साहित्य अकादमी व अन्य सम्मान लौटाने वाले लेखकों ने इस दौर की असहिष्णुता और हमलों का विरोध करने के लिए जो तरीका अपनाया उसके पीछे मुख्य रूप से एक संस्था के रूप में अपने सदस्यों की सुरक्षा के मुद्दे पर अकादमी की विफलता का विरोध ही मुख्य था। इस बात पर की स्वतंत्र लेखन और विरोध की आवाज को चुप करवाने के लिए हो रहे हमले तेज हो रहे हैं शायद ही कोई तटस्थ आदमी इंकार कर सके। असहिष्णु हमलों की एक पूरी श्रृंखला सामने है और इसका नेतृत्व सत्ता में बैठे दल से संबंध रखने वाली विचारधारा के लोग कर रहे हैं। सरकार की चुप्पी उकसावे का काम कर रही है। जाहिर है की इसे बिना विरोध के नही जाने दिया जा सकता।
लेकिन सम्मान लौटाने वाले लेखकों के विरोध में प्रदर्शन करने वाले लोगों ने टीवी के सामने जो तर्क दिए वो हैरान करने वाले हैं। उन्होंने सरकार के प्रवक्ताओं की जुबान में जुबान मिलाते हुए इन लेखकों पर एक विचारधारा से संबन्धित होने का आरोप लगाया। उनका ये आरोप की ये सब वामपंथी विचारधारा से हैं अगर सीधा सीधा मान लिया जाये तो भी किसी विचारधारा से संबंधित होना क्या कोई अपराध है ? संघ परिवार से जुड़े लोगों में वामपंथी लेखकों के प्रति ईर्ष्या का भाव हमेशा से रहा है। वामपंथी लेखकों के लेखन का स्तर और पूरी दुनिया में उनकी मान्यता और सम्मान इन लोगों से कभी बर्दाश्त नही हुआ। फिर भी हम इस आरोप की थोड़ी छानबीन करते हैं।
इन लेखकों ने आरोप लगाया है की साहित्य अकादमी पर हमेशा से वामपंथी विचारधारा के लेखकों का कब्जा रहा है और साहित्य अकादमी पुरुस्कार भी योग्यता के आधार पर नही बल्कि विचारधारा के आधार पर दिए जाते हैं। अब इस पर एक सवाल खड़ा होता है। देश में साहित्य अकादमी के अलावा भी ऐसी प्रतीष्ठित संस्थाए हैं जो साहित्य के क्षेत्र में अवार्ड देती हैं। हमारे ही देश में साहित्य के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठा प्राप्त जो सम्मान है वो भारतीय ज्ञानपीठ है। यह सम्मान देश के एक बहुत ही सम्मानित प्रकाशन समूह की तरफ से दिया जाता है। इस सम्मान को तय करने के लिए जो समिति है उसमे देश के सबसे सम्मानित और योग्य लोग होते हैं। साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त लेखकों को दरबारी बताने वाले ये लेखक बताएंगे की उनमे से कितनो को ज्ञानपीठ सम्मान मिला है ? और जिन लोगों को अब तक ज्ञानपीठ सम्मान दिया गया है उनमे कितने लेखक ऐसे हैं जिनको साहित्य अकादमी सम्मान नही मिला है। शायद ही वो कोई नाम ढूंढ पायें। तो क्या भारतीय ज्ञानपीठ भी वामपंथियों की संस्था है ?
इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कई सम्मान हैं। उनमे से कौन कौनसे सम्मान इन तथाकथित साहित्यकारों को मिले हैं। नही जनाब, आपको अगर साहित्य अकादमी सम्मान नही मिला तो इसलिए नही मिला की आप उसके लायक नही थे। आप लोगों ने इन लेखकों का विरोध करके भी अपनी समझ के स्तर का सबूत दे दिया है। कोई लेखक या कलाकार किसी चीज का विरोध किस तरह करता है ये उसका अधिकार है। जिन लेखकों ने अकादमी के विरोध में सम्मान नही लौटाया, उनका भी ये अधिकार है। उन्होंने सम्मान नही लौटाया तो इसका मतलब ये नही हो जाता की उनका स्तर नीचा है या की वो इस माहोल का विरोध नही करते। लेकिन जिन्होंने सम्मान लौटाया है उन्हें दरबारी कहना केवल स्तरहीन समझ है।
सरकार की हाँ में हाँ मिलाने वाले और उससे फायदा उठाने की कोशिश करने वाले लोग हर दौर में रहे हैं। आज इस दौर में वो लोग कौन हैं उन्होंने अपनी पहचान सार्वजनिक कर दी है।
लेकिन सम्मान लौटाने वाले लेखकों के विरोध में प्रदर्शन करने वाले लोगों ने टीवी के सामने जो तर्क दिए वो हैरान करने वाले हैं। उन्होंने सरकार के प्रवक्ताओं की जुबान में जुबान मिलाते हुए इन लेखकों पर एक विचारधारा से संबन्धित होने का आरोप लगाया। उनका ये आरोप की ये सब वामपंथी विचारधारा से हैं अगर सीधा सीधा मान लिया जाये तो भी किसी विचारधारा से संबंधित होना क्या कोई अपराध है ? संघ परिवार से जुड़े लोगों में वामपंथी लेखकों के प्रति ईर्ष्या का भाव हमेशा से रहा है। वामपंथी लेखकों के लेखन का स्तर और पूरी दुनिया में उनकी मान्यता और सम्मान इन लोगों से कभी बर्दाश्त नही हुआ। फिर भी हम इस आरोप की थोड़ी छानबीन करते हैं।
इन लेखकों ने आरोप लगाया है की साहित्य अकादमी पर हमेशा से वामपंथी विचारधारा के लेखकों का कब्जा रहा है और साहित्य अकादमी पुरुस्कार भी योग्यता के आधार पर नही बल्कि विचारधारा के आधार पर दिए जाते हैं। अब इस पर एक सवाल खड़ा होता है। देश में साहित्य अकादमी के अलावा भी ऐसी प्रतीष्ठित संस्थाए हैं जो साहित्य के क्षेत्र में अवार्ड देती हैं। हमारे ही देश में साहित्य के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठा प्राप्त जो सम्मान है वो भारतीय ज्ञानपीठ है। यह सम्मान देश के एक बहुत ही सम्मानित प्रकाशन समूह की तरफ से दिया जाता है। इस सम्मान को तय करने के लिए जो समिति है उसमे देश के सबसे सम्मानित और योग्य लोग होते हैं। साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त लेखकों को दरबारी बताने वाले ये लेखक बताएंगे की उनमे से कितनो को ज्ञानपीठ सम्मान मिला है ? और जिन लोगों को अब तक ज्ञानपीठ सम्मान दिया गया है उनमे कितने लेखक ऐसे हैं जिनको साहित्य अकादमी सम्मान नही मिला है। शायद ही वो कोई नाम ढूंढ पायें। तो क्या भारतीय ज्ञानपीठ भी वामपंथियों की संस्था है ?
इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कई सम्मान हैं। उनमे से कौन कौनसे सम्मान इन तथाकथित साहित्यकारों को मिले हैं। नही जनाब, आपको अगर साहित्य अकादमी सम्मान नही मिला तो इसलिए नही मिला की आप उसके लायक नही थे। आप लोगों ने इन लेखकों का विरोध करके भी अपनी समझ के स्तर का सबूत दे दिया है। कोई लेखक या कलाकार किसी चीज का विरोध किस तरह करता है ये उसका अधिकार है। जिन लेखकों ने अकादमी के विरोध में सम्मान नही लौटाया, उनका भी ये अधिकार है। उन्होंने सम्मान नही लौटाया तो इसका मतलब ये नही हो जाता की उनका स्तर नीचा है या की वो इस माहोल का विरोध नही करते। लेकिन जिन्होंने सम्मान लौटाया है उन्हें दरबारी कहना केवल स्तरहीन समझ है।
सरकार की हाँ में हाँ मिलाने वाले और उससे फायदा उठाने की कोशिश करने वाले लोग हर दौर में रहे हैं। आज इस दौर में वो लोग कौन हैं उन्होंने अपनी पहचान सार्वजनिक कर दी है।
विचारणीय सम -सामयिक प्रस्तुति ..
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