भारतीय रिजर्व बैंक ने पेमेन्ट बैंकों की स्थापना के लिए कई निजी कम्पनियों के आवेदनो को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही देश में इस तरह के बैंकों का या यों कह सकते हैं की एक अलग प्रकार के बैंकों का यह पहला प्रयोग होगा। इसके साथ ही इस पर इसके दूसरे बैंकों , हमारी अर्थव्यवस्था , और पुरे सिस्टम पर होने वाले असर को लेकर बहस भी शुरू हो गयी है। समाज और उद्योग के कई हलकों ने इसका स्वागत किया है तो बैंक कर्मचारियों की यूनियन ने इसका कड़ा विरोध किया है। इसलिए ये जानना जरूरी हो गया है की इसकी कार्यप्रणाली क्या होगी और ये क्या काम करेगा।
रिजर्व बैंक ने इसको जारी किये जाने के उद्देश्य स्पष्ट किये हैं। जिसमे रिजर्व बैंक ने जो मुख्य कारण दिए हैं वो इस प्रकार हैं। ---
१. ये बैंक शुरुआती दौर में एक लाख तक की जमाराशि प्रत्येक खाताधारक से जमा कर सकते हैं, जिसे बाद में बैंक के कामकाज को देखकर रिजर्व बैंक द्वारा बढ़ाया जा सकता है।
२. ये बैंक एटीएम कार्ड और डेबिट कार्ड जारी कर सकते हैं। लेकिन क्रेडिट कार्ड जारी नही कर सकते।
३. ये बैंक अलग अलग सेवाओं के भुगतान करने की सुविधा दे सकते हैं जो इसका मुख्य उद्देश्य है।
४. ये बैंक म्युचुअल फंड और बीमा के उत्पाद बेच सकते हैं।
५. इन बैंको की स्थापना गावों में रहने वाले छोटे छोटे जमाकर्ताओं, दूसरी जगह जाकर काम करने वाले मजदूरों और छोटे दुकानदारों, कम आय वाले परिवारों और छोटे बचत खातों की बैंक सुविधा प्रदान करवाने के लिए की जा रही है।
जो काम ये बैंक नही कर सकते।
१. ये बैंक उधार देने का काम नही कर सकते।
२. ये बैंक अपना जमा पैसा केवल सरकारी सिक्यॉरिटियों और बांड में रख सकते हैं।
ये सारे नियम और दूसरी जानकारियां भारतीय रिजर्व बैंक की प्रेस स्टेटमेंट में देखे जा सकते हैं उसके लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं।
ये सारी सुविधाएँ ये बैंक उच्च तकनीक का उपयोग करके मोबाईल फोन जैसे उपकरणों से उपलब्ध करवाएंगे। और इसके लिए किसी बैंक की शाखा में जाना नही पड़ेगा। और इन सेवाओं के बदले ये बैंक ग्राहक से चार्ज वसूल करेंगे। इससे दूसरे राज्यों में जाकर मजदूरी करने वाले लोगों के लिए घर पर पैसे भेजना आसान हो जायेगा।
इन सारी बातों को देखने पर किसी भी आदमी को इसमें कोई खराब चीज नजर नही आएगी। फिर इसका विरोध क्यों हो रहा है। इसका विरोध करने वालों में मुख्य संस्था बैंक कर्मचारियों की यूनियन है। बैंक कर्मचारियों की सबसे बड़ी यूनियन AIBEA ने एक प्रेस स्टेटमेंट जारी करके ना केवल इसका विरोध किया है बल्कि विरोध के कारणों को भी स्पष्ट किया है। जो इस प्रकार हैं।
( ये प्रेस स्टेटमेंट बिजनस स्टैंडर्ड में आप यहाँ क्लिक करके देख सकते हैं.)
