Wednesday, March 2, 2016

एक संघी का लाजवाब तर्क

                 कल मेरी एक संघी के साथ बात हो रही थी। बात आजादी की लड़ाई में कांग्रेस, कम्युनिस्टों, महात्मा गांधी और आरएसएस की भूमिका  पर हो रही थी। आहिस्ता आहिस्ता बहस महात्मा गांधी और आरएसएस की भूमिका पर केंद्रित हो गयी। इस पर उस संघी ने ये तर्क दिया। ----
               उसने कहा की महात्मा गांधी पर असहयोग आंदोलन को वापिस लेने, भारत छोडो आंदोलन देरी से शुरू करने, पटेल की जगह जवाहरलाल को प्रधानमंत्री बनाने, भगत सिंह के लिए कुछ ना करने और भारत पाकिस्तान का बंटवारा नही रोक पाने इत्यादि पचासों आरोप हैं। दूसरी तरफ आरएसएस पर आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों का साथ  देने के अलावा कोई दूसरा आरोप है क्या ?
                 मुझे अब तक जवाब नही सूझ रहा।

2 comments:

  1. १ अप्रैल १८८९ - मृत्यु : २१ जून १९४०) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक एवं प्रकाण्ड क्रान्तिकारी थे।[1] उनका जन्म हिन्दू वर्ष प्रतिपदा के दिन हुआ था।[2] घर से कलकत्ता गये तो थे डाक्टरी पढने परन्तु वापस आये उग्र क्रान्तिकारी बनकर। कलकत्ते में श्याम सुन्दर चक्रवर्ती के यहाँ रहते हुए बंगाल की गुप्त क्रान्तिकारी संस्था अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य बन गये। सन् १९१६ के कांग्रेस अधिवेशन में लखनऊ गये। वहाँ संयुक्त प्रान्त (वर्तमान यू०पी०) की युवा टोली के सम्पर्क में आये। बाद में कांग्रेस से मोह भंग हुआ और नागपुर में संघ की स्थापना कर डाली।
    सन् १९३५-३६ तक ऐसी शाखाएं केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित थी और इसके स्वंयसेवकों की संख्या कुछ हज़ार तक ही थी |

    ReplyDelete
    Replies
    1. यही दिक्क़त है की मुख्य बातों से ध्यान हटा कर और माथे पर लाल रंग लगाकर कोई शहीद नही हो जाता। आपने पुरे आरएसएस की परम्परा में केवल एक आदमी का ही नाम लिया यही अपने आप में उसके चरित्र का सबूत है। दूसरी बात ये है की प्रकाण्ड क्रन्तिकारी किसे कहा जाता है जरा बताएंगे ? आपने उनका जीवन चरित्र लिखते हुए ये नही बताया की उन्होंने कितने दिन जेल में बिताये या कितनी बार लाठियां खाई। आपके कहे अनुसार उनके पास 1935 -36 में भी कुछ हजार कार्यकर्ता थे। क्या उन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए कोई आंदोलन चलाया। कांग्रेस से मतभेद हो सकता है, भगत सिंह का भी था। लेकिन संघ के पास एक उदाहरण नही है इसलिए जब आजादी की लड़ाई की बात आती है तो संघ के लोग मुंह घुमा लेते हैं।

      और ये सब कोई संयोग नही है। संघ वैचारिक रूप से आजादी की लड़ाई का विरोधी रहा है। उस समय के सर संघ चालक गोलवलकर की किताब ( बंच ऑफ थॉट्स ) पढ़ लीजिये तो आपको खुद मालूम हो जायेगा।

      Delete

Note: Only a member of this blog may post a comment.