पिछले दो सालों में, जब से यह सरकार आई है तब से किसी ने महिला आरक्षण बिल का नाम भी नही सुना। जब बीजेपी की सरकार नही थी तो सुषमा स्वराज बाकि विपक्षी महिला सांसदों के हाथ में हाथ डालकर फोटो उतरवाती थी और महिलाओं के लिए जोशीले भाषण देती थी। लेकिन जब से उनकी सरकार आई है तब से उनकी महिला सांसदों के साथ बोलचाल बंद है। हम लगातार संसद को रोकने के लिए विपक्ष को कोसते देखते हैं और अटके हुए बिलों की सूचि अख़बारों में छपती है। लेकिन उसमे महिला आरक्षण मिल का नाम नही होता। क्योंकि वो बिल राज्य सभा में, जहां विपक्ष का बहुमत है वहां अटका हुआ नही है बल्कि लोकसभा में जहां सरकार के पास पूर्ण बहुमत है वहां अटका हुआ है। और चूँकि बीजेपी इसे पास नही कराना चाहती इसलिए इसका जिक्र नही होता। पहले हम इसे बीजेपी का दोगलापन समझते थे। लेकिन अब हमे महिलाओं के सम्मेलन में प्रधानमंत्री का भाषण सुनकर ये मालूम हुआ की महिलाएं तो पहले ही सशक्त हैं। उसके बाद से हमे भी ज्ञानबोध हुआ। बीजेपी को ये ज्ञानबोध 18 महीने पहले हो चूका था।
इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री के ज्ञानपूर्ण भाषण में और भी कई बातें थी जैसे हमे ये भी मालूम पड़ा की महिलाएं घर को बहुत अच्छी तरह चलाती हैं। अब तक हमे और देश को इसका पता नही था। प्रधानमंत्री अपनी पूरी भाषण कला उड़ेल रहे थे और लगातार तालियों का इंतजार कर रहे थे। माननीय सुमित्रा महाजन और माननीय नजमा हेपतुल्ला के चेहरे पर संतोष के भाव थे। इसी भाषण में प्रधानमंत्री ने एक नया रहस्योद्घाटन भी किया। उन्होंने कहा की व्यवस्था परिवर्तन से कुछ नही होता, बल्कि असल जरूरत है की महिलाएं खुद को बदलें। क्या करें ? आप कह रहे हैं की वो सशक्त हैं, अच्छा घर चलाती हैं और टेक्नोलॉजी का प्रयोग बेहतर ढंग से करती हैं। फिर किस बदलाव की जरूरत है ? महिलाएं अशक्त हो जाएँ या अच्छा घर चलाना बंद कर दें या तकनीक को भूल जाएँ। खैर इस पर ABVP के छात्र शोध करेंगे। लेकिन हमे ये मालूम हो गया की महिला आरक्षण बिल क्यों नही आ रहा। क्योंकि उसकी जरूरत ही नही है। अब भी जो लोग उसका इंतजार या उम्मीद करेंगे उनको तो पागल ही कहा जा सकता है।
फिर इस देश में अशक्त कौन हैं भाई जिनके लिए काम करने की जरूरत है। वो हैं बेचारे उद्योगपति। ये निरीह किस्म के प्राणी आजकल बहुत मुश्किल में हैं। क्या आपको इनकी दुर्दशा के आंकड़े मालूम हैं। नही ना। मैं बताता हूँ। देश का ये तबका जिसमे कुल मिलाकर एक प्रतिशत लोग शामिल हैं वो देश की कुल सम्पत्ति के 50 प्रतिशत के मालिक हैं। केवल 50 प्रतिशत के। कितनी शर्म की बात है। देश की पूरी आधी सम्पत्ति के मालिक ये गए गुजरे 99 प्रतिशत लोग हैं। अगर देश की आधी सम्पत्ति देश का ये गरीब गुरबा दबा कर रखेगा तो हो चूका विकास। इसलिए सरकार का पहला कर्तव्य है इस बेशकीमती सम्पत्ति को इनके कब्जे से मुक्त करवाना ताकि देश का विकास हो सके और इन बेचारे निरीह उद्योगपतियों को कुछ राहत मिल सके। इसके लिए सरकार ने प्रोविडेंट फंड पर टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा तो उसका विरोध हो गया, इन उद्योगपतियों ने मजबूरी में कुछ बैंकों का कर्ज नही लौटाया तो उस पर सवाल उठ रहे हैं, सरकार इनके लिए भूमि अधिग्रहण बिल लेकर आई तो उसको पास नही होने दिया और अब GST बिल को लटका कर बैठे हैं। सारा देश ही देशद्रोही हो गया है किसी को देश के विकास की चिंता ही नही है। बेचारी सरकार अकेली क्या करे ?
इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री के ज्ञानपूर्ण भाषण में और भी कई बातें थी जैसे हमे ये भी मालूम पड़ा की महिलाएं घर को बहुत अच्छी तरह चलाती हैं। अब तक हमे और देश को इसका पता नही था। प्रधानमंत्री अपनी पूरी भाषण कला उड़ेल रहे थे और लगातार तालियों का इंतजार कर रहे थे। माननीय सुमित्रा महाजन और माननीय नजमा हेपतुल्ला के चेहरे पर संतोष के भाव थे। इसी भाषण में प्रधानमंत्री ने एक नया रहस्योद्घाटन भी किया। उन्होंने कहा की व्यवस्था परिवर्तन से कुछ नही होता, बल्कि असल जरूरत है की महिलाएं खुद को बदलें। क्या करें ? आप कह रहे हैं की वो सशक्त हैं, अच्छा घर चलाती हैं और टेक्नोलॉजी का प्रयोग बेहतर ढंग से करती हैं। फिर किस बदलाव की जरूरत है ? महिलाएं अशक्त हो जाएँ या अच्छा घर चलाना बंद कर दें या तकनीक को भूल जाएँ। खैर इस पर ABVP के छात्र शोध करेंगे। लेकिन हमे ये मालूम हो गया की महिला आरक्षण बिल क्यों नही आ रहा। क्योंकि उसकी जरूरत ही नही है। अब भी जो लोग उसका इंतजार या उम्मीद करेंगे उनको तो पागल ही कहा जा सकता है।
फिर इस देश में अशक्त कौन हैं भाई जिनके लिए काम करने की जरूरत है। वो हैं बेचारे उद्योगपति। ये निरीह किस्म के प्राणी आजकल बहुत मुश्किल में हैं। क्या आपको इनकी दुर्दशा के आंकड़े मालूम हैं। नही ना। मैं बताता हूँ। देश का ये तबका जिसमे कुल मिलाकर एक प्रतिशत लोग शामिल हैं वो देश की कुल सम्पत्ति के 50 प्रतिशत के मालिक हैं। केवल 50 प्रतिशत के। कितनी शर्म की बात है। देश की पूरी आधी सम्पत्ति के मालिक ये गए गुजरे 99 प्रतिशत लोग हैं। अगर देश की आधी सम्पत्ति देश का ये गरीब गुरबा दबा कर रखेगा तो हो चूका विकास। इसलिए सरकार का पहला कर्तव्य है इस बेशकीमती सम्पत्ति को इनके कब्जे से मुक्त करवाना ताकि देश का विकास हो सके और इन बेचारे निरीह उद्योगपतियों को कुछ राहत मिल सके। इसके लिए सरकार ने प्रोविडेंट फंड पर टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा तो उसका विरोध हो गया, इन उद्योगपतियों ने मजबूरी में कुछ बैंकों का कर्ज नही लौटाया तो उस पर सवाल उठ रहे हैं, सरकार इनके लिए भूमि अधिग्रहण बिल लेकर आई तो उसको पास नही होने दिया और अब GST बिल को लटका कर बैठे हैं। सारा देश ही देशद्रोही हो गया है किसी को देश के विकास की चिंता ही नही है। बेचारी सरकार अकेली क्या करे ?
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