१. यूनियन का कहना है की ये बैंक लाइसेंस उन्ही निजी क्षेत्र की कम्पनियों को दिए गए हैं जो सरकारी बैंकों का लगभग छह लाख करोड़ रुपया डुबा कर बैठे हैं।
२. 2008 में जब पूरी दुनिया में निजी बैंकों का दिवाला निकला था तब भारतीय अर्थव्यवस्था को सरकारी बैंकों ने इसलिए बैठने से बचा लिया था क्योंकि वो रिजर्व बैंक के सख्त नियमों के अनुसार काम करते हैं। अगर दुबारा कोई ऐसी स्थिति आती है तो इन निजी बैंकों के भरोसे अर्थव्यवस्था को नही बचाया जा सकेगा।
३. छोटी छोटी बचतें भारतीय सरकारी बैंकों की रीढ़ हैं, और इन निजी पेमेंट बैंकों के आने के बाद सरकारी बैंकों में उनका स्तर गिरेगा और सरकारी बैंक भारी दबाव में आ जायेंगे।
४. छोटी बचतों के ना मिलने के कारण बैंकों का जमा राशियों पर खर्च बढ़ जायेगा जिससे सभी तरह के लोन महंगे हो जायेंगे।
५. इस तरह ये बैंक सरकारी बैंको की व्यवस्था के विरोधी साबित होंगे और आखिर में जनविरोधी साबित होंगे।
इस पर जो दूसरे लोग भी एतराज कर रहे हैं उनमे मुख्य इस प्रकार हैं।
१. ये बैंक उच्च तकनीकी व्यवस्था पर आधारित होंगे जो की इनकी पहली शर्त है, इसलिए बिना बैंक शाखाओं के ये रोजगार विहीन विकास का नमूना होंगे जिसकी मार हमारा देश पहले ही झेल रहा है।
२. बिना उच्च मापदंडों के ये बैंक ऐसे खाते बड़ी संख्या में खोलेंगे जिनमे कालाधन जमा किया जा सकेगा। अब तक रिजर्व बैंक बड़े निजी बैंकों में भी KYC को सही ढंग से लागु नही करवा पाया है।
३. कम तकनीकी जानकारी के कारण गरीब ग्राहक बिना वजह धोखाधड़ी के शिकार होंगे, जिसे रोकने की अब तक कोई व्यवस्था नही है।
४. इसके बाद रिजर्व बैंक छोटे बैंकों के लिए लाइसेंस जारी करने जा रहा है। इस तरह ये कुल मिलाकर बैंको के सरकारीकरण की प्रकिर्या को ही उलटने का काम होगा जो हमारे जैसे देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी।
इस तरह इन बैंकों की स्थापना पर कई तरह के सवाल हैं। लोगों का एक तबका मानता है की निजी कम्पनियों को लाइसेंस देने की बजाए भारतीय डाक विभाग जैसे सरकार नियंत्रित संस्थाओं को ही इसका लाइसेंस देना चाहिए था। वैसे भी भरतीय डाक विभाग की देश के ग्रामीण क्षेत्र में 139000 शाखाएँ हैं, जबकि सारे बैंको की कुल मिलकर 44700 शाखाएं ही हैं। गरीब लोगों के पैसे को निजी हाथों में देना सुरक्षा के हिसाब से बहुत अच्छा नही माना जाता।
रिजर्व बैंक ने इसको जारी किये जाने के उद्देश्य स्पष्ट किये हैं। जिसमे रिजर्व बैंक ने जो मुख्य कारण दिए हैं वो इस प्रकार हैं। ---
१. ये बैंक शुरुआती दौर में एक लाख तक की जमाराशि प्रत्येक खाताधारक से जमा कर सकते हैं, जिसे बाद में बैंक के कामकाज को देखकर रिजर्व बैंक द्वारा बढ़ाया जा सकता है।
२. ये बैंक एटीएम कार्ड और डेबिट कार्ड जारी कर सकते हैं। लेकिन क्रेडिट कार्ड जारी नही कर सकते।
३. ये बैंक अलग अलग सेवाओं के भुगतान करने की सुविधा दे सकते हैं जो इसका मुख्य उद्देश्य है।
४. ये बैंक म्युचुअल फंड और बीमा के उत्पाद बेच सकते हैं।
५. इन बैंको की स्थापना गावों में रहने वाले छोटे छोटे जमाकर्ताओं, दूसरी जगह जाकर काम करने वाले मजदूरों और छोटे दुकानदारों, कम आय वाले परिवारों और छोटे बचत खातों की बैंक सुविधा प्रदान करवाने के लिए की जा रही है।
जो काम ये बैंक नही कर सकते।
१. ये बैंक उधार देने का काम नही कर सकते।
२. ये बैंक अपना जमा पैसा केवल सरकारी सिक्यॉरिटियों और बांड में रख सकते हैं।
ये सारे नियम और दूसरी जानकारियां भारतीय रिजर्व बैंक की प्रेस स्टेटमेंट में देखे जा सकते हैं उसके लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं।
ये सारी सुविधाएँ ये बैंक उच्च तकनीक का उपयोग करके मोबाईल फोन जैसे उपकरणों से उपलब्ध करवाएंगे। और इसके लिए किसी बैंक की शाखा में जाना नही पड़ेगा। और इन सेवाओं के बदले ये बैंक ग्राहक से चार्ज वसूल करेंगे। इससे दूसरे राज्यों में जाकर मजदूरी करने वाले लोगों के लिए घर पर पैसे भेजना आसान हो जायेगा।
इन सारी बातों को देखने पर किसी भी आदमी को इसमें कोई खराब चीज नजर नही आएगी। फिर इसका विरोध क्यों हो रहा है। इसका विरोध करने वालों में मुख्य संस्था बैंक कर्मचारियों की यूनियन है। बैंक कर्मचारियों की सबसे बड़ी यूनियन AIBEA ने एक प्रेस स्टेटमेंट जारी करके ना केवल इसका विरोध किया है बल्कि विरोध के कारणों को भी स्पष्ट किया है। जो इस प्रकार हैं।
( ये प्रेस स्टेटमेंट बिजनस स्टैंडर्ड में आप यहाँ क्लिक करके देख सकते हैं.)
