कई दिनों से देश एक अजीब संकट का शिकार हो गया है। अचानक देश के एक बहुत बड़े हिस्से को लगने लगा है की टैक्स पेअर के पैसे का नाजायज इस्तेमाल हो रहा है। मुझे तो बहुत पहले से ऐसा लगता था लेकिन मेरी कोई सुन ही नही रहा था। अब जाकर देश को लगा है की टैक्स पेअर का पैसा बर्बाद हो गया। खासकर जब से JNU का विवाद हुआ है और लोगों को पता चला है की वहां पढ़ाई का ज्यादातर खर्चा सरकार उठाती है तब से तो बहुत से लोगों का खून खौल रहा है। 90 साल के बूढ़े से लेकर 15 साल की लड़की तक को टैक्स पेअर के पैसे की चिंता सताने लगी है। आज सुबह सुबह मेरे पड़ौसी घर में घुस आये और मेरे मुंह धोने से पहले ही मुझे लगे लताड़ने, " तुम लोगों को शर्म नही आती जो टैक्स पेअर के पैसे पर मौज करते हो और देश विरोधी नारे लगाते हो। "
मैंने घरवाली की तरफ देखा। शायद उसने लगाया हो। लेकिन उसने इंकार में सिर हिला दिया। बच्चे सहम गए। मैंने पड़ौसी से कहा ," लगता है आपको कोई गलतफहमी हुई है। मैं तो----. "
" कोई गलतफहमी नही है। टीवी पर सब दिखाया जा रहा है। तुम लोग देश के टैक्स पेअर के पैसे का इस तरह नाजायज इस्तेमाल कैसे कर सकते हो। " उसने मुझे बात भी पूरी नही करने दी। उसने टीवी का नाम लिया तब मेरी समझ में आया। मेरे ये पड़ोसी हमेशा उत्तर कोरिया के अणुबम्ब परीक्षण से लेकर आजम खान की भैस के खोने तक का जिम्मेदार हमेशा मुझे ही मानते हैं। उसके बाद जैसे धड़धड़ाते हुए आये थे वैसे ही धड़धड़ाते हुए चले गए।
मैं तैयार होकर काम पर जाने के लिए निकला तो गली के नुक्क्ड़ पर करियाने की दुकान वाले ने रोक लिया। " क्यों भईये, ऐसे कैसे पतली गली से निकल रहे हो। जब जवाब देने का समय आया तो मुंह छुपा रहे हो। टैक्स पेअर का पैसा हराम का थोड़े ही है। "
एक घंटा होते होते मुझे इतनी गालियां मिल चुकी थी जितनी कन्हैया को भी नही मिली होंगी। अब मैंने फैसला किया की इन तथाकथित टैक्स पेअर को जवाब देना चाहिए।
जब तक मैं दुकान पर पहुंचा तो दो पड़ोसी दुकानदार घुस आये। आते ही बोले की क्या तुम्हे नही लगता की टैक्स पेअर के पैसे का दुरूपयोग बंद होना चाहिए। JNU को बंद कर दिया जाये तो कैसा रहेगा ?
