आम लोग कई चीजों पर एकदम निर्णायक नतीजे पर नही पहुंच सकते और इस पर पहुंचने के लिए वो मीडिया द्वारा फैलाई गयी अफवाहों के शिकार हो जाते हैं। पिछले दो साल में जब से ये सरकार सत्ता में आई है इस पर आरएसएस का एजेंडा लागु करने के आरोप लगते रहे हैं। इस दौरान कुछ बड़ी घटनाएँ भी हुई हैं जिनके बारे में भी एक पक्ष का आरोप है की वो कोई अकस्मात घटी हुई घटनाएँ नही हैं, बल्कि एक सोची समझी साजिश के तहत बाकायदा प्लान करके की गयी वारदातें हैं। इन घटनाओं की प्लानिंग का आरोप बीजेपी और आरएसएस के लोगों पर है और मीडिया के एक हिस्से की इसमें साझेदारी है। बीजेपी हमेशा इससे इंकार तो करती रही है लेकिन उसने उन सवालों का जवाब कभी नही दिया जो उस पर उठाये गए। इन घटनाओं में से कुछ का विश्लेषण इस प्रकार है। --
१. बिहार चुनाव से पहले दादरी की घटना हुई। इसमें गाय मारने के आरोप में एक व्यक्ति अख़लाक़ की हत्या कर दी गयी। इस घटना में मुख्य आरोपी बीजेपी नेता के पुत्र निकले। असल बात ये है की जिस गाय को मारने के आरोप में भीड़ को भड़का कर ये घटना अंजाम दी गयी वो गाय मरने जैसी कोई घटना वहां हुई ही नही थी। एक झूठी कहानी गढ़कर एक समुदाय के खिलाफ भावनाएं भड़काई गयी। फिर उसके बाद क्या हुआ ? बीजेपी और आरएसएस के सारे नेता पूरी बहस को इस मुद्दे पर ले आये की गाय को मारना सही है या गलत। पूरी बहस उस चीज पर हो रही थी जो असल में घटनास्थल पर मौजूद ही नही थी। मीडिया का एक हिस्सा पुरे जोर शोर से इसका प्रचार कर रहा था। सोशल मीडिआ में बैठे भाड़े के लोग इसे हवा दे रहे थे। और बीजेपी के सबसे बड़े नेता इस पर चुप्पी साधे हुए थे यानि उनका मौन समर्थन इस पूरी मुहीम को हासिल था।
२. अब JNU की घटना को देखिये। छात्रों का एक समूह एक प्रोग्राम का आयोजन करता है जिसका कोई संबंध ना वहां की चुनी हुई स्टूडेंट यूनियन से था और ना उसके वामपंथी अध्यक्ष से था। बीजेपी का छात्र संगठन ABVP उस प्रोग्राम से ठीक 15 मिनट पहले वाइस चांसलर से मिलकर उसकी अनुमति रद्द करवा देता है। ABVP के नेता पहले से ही इसकी तैयारी के तहत एक बदनाम न्यूज चैनल के लोगों को वहां बिना अनुमति के बुला कर रखते हैं। उसके बाद प्रोग्राम करने वाले छात्रों और ABVP के सदस्यों में झगड़ा होता है। छात्रसंघ अध्यक्ष उसमे बीच बचाव की कोशिश करता है। इतने में मुंह पर कपड़ा बांधे हुए कुछ लोग देश विरोधी नारे लगाते हैं और निकल भी जाते हैं। बात खत्म हो जाती है। उसके बाद पूरी घटना के विडिओ को छेड़छाड़ करके उसमे बाहर से नारे डाले जाते हैं। इस काम का आरोप HRD मंत्री स्मृति ईरानी की सहयोगी शिल्पी तिवारी पर आता है। उसके बाद वही न्यूज चैनल उस बदले गए विडिओ को पूरा दिन टीवी पर दिखाता है और पूरी JNU को देशद्रोह के अड्डे में तब्दील कर देता है। उसके बाद बीजेपी के सांसद महेश गिरी देशद्रोह का मामला दर्ज करवाते हैं और पुलिस सरकार के इशारे पर छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लेते हैं। उसके बाद पूरी बीजेपी और आरएसएस लगातार वामपंथ पर देशद्रोह में शामिल होने का राग अलापते हैं। इसके बाद जो चीजें सामने आई वो इस प्रकार हैं।
१. मीडिया के कुछ चैनलों द्वारा दिखाए गए विडिओ फर्जी थे।
२. कन्हैया ने इस तरह का कोई नारा नही लगाया इसका कोई विडिओ सबूत पुलिस के पास नही है।
३. मुंह ढंककर नारे लगाने वाला एक भी आदमी पकड़ा नही गया। और शायद ही कभी पकड़ा जाये।
लेकिन हो क्या रहा है। इस पूरी घटना को इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे बीजेपी को छोड़कर सभी विपक्षी पार्टियां, चाहे वो कांग्रेस हो, वामपंथी हों या जनता दल हो सब देशद्रोही हैं। अभी अभी बीजेपी के नेता अरुण झुठली ने भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यक्रम में कहा की कन्हैया भारत के टुकड़े करने के नारे लगा रहे थे और दूसरी तरफ इनकी पुलिस अदालत में कह रही है की उसके पास कोई इसकी कोई विडिओ फुटेज नही है। ये व्ही अरुण झुठली हैं जो दिल्ली चुनाव में एक हाथ में माइक पकड़कर कह रहे थे की आम आदमी पार्टी रंगे हाथ पकड़ी गयी और दूसरे हाथ से उच्च न्यायालय के उस एफिडेविट पर साइन कर रहे थे जिसमे लिखा था की आम आदमी पार्टी के खातों में कोई गड़बड़ी नही पाई गयी।
अब दूसरा सवाल ये उठता है की क्या ये कोई अलग अलग घटी हुई आकस्मिक घटनाएँ हैं। नही ये बाकायदा एक विचारधारा के आधार पर देश में एक साम्प्रदायिक विभाजन पैदा करने और उसे बनाये रखने की सोची समझी रणनीति है। इस रणनीति में मीडिया का एक हिस्सा जिसके मालिक बीजेपी के नजदीकी उद्योगपति हैं उसकी मदद करता है। इसमें सोशल मीडिया में बैठा एक भाड़े का तबका और कुछ लम्पट किस्म के लोग योगदान करते रहते हैं। देश में ऐसे लोग जिनकी सोचने और समझने की शक्ति कमजोर है वो इस बहाव में बह जाते हैं।
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