Wednesday, August 26, 2015

क्या ये देश गुलामों की मण्डी है ?

 
Slave auction in virginia

गप्पी --  जैसे कोई ठेले पर आलू बेचता है उसी तरह बहुत दिन से हमारी सरकार एक रट लगाए हुए है। पूरी दुनिया में घूम घूम कर हमारे प्रधानमंत्री कह रहे हैं सस्ती लेबर ले लो, जवान लेबर ले लो। बिना किसी कानून के ले लो। भाईओ इतनी सस्ती लेबर आपको दुनिया में कहीं नही मिलेगी। हमारी लेबर एकदम जवान लेबर है। आपको पूरी दुनिया में इतनी जवान और इतनी बड़ी संख्या में लेबर कहीं नही मिलेगी। आप हमारे यहां आइये। यहां अपना कारखाना लगाइये और हमारी सस्ती और जवान लेबर का फायदा उठाइये।
                   अगर आपको फिर भी कोई तकलीफ है तो हमे बताइये। यहां आकर बताइये या वहीं बता दीजिये, मैं तो आपके यहां ही रहता हूँ। ऐसा नही है हमे आपकी तकलीफें मालूम नहीं हैं। हमे सब मालूम हैं। आपको सारी लेबर ठेके पर चाहिए।  कोई बात नही हम अपने कानून बदल देंगे। आप जितनी चाहिए उतनी लेबर ठेके पर रख सकते हैं। आपको उनका कोई रिकार्ड नही रखना है? मत रखिए, आपको किसने कहा है ? हम कानून बदल रहे हैं जिसमे रिकार्ड रखने की जरूरत ही नही रहेगी। और बताइये, आपको अप्रेन्टिस के नाम पर और कम वेतन में मजदूर चाहियें, कोई बात नही। हम कानून को बदल कर अप्रेन्टिस रखने की सीमा और समय बढ़ाकर अनिश्चित काल कर देते हैं। आपको यूनियन नही चाहिए, उसका भी हल है। हम जो नया कानून बना रहे हैं उसके बाद कोई यूनियन बनाना तो दूर, कोई यूनियन का नाम भी नही ले पायेगा। और बताइये, आपको 12 घंटे काम करवाना है तो हम ओवरटाइम का कानून बदल देते हैं। आप कितनी  ही देर काम करवाइये।
                   हमे आपकी सारी समस्याएं मालूम हैं। आपको लड़कियों से रात को काम करवाना पड़  सकता है, हम आपके कहने से पहले ही कानून में लड़कियों की रात की शिफ्ट पर लगी पाबंदी हटा देते हैं। जिन लोगों को उनकी सुरक्षा की चिंता है उनके लिए हम बेटी बचाओ अभियान चला रहे हैं। अब तो आपको हम भरोसा हुआ या नही। हम लेबर को सस्ता रखने के लिए मनरेगा जैसे कार्यक्रम बंद कर देने वाले हैं। आप यहां अपने मित्रों से पूछ सकते हैं की हमने इस पर काम भी शुरू कर दिया है। और घबराइये मत, इसका कोई दोष आप पर नही आएगा। हम ये सारे काम श्रम सुधारों के नाम पर कर रहे हैं। हमने अब तक जिन चीजों का भी सत्यानाश किया है सुधार का नाम लेकर ही किया है। इसलिए आप आइये और हमारे जवान और सस्ते मजदूर ले लीजिये।
                   मुझे लगा की मैं पुराने बसरे के बाजार में खड़ा हूँ। जहां गुलामों की बोलियाँ लग रही हैं। लीजिये साहब ये लीजिये एकदम मजबूत और जवान गुलाम जो पहाड़ भी तोड़ सकता है और एकदम कम कीमत पर। फिर दूसरी तरफ से आवाज आती है ये लीजिये मेहरबान एकदम सख्तजान गुलाम, आप इसको काट कर भी देख सकते हैं। इसकी रगों में लहू नही लोहा बहता है। और एकदम मुफ्त के भाव पर। काबुल, बसरा और बगदाद की मंडियां दिखाई दे रही हैं। मुझे दिखाई देता है की समुद्री जहाज भर भर कर गिरमिटिया मजदूर विदेश ले जाए जा रहे हैं। मुझे पसीना आता है
                  पहले के समय में जब तक गुलाम को कोई खरीद नही लेता था तब तक उसे जिन्दा रखने और खिलाने पिलाने की जिम्मेदारी उसके मालिक की होती थी। लेकिन आज के  गुलाम को तो ये जिम्मेदारी भी खुद ही उठानी पड़ती है। जब मार्क्स ने इसे उजरती गुलामी कहा था तब बहुत हो-हल्ला मचा था। लेकिन आज इस बात का कोई जवाब नही है। एक मजदूर के पास केवल एक ही आजादी थी, की वह किसकी गुलामी करना चाहेगा लेकिन अब तो उसके अवसर भी नही बचे। सरकार चार-चार हजार के फिक्स वेतन पर भर्तियां कर रही है और प्रधानमंत्री लालकिले से श्रम के सम्मान की बात करते हैं। क्या हमारा नौजवान इतना भी नही समझता ? मैंने बहुत पहले एक कवि की कुछ पंक्तियाँ पढ़ी थी जो मुझे पसंद नही आई थी। एक मजदूर के घर बच्चे के पैदा होने पर वो कहता है ,--
                         ये नन्हा,
                         जो भोला-भाला है। 
                          कुछ नही है,
                          सरमाये का निवाला है। 
                          बड़ा होगा तो,
                          कारखाने के काम आएगा। 
                          मुनाफे की भट्टी में,
                          झौंक दिया जायेगा। 
        ये तो मनुष्य के गरिमापूर्ण जीवन की गाथा नही है। जिस तरह की बोलियाँ लगाई जा रही हैं, वो तो उनके मानव होने के अधिकार पर ही प्रश्न चिन्ह लगाती हैं। बहुत ही सहज तरीके से इस देश को गुलामों की मण्डी में बदला जा रहा है। इसे कौन स्वीकार करेगा। 

खबरी -- उन्हें फैज अहमद फैज के इन शब्दों को भी याद रखना चाहिए,--
                          यूँ ही उलझती रही है हमेशा जुल्म से खल्क ,
                          न  उनकी  रस्म नई है  न अपनी  रीत नई। 
                          यूँ  ही  खिलाये  हैं  हमने आग  में   फूल ,
                           न उनकी हार नई है   न अपनी जीत नई।

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