पहले पहले गाँव में क्या होता था की माँ बाप अपने बच्चे को दूसरों की पिटाई से बचाने के लिए फटकार लगाते थे। बच्चा बाहर किसी दूसरे बच्चे को उठाकर पटक आया। पिटे हुए बच्चे की माँ उसको लेकर दूसरे बच्चे के घर गयी। वहां उसकी माँ को ये बात बताई। बेटा पिटा हुआ था इसलिए माँ गुस्से में थी। शरारती बच्चे की माँ ने अपने बच्चे को जोर से फटकार लगाई। उलाहना देने वाले चले गए तो उसको पुचकारने बैठ गयी। ये आम बात है। इसी तरह एक गांव में पंचायत हुई जिसमे एक दबंग लड़के पर एक दलित लड़की के साथ बलात्कार का आरोप था। पंचायत ने दबंग लड़के को पांच जूते मारने की सजा सुनाई। दोनों ही मामलों में न्याय के नाम पर मजाक हो गया। इस तरह का न्याय हमारे देश में रोज होता है। अब तो हालत यहां तक पहुंच गयी है की अन्याय के शिकार आदमी को ही धमका दिया जाता है और अन्याय करने वाले को नसीहत दे दी जाती है। और नसीहत देने में जिन शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है वो घाव पर नमक ही ज्यादा छिड़कते हैं। जैसे अपने लड़के को धमकाते वक्त या नसीहत देते वक्त ये कहना की हमने तुम्हे पहले ही कहा था की घटिया लोगों के साथ मत रहा करो। अब भुगतो।
इसी तरह की नसीहतें राजनीती में भी दी जाती हैं। एक तो आज ही दी गयी है। केंद्रीय मंत्री रामशंकर कठेरिया के भड़काऊ भाषण पर संसद और उसके बाहर जब हल्ला हुआ तो पहले तो खुद गृह मंत्री ने यह कह दिया की इसमें कुछ भी भड़काऊ नही था। उन्होंने ये भी कहा की उन्होंने खुद भाषण सुना है और उनके अफसरों ने भी सुना है। इनमे कुछ अफसर वो भी शामिल हो सकते हैं जिन्होंने कन्हैया का भाषण भी सुना होगा। उस भाषण में राजनाथ सिंह और उनके अफसरों ने देशद्रोही चीज ढूंढ ली थी हालाँकि वो अदालत को नही बता पाये। खैर, सवाल ये है की इसके बावजूद की कठेरिया के भाषण में बीजेपी के अनुसार कुछ भी गलत नही था, ठीक उसी तरह जैसे साध्वी निरंजन ज्योति, संजीव बालियां, संगीत सोम या योगी आदित्यनाथ के भाषणो में भी नही था। उसके बावजूद बीजेपी ने उन सबको एक बार फिर ( शायद आठवीं या दसवीं बार ) ये नसीहत दी की ऐसे भाषणो से थोड़ा दूर रहें। इसलिए नही की इससे समुदायों के बीच नफरत का माहौल पैदा होता है या देश के संविधान का उलंघ्घन होता है , बल्कि इसलिए की इससे विपक्ष को मौका मिलता है। ये उलाहना देने वाले के सामने ही ये कहने जैसी बात है की देखो हमने कहा था न की चुप रहा करो वरना घटिया लोग बात बनाएंगे।
नसीहत और फटकार केवल अपने अपराधी संतानो को दूसरों के गुस्से से बचाने की चीज हो गयी है। ये काम कई सरकारी संस्थाएं भी करती हैं। कल ही नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने DDA को फटकार लगाई है की उसने श्री श्री रविशंकर के कार्यक्रम को इजाजत कैसे दे दी। मैं बता देता हूँ। श्री श्री रविशंकर आजकल सरकार है। और सरकार किसी चीज की इजाजत मांगती है यही उस विभाग के लिए सम्मान की बात होती है। सो ये सवाल ही गलत है। असल सवाल ये है की क्या उस इजाजत को वापिस लिया जा रहा है। ट्रिब्यूनल कई दिन से उस पर सुनवाई कर रहा है और ये बात भी सूर्य की तरह स्पष्ट है की सब कुछ गलत हो रहा है, लेकिन उस पर रोक नही लगाई गयी। अब आप DDA को धमका कर अपना पल्ला झाड़ लीजिये।