१. यूनियन का कहना है की ये बैंक लाइसेंस उन्ही निजी क्षेत्र की कम्पनियों को दिए गए हैं जो सरकारी बैंकों का लगभग छह लाख करोड़ रुपया डुबा कर बैठे हैं।
२. 2008 में जब पूरी दुनिया में निजी बैंकों का दिवाला निकला था तब भारतीय अर्थव्यवस्था को सरकारी बैंकों ने इसलिए बैठने से बचा लिया था क्योंकि वो रिजर्व बैंक के सख्त नियमों के अनुसार काम करते हैं। अगर दुबारा कोई ऐसी स्थिति आती है तो इन निजी बैंकों के भरोसे अर्थव्यवस्था को नही बचाया जा सकेगा।
३. छोटी छोटी बचतें भारतीय सरकारी बैंकों की रीढ़ हैं, और इन निजी पेमेंट बैंकों के आने के बाद सरकारी बैंकों में उनका स्तर गिरेगा और सरकारी बैंक भारी दबाव में आ जायेंगे।
४. छोटी बचतों के ना मिलने के कारण बैंकों का जमा राशियों पर खर्च बढ़ जायेगा जिससे सभी तरह के लोन महंगे हो जायेंगे।
५. इस तरह ये बैंक सरकारी बैंको की व्यवस्था के विरोधी साबित होंगे और आखिर में जनविरोधी साबित होंगे।
इस पर जो दूसरे लोग भी एतराज कर रहे हैं उनमे मुख्य इस प्रकार हैं।
१. ये बैंक उच्च तकनीकी व्यवस्था पर आधारित होंगे जो की इनकी पहली शर्त है, इसलिए बिना बैंक शाखाओं के ये रोजगार विहीन विकास का नमूना होंगे जिसकी मार हमारा देश पहले ही झेल रहा है।
२. बिना उच्च मापदंडों के ये बैंक ऐसे खाते बड़ी संख्या में खोलेंगे जिनमे कालाधन जमा किया जा सकेगा। अब तक रिजर्व बैंक बड़े निजी बैंकों में भी KYC को सही ढंग से लागु नही करवा पाया है।
३. कम तकनीकी जानकारी के कारण गरीब ग्राहक बिना वजह धोखाधड़ी के शिकार होंगे, जिसे रोकने की अब तक कोई व्यवस्था नही है।
४. इसके बाद रिजर्व बैंक छोटे बैंकों के लिए लाइसेंस जारी करने जा रहा है। इस तरह ये कुल मिलाकर बैंको के सरकारीकरण की प्रकिर्या को ही उलटने का काम होगा जो हमारे जैसे देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी।
इस तरह इन बैंकों की स्थापना पर कई तरह के सवाल हैं। लोगों का एक तबका मानता है की निजी कम्पनियों को लाइसेंस देने की बजाए भारतीय डाक विभाग जैसे सरकार नियंत्रित संस्थाओं को ही इसका लाइसेंस देना चाहिए था। वैसे भी भरतीय डाक विभाग की देश के ग्रामीण क्षेत्र में 139000 शाखाएँ हैं, जबकि सारे बैंको की कुल मिलकर 44700 शाखाएं ही हैं। गरीब लोगों के पैसे को निजी हाथों में देना सुरक्षा के हिसाब से बहुत अच्छा नही माना जाता।
सर जी
ReplyDeleteप्रणाम
बहुत ही लाभप्रद जानकारी