक रोटी गाय को खिलाकर अपना कर्तव्य पूरा समझ लेते हैं उन्हें कहा जाये की वो एक एक गाय पालकर दिखाएँ।
इसका दूसरा हल ये है की जो भी लोग भगवा कपड़े पहन कर समाज पर बोझ बने हुए हैं उनके लिए दो-चार गाय पालना अनिवार्य कर दिया जाये।
शीर्षक में रष्ट्रीय (राष्ट्रीय) को ठीक कर लें
ReplyDeleteअच्छी विचार प्रस्तुति