Tuesday, March 15, 2016

प. बंगाल में तृणमूल की जमीन खिसक रही है

                 प. बंगाल में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हो चुकी है। इसके साथ ही वहां चुनाव में जीत हार की सम्भावनाओ का विश्लेषण भी होने लगा है। वैसे तो मुख्य तौर पर मीडिया वाम विरोधी ही रहा है। और हर बार वामपंथ के हारने की भविष्यवाणियां करता है। कुछ सालों से ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल के जिस तरह के रिजल्ट आये हैं उससे अब कोई गंभीर आदमी इन पर भरोसा नही करता। हाँ, एक मनोरंजक कार्यक्रम की तरह इन्हे देख जरूर लेता है। जब वो इसे देख लेता है तो चैनल की TRP बढ़ती है। और एकाध चैनल को छोड़ दें तो उनके लिए TRP ज्यादा मायने रखती है और विश्वसनीयता कम मायने रखती है।
                 लेकिन इस दौरान कुछ गंभीर और तठस्थ लेखक और पत्रकार भी इस मामले पर लिखते हैं। वो अपने हिसाब से चीजों का विश्लेषण करते हैं। इस तरह के लेख और विश्लेषण अख़बारों में आने शुरू भी हो गए हैं। इनके साथ ही कुछ आंकड़े भी छपते हैं और उनकी विवेचना भी होती है। इन्ही आंकड़ों के आधार पर मैं भी अपनी बात कहना चाहता हूँ। मैंने इस लेख के शीर्षक में ही ये कहा है की तृणमूल कांग्रेस हार रही है। उसका कारण निम्न है। -
                  1 . पिछले चुनाव में तृणमूल कांग्रेस मोदीजी की ही तरह बहुत बड़े बड़े वायदे करके सत्ता में आई थी। उसमे बंगाल में परिवर्तन का वायदा प्रमुख था। उसमे सबसे बड़ा वायदा युवाओं को रोजगार देने का था। साथ ही साफ सुथरा प्रशासन देने का वायदा भी था। लेकिन आज एक भी उपलब्धि ममता सरकार के पास नही है जिसको लेकर वो मतदाताओं के सामने जा सके। बल्कि लोगों ने भृष्टाचार का एक बहुत ही भयावह रूप देखा है जो अब तक बंगाल के लिए दूर की बात थी। वाममोर्चा सरकार के मंत्रियों पर कोई भी आरोप नही था इस बात को उसके विरोधी भी स्वीकार करते हैं। इसलिए एक प्रगतिशील परिवर्तन के वायदे का भरम टूट चूका है।
                   2 . पिछले दिनों केंद्र सरकार की तरफ से जिस तरह से आरएसएस की विचारधारा को लागु करने की कोशिश की जा रही है और उसके कारण छात्रों, लेखकों और बुद्धिजीवियों में इसके प्रति जो विरोध बढ़ रहा है और उसके कारण उन्हें जिस तरह के हमलों का सामना करना पड़ रहा है उस पर तृणमूल कांग्रेस एकदम चुप ही रही है। उसका एक कारण ये भी है की उसको लगता है की ये वामपंथ पर हमला है सो अच्छा ही है। लेकिन अब बात उससे कहीं आगे निकल चुकी है। ये हमला वामपंथियों से आगे बढ़कर अब लगभग हर लोकतान्त्रिक और धर्मनिरपेक्ष सोच वाले व्यक्ति और संस्थाओं को अपने लपेटे में ले चूका है। और इस मामले में प. बंगाल की एक शानदार परम्परा रही है। इससे इस तबके का तृणमूल से मोहभंग हो चूका है।
                   3 . ममता सरकार ने इस दौरान जिस तरह से माहोल को साम्प्रदायिक करने की कोशिश की है उसे बंगाल के लोगों ने पसंद नही किया है। बंगाल की संस्कृति में इस तरह के विभाजन की परम्परा नही रही है। इसलिए बंगालियों का एक बड़ा हिस्सा ये मानता है की ये तृणमूल और बीजेपी की मिलीजुली साजिश है ताकि वोटों का धुर्वीकरण करके वोट हांसिल किये जा सकें।
                    4.   अब सवाल है आंकड़ों का। पिछले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को लगभग 39 % वोट मिले थे और वाम मोर्चा को लगभग 40 % वोट मिले थे। लेकिन ज्यादा वोट शेयर होने के बावजूद वो चुनाव हार गए थे। इसके साथ ही कांग्रेस को 10 % वोट मिले थे और बीजेपी को लगभग 6 %  थे। जब लोकसभा चुनाव हुए तो उस समय मोदी लहर सारे देश में काम कर रही थी। उस समय तृणमूल कांग्रेस को 39 % और कांग्रेस को फिर लगभग 10 % वोट मिले। लेकिन वाममोर्चा के वोट घटकर लगभग 29 % रह गए और बीजेपी के वोट बढ़कर लगभग 17 % हो गए। लेकिन ये एक वक्ती शिफ्ट थी। उसके बाद किसी भी चुनाव में बीजेपी अपना वोट शेयर बनाये नही रख पाई। अब भी राजनैतिक विश्लेषकों का अनुमान है की बीजेपी का वोट शेयर घटकर वापिस 6 % पर आ जाने वाला है और जो लोग वाममोर्चा से बीजेपी की तरफ गए थे वो वापिस लोट आये हैं। अब चूँकि ये विधानसभा चुनाव है और बीजेपी इसमें मुकाबले में नही है सो उसे वोट नही मिलेंगे। अब वाममोर्चा के 40 % वोट और कांग्रेस के 10 % वोट को मिला लिया जाये तो ये लगभग 50 % होता है। ये भी मान लिया जाये की किसी भी पार्टी का पूरा वोट शेयर शिफ्ट नही होता है तो भी इन दोनों पार्टियों को लगभग 45 % वोट मिलने का अनुमान है। दूसरी तरफ अगर तृणमूल अपने वोट शेयर को पूरा बचाये भी रखती है तो उसको 39 % वोट मिलने वाला है। 6 % का फर्क सीधे मुकाबले में बहुत निर्णायक होता है और बिहार की तरह शायद तृणमूल 80 सीट का आंकड़ा पार ना कर पाये।
                   5 . राजनीती में इस बात का बहुत महत्त्व है की कौन सा दल सेंटर स्टेज पर है। आज वाममोर्चा राजनीती के सेंटर स्टेज पर है भले ही हमलों के कारण क्यों ना हो। इसलिए इस बात के स्पष्ट संकेत हैं की तृणमूल कांग्रेस हारने जा रही है।
 

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