केवल JNU ही क्यों, मैं तो चाहता हूँ की टैक्स पेअर के पैसे से चलने वाले सभी स्कुल कालेज ही बंद कर देने चाहियें। वैसे भी अब बचे ही कितने हैं। मैंने जवाब दिया। और मैं तो कहता हूँ की एक एक चीज को बंद करने से क्या होगा ? हमे टैक्स ही देना बंद कर देना चाहिए। ना रहेगा टैक्स और ना होगा दुरूपयोग। मैंने आगे जोड़ा।
अब दोनों को कुछ समझ में नही आया। क्योंकि टीवी चैनलों पर इस पर तो कोई बहस हुई नही थी और हमारे ये भाई अपनी कोई निजी राय रखने की हैसियत नही रखते, देश के अधिकतर लोगों की तरह। थोड़ी देर बाद एक बोला ," अगर हम बिलकुल टैक्स देना बंद कर देंगे तो सेना का खर्च कैसे निकलेगा ? " दूसरे ने तुरंत समर्थन में सिर हिलाया।
" हमे सेना रखकर कोनसी प्रॉपर्टी की रक्षा करवानी है। जिनको तकलीफ होगी वो अपने पैसे से आदमी रक्खेंगे। " मैंने आराम से कहा।
दोनों ने एक दूसरे का मुंह देखा, फिर एक बोला, " सेना के अलावा भी बस हैं, रेल हैं, हवाई जहाज हैं और दूसरे सरकारी कर्मचारियों का वेतन है वो सब कहां से निकलेगा ? "
" भाई मुझे तो कोई जरूरत लगती नही है। बस और रेल सरकार की नही होंगी तो कोई प्राइवेट आदमी चलाएगा। आज भी पैसे देकर बैठते हैं तब भी पैसे देकर बैठेंगे। जहाँ तक हवाई जहाज की बात है तो जिसको जरूरत होगी वो उसका खर्चा देगा। सरकारी कर्मचारी जिसका काम करेंगे उससे पैसे लेंगे जो आज भी लेते हैं। "
" और, और पुलिस ? "
" पुलिस कोनसा हमारे जैसे आदमी का काम कभी करती है। कभी गए हो पुलिस स्टेशन ? कोई चोरी की रिपोर्ट कभी लिखवाई हो और माल मिल गया हो ऐसा कोई उदाहरण है। हमे पुलिस की कोई जरूरत नही है। " मैंने कहा।
दोनों को कोई तर्क नही सूझ रहा था। मैंने बोलना जारी रखा। " किसी महंगी गाड़ी वाले को चिकनी सड़कें चाहियेगी तो बनवायेगा अपने खर्चे से। किसी नेता को या चमचे को Z श्रेणी की सुरक्षा चाहिए तो अपने खर्चे पर रखेगा। मुझे तो लगता है की हम तो अब भी अपने खर्चों का पैसा दे रहे हैं। जो लोग देश के मालिक बने बैठे हैं केवल वही लोग अपने हिस्से का पैसा नही दे रहे हैं। अगर हम सब टैक्स देना बंद कर देते हैं तो उनको अपना पैसा खुद देना पड़ेगा। "
दोनों को कुछ समझ नही आ रहा था। मैंने धीरे से फुसफुसा कर कहा ," ये टैक्स पेअर की बात करना बंद दो, कहीं ऐसा ना हो गरीब जनता को ये हिसाब समझ में आ जाये। "
मैंने घरवाली की तरफ देखा। शायद उसने लगाया हो। लेकिन उसने इंकार में सिर हिला दिया। बच्चे सहम गए। मैंने पड़ौसी से कहा ," लगता है आपको कोई गलतफहमी हुई है। मैं तो----. "
" कोई गलतफहमी नही है। टीवी पर सब दिखाया जा रहा है। तुम लोग देश के टैक्स पेअर के पैसे का इस तरह नाजायज इस्तेमाल कैसे कर सकते हो। " उसने मुझे बात भी पूरी नही करने दी। उसने टीवी का नाम लिया तब मेरी समझ में आया। मेरे ये पड़ोसी हमेशा उत्तर कोरिया के अणुबम्ब परीक्षण से लेकर आजम खान की भैस के खोने तक का जिम्मेदार हमेशा मुझे ही मानते हैं। उसके बाद जैसे धड़धड़ाते हुए आये थे वैसे ही धड़धड़ाते हुए चले गए।
मैं तैयार होकर काम पर जाने के लिए निकला तो गली के नुक्क्ड़ पर करियाने की दुकान वाले ने रोक लिया। " क्यों भईये, ऐसे कैसे पतली गली से निकल रहे हो। जब जवाब देने का समय आया तो मुंह छुपा रहे हो। टैक्स पेअर का पैसा हराम का थोड़े ही है। "
एक घंटा होते होते मुझे इतनी गालियां मिल चुकी थी जितनी कन्हैया को भी नही मिली होंगी। अब मैंने फैसला किया की इन तथाकथित टैक्स पेअर को जवाब देना चाहिए।
जब तक मैं दुकान पर पहुंचा तो दो पड़ोसी दुकानदार घुस आये। आते ही बोले की क्या तुम्हे नही लगता की टैक्स पेअर के पैसे का दुरूपयोग बंद होना चाहिए। JNU को बंद कर दिया जाये तो कैसा रहेगा ?
