क्या आपने फेवीक्विक का वो विज्ञापन देखा है जिसमे एक गरीब लारी वाले से एक महंगी कार की लाइट टूट जाती है। कार वाला बाहर निकल कर चिल्लाता है और बेचारा लारी वाला बुरी तरह डर जाता है। तभी कार वाला उससे कहता है निकाल पांच रूपये।
मुझे ये विज्ञापन आज NGT के उस फैसले के बाद याद आया जिसमे उसने श्री श्री रविशंकर के कार्यक्रम पर अपना फैसला सुनाते हुए लगभग उसी तरह की मांग कर दी।
सबसे बड़ी बात ये है की देश में ऐसा कौनसा आदमी था जिसको इस फैसले की पहले से उम्मीद ना रही हो। श्री श्री रविशंकर और उनकी संस्था तो आश्वस्त ही थी इसलिए उसकी तैयारियां अपने कार्यक्रम अनुसार चल रही थी। उसे तो रत्ती भर संदेह नही था। दूसरी तरफ सरकार थी जिसने उस को अघोषित अनुमति दे रखी थी और अनुमति ही नही दे रखी थी बल्कि पूरी सेना और पुलिस को भी इसकी तैयारियों में झोंक रखा था। पूरी बीजेपी अपने सहयोगी श्री श्री रविशंकर के साथ खड़ी थी। संसद में मंत्री कह रहे थे की सभी अनुमतियाँ ली गयी हैं और कोर्ट में सभी सरकारी विभाग कह रहे थे की किसी अनुमति की जरूरत ही नही है। दूसरी देश की जनता है जिसे इस तरह के हर मामले में होने वाले हर निर्णय का पहले से ही अनुमान होता है। हर बार की तरह इस बार भी वही हुआ। एक दो डांट फटकार और फिर देरी का रोना रोकर अनुमति। हमारे लिए ये कोई नई बात नही है। हम ये सब एनरॉन के मामले में देख चुके हैं। जब अदालत शुरू में इस तरह के कार्यक्रम पर रोक नही लगाती तभी उसके अंतिम फैसले का अनुमान हो जाता है। और ये कोई अलग कार्यक्रम नही है भाई, वहां प्रधानमंत्री के लिए अलग मंच बन रहा है।
लेकिन सवाल ये है की न्याय के नाम पर इस तरह की मिलीभगत और धोखाधड़ी आखिर कब तक चलेगी। जब कोई गरीब सामने होता है तो हर संस्था को दो दो हाथ लम्बे दांत उग जाते हैं। जब 15 साल पुरानी टैक्सी पर प्रतिबंध लगाने की बात होती है और सामने गरीब टैक्सी वाले होते हैं तो यही NGT इस तरह व्यवहार करता है जैसे बब्बर शेर हो और जब मामला बड़े लोगों का होता है तो उसकी बेबसी देखते ही बनती है। तुम लाख अभिनय करो लेकिन सच्चाई लोगों को दिखाई देती है। केवल कुछ भक्तों और कुछ बुद्धिविहीन लोगों को छोड़ दिया जाये तो। मेरी कई आम लोगों से बात हुई तो उन्हें इस पर कोई आश्चर्य नही हुआ, उल्टा मेरी समझ पर आश्चर्य हुआ।
लेकिन मैं एक बात कहना चाहता हूँ। पर्यावरण को होने वाले नुकसान से क्या केवल गरीब लोग ही प्रभावित होंगे। जब आपने कारखानो और दूसरे जिम्मेदार लोगों को इसकी छूट दी थी तो इसका नतीजा ये हुआ की आज आपको सम-विसम फार्मूला अपनाना पड रहा है। कल ये कार्यक्रम करके श्री श्री रविशंकर चले जायेंगे, प्रधानमंत्री को एक बड़ी भीड़ के सामने भाषण देने का मौका मिल चूका होगा लेकिन उसके बाद ? पहले से ज्यादा मैली यमुना तुम्हारे सामने होगी। और उसके साथ पर्यावरण से जुड़े वो सारे खतरे कुछ और भयावह रूप में सामने होंगे। जो लोग ये समझते हैं की इससे उन्हें कोई फर्क नही पड़ता उनके लिए जनाब राहत इन्दोरी साहब की एक गजल की एक लाइन सुना रहा हूँ हालाँकि इसे उन्होंने दूसरे संदर्भ में लिखा था।
लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में,
यहां केवल हमारा मकान थोड़ी है।
मुझे ये विज्ञापन आज NGT के उस फैसले के बाद याद आया जिसमे उसने श्री श्री रविशंकर के कार्यक्रम पर अपना फैसला सुनाते हुए लगभग उसी तरह की मांग कर दी।
सबसे बड़ी बात ये है की देश में ऐसा कौनसा आदमी था जिसको इस फैसले की पहले से उम्मीद ना रही हो। श्री श्री रविशंकर और उनकी संस्था तो आश्वस्त ही थी इसलिए उसकी तैयारियां अपने कार्यक्रम अनुसार चल रही थी। उसे तो रत्ती भर संदेह नही था। दूसरी तरफ सरकार थी जिसने उस को अघोषित अनुमति दे रखी थी और अनुमति ही नही दे रखी थी बल्कि पूरी सेना और पुलिस को भी इसकी तैयारियों में झोंक रखा था। पूरी बीजेपी अपने सहयोगी श्री श्री रविशंकर के साथ खड़ी थी। संसद में मंत्री कह रहे थे की सभी अनुमतियाँ ली गयी हैं और कोर्ट में सभी सरकारी विभाग कह रहे थे की किसी अनुमति की जरूरत ही नही है। दूसरी देश की जनता है जिसे इस तरह के हर मामले में होने वाले हर निर्णय का पहले से ही अनुमान होता है। हर बार की तरह इस बार भी वही हुआ। एक दो डांट फटकार और फिर देरी का रोना रोकर अनुमति। हमारे लिए ये कोई नई बात नही है। हम ये सब एनरॉन के मामले में देख चुके हैं। जब अदालत शुरू में इस तरह के कार्यक्रम पर रोक नही लगाती तभी उसके अंतिम फैसले का अनुमान हो जाता है। और ये कोई अलग कार्यक्रम नही है भाई, वहां प्रधानमंत्री के लिए अलग मंच बन रहा है।
लेकिन सवाल ये है की न्याय के नाम पर इस तरह की मिलीभगत और धोखाधड़ी आखिर कब तक चलेगी। जब कोई गरीब सामने होता है तो हर संस्था को दो दो हाथ लम्बे दांत उग जाते हैं। जब 15 साल पुरानी टैक्सी पर प्रतिबंध लगाने की बात होती है और सामने गरीब टैक्सी वाले होते हैं तो यही NGT इस तरह व्यवहार करता है जैसे बब्बर शेर हो और जब मामला बड़े लोगों का होता है तो उसकी बेबसी देखते ही बनती है। तुम लाख अभिनय करो लेकिन सच्चाई लोगों को दिखाई देती है। केवल कुछ भक्तों और कुछ बुद्धिविहीन लोगों को छोड़ दिया जाये तो। मेरी कई आम लोगों से बात हुई तो उन्हें इस पर कोई आश्चर्य नही हुआ, उल्टा मेरी समझ पर आश्चर्य हुआ।
लेकिन मैं एक बात कहना चाहता हूँ। पर्यावरण को होने वाले नुकसान से क्या केवल गरीब लोग ही प्रभावित होंगे। जब आपने कारखानो और दूसरे जिम्मेदार लोगों को इसकी छूट दी थी तो इसका नतीजा ये हुआ की आज आपको सम-विसम फार्मूला अपनाना पड रहा है। कल ये कार्यक्रम करके श्री श्री रविशंकर चले जायेंगे, प्रधानमंत्री को एक बड़ी भीड़ के सामने भाषण देने का मौका मिल चूका होगा लेकिन उसके बाद ? पहले से ज्यादा मैली यमुना तुम्हारे सामने होगी। और उसके साथ पर्यावरण से जुड़े वो सारे खतरे कुछ और भयावह रूप में सामने होंगे। जो लोग ये समझते हैं की इससे उन्हें कोई फर्क नही पड़ता उनके लिए जनाब राहत इन्दोरी साहब की एक गजल की एक लाइन सुना रहा हूँ हालाँकि इसे उन्होंने दूसरे संदर्भ में लिखा था।
लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में,
यहां केवल हमारा मकान थोड़ी है।
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