Wednesday, March 30, 2016

प. बंगाल चुनाव के ओपिनियन पोल की समीक्षा

                  हम ये बहुत पहले से कहते रहे हैं की चुनावों के दौरान किये जाने वाले ओपिनियन पोल अधिकतर किसी पार्टी के समर्थन में हवा बनाने के लिए किये जाते हैं। इसके लिए कई टीवी चैनल पैसे भी लेते हैं। ताकि लोगों को प्रभावित किया जा सके।
                     लेकिन एक तबका ऐसा भी है जो इसे एक वैज्ञानिक कवायद मानता है। ये भी सही है की सभी चैनलों पर पैसे लेकर पोल करने का आरोप नहीं लगाया जा सकता। इसलिए इसके मापदंडों पर भी बहस होती है और उसके निष्कर्षों पर भी। इसी दौरान ABP NEWS ने प. बंगाल के चुनावों पर एक ओपिनियन पोल जारी किया है। हम उसके कुछ पहलुओं पर बात करना चाहते हैं।
                     प. बंगाल के सभी तुलनात्मक आधार या तो 2011 के विधानसभा चुनावों के अनुसार हो सकते हैं या फिर 2014 के लोकसभा चुनावों के अनुसार हो सकते हैं। इस ओपिनियन पोल में जो नतीजे निकाले गए हैं उसमे एक है बीजेपी का घटता हुआ वोट शेयर। ये पोल दिखाता है की राज्य में बीजेपी का वोट शेयर ना केवल लोकसभा चुनावों के मुकाबले घट रहा है बल्कि पिछले विधानसभा चुनावों के मुकाबले भी घट रहा है। पोल के अनुसार ये वोट प्रतिशत केवल 4 % रह जाने वाला है। पिछले लोकसभा चुनावों में ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को इसके लिए बड़ी सफलता मिली थी की विपक्षी वोटों का एक बड़ा हिस्सा 17 % बीजेपी लेने में कामयाब हो गई थी और लेफ्ट को केवल 29 % वोट से संतोष करना पड़ा था। अब की बार ये नहीं हो रहा है और लेफ्ट +कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बिच सीधा मुकाबला है। जाहिर है की इससे तृणमूल के लिए मुकाबला सख्त होने वाला है।
             दूसरा जो नतीजा ये पोल निकाल रहा है वो ये की तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट + कांग्रेस के बीच केवल एक प्रतिशत वोट का फर्क है। एक प्रतिशत के वोट फर्क के आधार पर सीटों के नतीजे निकालना बहुत ही हास्या स्पद होता है जबकि हरेक ओपिनियन पोल कम से कम 3 % का मार्जिन ऑफ़ एरर मानता है। एक और कारण है जो इस पोल को गलत साबित करता है वो ये है की बीजेपी में चले गए वोटर वापिस लोट रहे हैं और पोल उन्हें तृणमूल के खेमे में दिखाने की कोशिश कर रहा है। दूसरी चीज ये है की कांग्रेस और लेफ्ट के वोट इस बार एक जगह गिर रहे हैं। जिस तरह मीडिया बिहार चुनाव में कांटे की टककर दिखाने की कोशिश कर रहा था उसी तरह वो किसी भी तरह खींचतान करके ममता को आगे दिखाने की कोशिश कर रहा है।
                बंगाल के चुनावों में एक बात का बड़े जोर शोर से प्रचार किया जा रहा है की बंगाल का मुस्लिम वोटर तृणमूल के साथ है और ममता द्वारा लिए गए कदमों से उसका धुर्वीकरण ममता के पक्ष में हुआ है। जबकि ध्यान से देखा जाये तो ये गलत धारणा है। लेफ्ट और कांग्रेस दोनों को कभी भी मुस्लिम विरोधी नहीं माना जाता इसलिए उनके खिलाफ किसी धुर्वीकरण की सम्भावना दिखाई नहीं देती। दूसरे अगर ऐसा धुर्वीकरण होता है तो उसके विरोध में भी धुर्वीकरण होता है जो बीजेपी के वोट घटने के हिसाब से दिखाई नहीं देता। इसलिए इस ओपिनियन पोल द्वारा निकाले गए सीट वितरण के नतीजे संदिग्ध ही नहीं बल्कि सिरे से गलत हैं। अगर मीडिया अपने पहले ही ओपिनियन पोल में केवल एक प्रतिशत का वोट अंतर् दिखा रहा है तो इसका दूसरा मतलब ये होता है की तृणमूल हार रही है।

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