जब भी कोई साम्प्रदायिक अथवा जातीय इत्यादि संगठन अपने अनुयायिओं से सम्बोधित होता है तो उसकी थीम ये होती है की हमारे साथ अन्याय हो रहा है। इसी तरह इनके नेता भी व्यक्तिगत रूप से अन्याय का शिकार होने का राग अलापते हैं। वो जो उदाहरण देते हैं वो पहली नजर में उनकी बातों कि तस्दीक करते हैं लेकिन उनके असल कारण दूसरे होते हैं। उनके अनुयायिओं का एक तबका हमेशा उनकी इस साजिश का शिकार रहता है।
अनुपम खेर इस बात का बहुत ही चतुराई से उपयोग करते हैं। वो बहुत पहले से बीजेपी समर्थक कश्मीरी संगठन से जुड़े रहे हैं। लेकिन वो हमेशा अपने आप को तठस्थ दिखाने की कोशिश करते हैं। वो इस बात को भी छिपा लेते हैं की उनकी पत्नी बीजेपी की सांसद हैं।
पिछले कुछ दिनों से वो बीजेपी और संघ की तरफ से इस सरकार पर सवाल उठाने वाले लेखकों, बुद्धिजीवियों और छात्रों के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए हैं। जाहिर है जब ये लेखक, बुद्धिजीवी या छात्र सत्ता द्वारा भेदभाव जैसे मुद्दे उठाते हैं तो उनको काउन्टर करने के लिए उनके विरोधी भी ठीक वैसे ही मुद्दे उनके सामने खड़े करने की कोशिश करते हैं। इसी क्रम में उन्हें झूठ का सहारा लेना पड़ता है।
अनुपम खेर ने इसी शृंखला में पहले ये आरोप लगाया था की पाकिस्तान सरकार ने उन्हें साहित्य सम्मेलन में भाग लेने के लिए वीजा नही दिया। वो दिखाना चाहते थे की देखो मैं भी मोदीजी की तरह भेदभाव का शिकार हूँ और साथ में महत्त्वपूर्ण आदमी भी हूँ। बाद में जब पाकिस्तान उच्चायुक्त ने ये बताया की अनुपम खेर ने वीजा के लिए आवेदन ही नही किया है तो वो चुप रह गए। इसी क्रम में अब उन्होंने JNU पर ये आरोप लगाया है की JNU ने उनकी फिल्म दिखने से इंकार कर दिया और वो असहनशीलता के शिकार हैं। अब उस पर JNU से बयान आया है की अनुपम खेर झूठ बोल रहे हैं। और चूँकि मौजूदा सैमेस्टर की बुकिंग पूरी हो चुकी थी और उसने अगले सैमेस्टर के लिए आवेदन ही नही किया।
ये सारी घटनाएँ ये दिखाती हैं की अनुपम खेर कोई गलती से तथ्यों को नही तोड़ मरोड़ रहे हैं बल्कि वो इरादतन ऐसा कर रहे हैं ताकि अपनी सरकार और संस्थाओं के पापों को काउन्टर किया जा सके।
अनुपम खेर इस बात का बहुत ही चतुराई से उपयोग करते हैं। वो बहुत पहले से बीजेपी समर्थक कश्मीरी संगठन से जुड़े रहे हैं। लेकिन वो हमेशा अपने आप को तठस्थ दिखाने की कोशिश करते हैं। वो इस बात को भी छिपा लेते हैं की उनकी पत्नी बीजेपी की सांसद हैं।
पिछले कुछ दिनों से वो बीजेपी और संघ की तरफ से इस सरकार पर सवाल उठाने वाले लेखकों, बुद्धिजीवियों और छात्रों के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए हैं। जाहिर है जब ये लेखक, बुद्धिजीवी या छात्र सत्ता द्वारा भेदभाव जैसे मुद्दे उठाते हैं तो उनको काउन्टर करने के लिए उनके विरोधी भी ठीक वैसे ही मुद्दे उनके सामने खड़े करने की कोशिश करते हैं। इसी क्रम में उन्हें झूठ का सहारा लेना पड़ता है।
अनुपम खेर ने इसी शृंखला में पहले ये आरोप लगाया था की पाकिस्तान सरकार ने उन्हें साहित्य सम्मेलन में भाग लेने के लिए वीजा नही दिया। वो दिखाना चाहते थे की देखो मैं भी मोदीजी की तरह भेदभाव का शिकार हूँ और साथ में महत्त्वपूर्ण आदमी भी हूँ। बाद में जब पाकिस्तान उच्चायुक्त ने ये बताया की अनुपम खेर ने वीजा के लिए आवेदन ही नही किया है तो वो चुप रह गए। इसी क्रम में अब उन्होंने JNU पर ये आरोप लगाया है की JNU ने उनकी फिल्म दिखने से इंकार कर दिया और वो असहनशीलता के शिकार हैं। अब उस पर JNU से बयान आया है की अनुपम खेर झूठ बोल रहे हैं। और चूँकि मौजूदा सैमेस्टर की बुकिंग पूरी हो चुकी थी और उसने अगले सैमेस्टर के लिए आवेदन ही नही किया।
ये सारी घटनाएँ ये दिखाती हैं की अनुपम खेर कोई गलती से तथ्यों को नही तोड़ मरोड़ रहे हैं बल्कि वो इरादतन ऐसा कर रहे हैं ताकि अपनी सरकार और संस्थाओं के पापों को काउन्टर किया जा सके।
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