हमारी अदालतें कई बार सरकारी विभागों को फटकार लगाती हैं तो इसका मतलब ये थोड़ा ना होता है की वो उसको बंद करने के लिए कहते हैं। वो काम तो चालू ही रहता है। इसलिए ये सारी नसीहतें और फटकार अपने लाडले को दूसरों के क्रोध से बचाने के लिए ही होती हैं।
इसी तरह की नसीहतें राजनीती में भी दी जाती हैं। एक तो आज ही दी गयी है। केंद्रीय मंत्री रामशंकर कठेरिया के भड़काऊ भाषण पर संसद और उसके बाहर जब हल्ला हुआ तो पहले तो खुद गृह मंत्री ने यह कह दिया की इसमें कुछ भी भड़काऊ नही था। उन्होंने ये भी कहा की उन्होंने खुद भाषण सुना है और उनके अफसरों ने भी सुना है। इनमे कुछ अफसर वो भी शामिल हो सकते हैं जिन्होंने कन्हैया का भाषण भी सुना होगा। उस भाषण में राजनाथ सिंह और उनके अफसरों ने देशद्रोही चीज ढूंढ ली थी हालाँकि वो अदालत को नही बता पाये। खैर, सवाल ये है की इसके बावजूद की कठेरिया के भाषण में बीजेपी के अनुसार कुछ भी गलत नही था, ठीक उसी तरह जैसे साध्वी निरंजन ज्योति, संजीव बालियां, संगीत सोम या योगी आदित्यनाथ के भाषणो में भी नही था। उसके बावजूद बीजेपी ने उन सबको एक बार फिर ( शायद आठवीं या दसवीं बार ) ये नसीहत दी की ऐसे भाषणो से थोड़ा दूर रहें। इसलिए नही की इससे समुदायों के बीच नफरत का माहौल पैदा होता है या देश के संविधान का उलंघ्घन होता है , बल्कि इसलिए की इससे विपक्ष को मौका मिलता है। ये उलाहना देने वाले के सामने ही ये कहने जैसी बात है की देखो हमने कहा था न की चुप रहा करो वरना घटिया लोग बात बनाएंगे।
नसीहत और फटकार केवल अपने अपराधी संतानो को दूसरों के गुस्से से बचाने की चीज हो गयी है। ये काम कई सरकारी संस्थाएं भी करती हैं। कल ही नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने DDA को फटकार लगाई है की उसने श्री श्री रविशंकर के कार्यक्रम को इजाजत कैसे दे दी। मैं बता देता हूँ। श्री श्री रविशंकर आजकल सरकार है। और सरकार किसी चीज की इजाजत मांगती है यही उस विभाग के लिए सम्मान की बात होती है। सो ये सवाल ही गलत है। असल सवाल ये है की क्या उस इजाजत को वापिस लिया जा रहा है। ट्रिब्यूनल कई दिन से उस पर सुनवाई कर रहा है और ये बात भी सूर्य की तरह स्पष्ट है की सब कुछ गलत हो रहा है, लेकिन उस पर रोक नही लगाई गयी। अब आप DDA को धमका कर अपना पल्ला झाड़ लीजिये।
हमारी अदालतें कई बार सरकारी विभागों को फटकार लगाती हैं तो इसका मतलब ये थोड़ा ना होता है की वो उसको बंद करने के लिए कहते हैं। वो काम तो चालू ही रहता है। इसलिए ये सारी नसीहतें और फटकार अपने लाडले को दूसरों के क्रोध से बचाने के लिए ही होती हैं।
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