केवल JNU ही क्यों, मैं तो चाहता हूँ की टैक्स पेअर के पैसे से चलने वाले सभी स्कुल कालेज ही बंद कर देने चाहियें। वैसे भी अब बचे ही कितने हैं। मैंने जवाब दिया। और मैं तो कहता हूँ की एक एक चीज को बंद करने से क्या होगा ? हमे टैक्स ही देना बंद कर देना चाहिए। ना रहेगा टैक्स और ना होगा दुरूपयोग। मैंने आगे जोड़ा।
अब दोनों को कुछ समझ में नही आया। क्योंकि टीवी चैनलों पर इस पर तो कोई बहस हुई नही थी और हमारे ये भाई अपनी कोई निजी राय रखने की हैसियत नही रखते, देश के अधिकतर लोगों की तरह। थोड़ी देर बाद एक बोला ," अगर हम बिलकुल टैक्स देना बंद कर देंगे तो सेना का खर्च कैसे निकलेगा ? " दूसरे ने तुरंत समर्थन में सिर हिलाया।
" हमे सेना रखकर कोनसी प्रॉपर्टी की रक्षा करवानी है। जिनको तकलीफ होगी वो अपने पैसे से आदमी रक्खेंगे। " मैंने आराम से कहा।
दोनों ने एक दूसरे का मुंह देखा, फिर एक बोला, " सेना के अलावा भी बस हैं, रेल हैं, हवाई जहाज हैं और दूसरे सरकारी कर्मचारियों का वेतन है वो सब कहां से निकलेगा ? "
" भाई मुझे तो कोई जरूरत लगती नही है। बस और रेल सरकार की नही होंगी तो कोई प्राइवेट आदमी चलाएगा। आज भी पैसे देकर बैठते हैं तब भी पैसे देकर बैठेंगे। जहाँ तक हवाई जहाज की बात है तो जिसको जरूरत होगी वो उसका खर्चा देगा। सरकारी कर्मचारी जिसका काम करेंगे उससे पैसे लेंगे जो आज भी लेते हैं। "
" और, और पुलिस ? "
" पुलिस कोनसा हमारे जैसे आदमी का काम कभी करती है। कभी गए हो पुलिस स्टेशन ? कोई चोरी की रिपोर्ट कभी लिखवाई हो और माल मिल गया हो ऐसा कोई उदाहरण है। हमे पुलिस की कोई जरूरत नही है। " मैंने कहा।
दोनों को कोई तर्क नही सूझ रहा था। मैंने बोलना जारी रखा। " किसी महंगी गाड़ी वाले को चिकनी सड़कें चाहियेगी तो बनवायेगा अपने खर्चे से। किसी नेता को या चमचे को Z श्रेणी की सुरक्षा चाहिए तो अपने खर्चे पर रखेगा। मुझे तो लगता है की हम तो अब भी अपने खर्चों का पैसा दे रहे हैं। जो लोग देश के मालिक बने बैठे हैं केवल वही लोग अपने हिस्से का पैसा नही दे रहे हैं। अगर हम सब टैक्स देना बंद कर देते हैं तो उनको अपना पैसा खुद देना पड़ेगा। "
दोनों को कुछ समझ नही आ रहा था। मैंने धीरे से फुसफुसा कर कहा ," ये टैक्स पेअर की बात करना बंद दो, कहीं ऐसा ना हो गरीब जनता को ये हिसाब समझ में आ जाये। "
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