गप्पी -- डार्विन का कहना है की आदमी अमीबा से विकास करता हुआ पहले बंदर तक आया और फिर आदमी तक पहुंचा। इस दौरान अपनी अपनी परिस्थितियों के कारण बाकि सारे जीव विकसित हुए। इससे ये बात तो साफ हो गयी की आदमियों और जानवरों में भाईचारा है। कुछ भी हो सभी जीव एक ही पूर्वज यानि अमीबा की संतान हैं। इस सिद्धांत का जबसे मेरे पड़ौसी को पता चला है वो नई खोजों में उलझ गया है। आज वो मेरे पास आया और बोला की भाई देखो भले ही अलग अलग परिस्थितियों के कारण जीवों का रूप अलग अलग हो गया है परन्तु उनमे कुछ गुण तो अब भी समान मिलते हैं। मैंने पूछा कैसे ? तो उसने कहा की बहुत से आदमियों में अलग अलग जानवरों के गुण पाये जाते हैं।
मैंने समझने की कोशिश की और उसकी तरफ देखा तो उसने समझाने के अंदाज में मुझे जो बताया वो इस तरह है।
कुछ आदमियों में अब भी सरीसृप यानि रेंगने वाले प्राणियों के गुण पाये जाते हैं। आदमियों का एक बड़ा हिस्सा प्रभावशाली लोगों के सामने बिलकुल केंचुए या छिपकली की तरह रेंगता रहता है। इनमे से कुछ लोग किसी स्वार्थ के लिए ऐसा करते हैं पर बहुत से लोग केवल स्वभाव के कारण ही रेंगते रहते हैं। कोई बड़ा आदमी कितनी ही गलत बात क्यों ना कहे इनका सिर ही ऊपर नही होता। इन पर कितना ही जुल्म हो जाये लेकिन कोई विरोध नही करते। इसलिए मैं तो कहता हूँ की ये जरूर उनके रेंगने वाले पूर्वजो की जीन उनमे आने के कारण हुआ है। वरना आखिर बर्दाश्त की भी कोई सीमा होती है।
मैंने हल्का सा सिर हिलाया तो उन्होंने तुरंत कहा की दूसरा उदाहरण ले लो।
कुछ आदमियों में कुत्तों और भेड़ियों के जीन पाये जाते हैं। ये लोग अपने मालिक के दरवाजे पर पड़े रहते हैं भले ही वो इनको कितनी ठोकर क्यों ना मारे। ये सब लोग टुकड़ों के लिए नही पड़े रहते। ये अपने मालिक के कहने पर राह चलते आदमी पर टूट पड़ते हैं और उसे फाड़ डालते हैं। मैं तो कहता हूँ की अगर ये सामान्य आदमी होते तो किसी को फाड़ने से पहले थोड़ा तो गुण-दोष का विचार करते। अगर सामान्य आदमी होते तो कभी तो इस जिल्ल्त को महसूस करते। लेकिन नही। सोशल मीडिया पर इन कुत्ते + भेड़िया टाइप लोगों की भरमार है। ये सब उसी भेडिया और कुत्ता टाइप जीन के कारण हो रहा है
तीसरा उदाहरण देता हूँ, कुछ लोगों में मछलियों के जीन पाये जाते हैं। कोई बड़ा आदमी इनके सामने कितने ही छोटे आदमियों को निगल जाता है लेकिन इन्हे इसमें कुछ भी गलत नही लगता। ये इसे न्यायसंगत मानते हैं। ये सारी जिंदगी खुद को बड़ी मछलियों से बचाकर खुद बड़ा होने का इंतजार करते रहते हैं ताकि छोटी मछलियों को निगल सकें।
और उदाहरण देता हूँ। कुछ लोगों में मधु मक्खियों के जीन पाये जाते हैं। ये लोग सारी जिंदगी रानी मक्खी के लिए घर बनाते और शहद इकट्ठा करते रहते हैं। ये सारा काम करते हैं और इनके हिस्से में कुछ नही आता। यहाँ तक की अण्डे भी रानी मक्खी ही देती है। ये लोग पूरी उमर दूसरों के लिए काम क्यों करते रहते हैं। मैं तो कहता हूँ की इन सब चीजों का कारण वो जीन ही हैं जो इन्हे इनके पूर्वजों से मिली हैं। जब कोई वैज्ञानिक इस चीज पर शोध करेगा तब तुम्हारी समझ में आएगा। और वो उठकर चले गए।
खबरी -- लेकिन एक बात याद रखनी चाहिए की इन आदमियों में आदमियों के जीन भी होते हैं। उम्मीद करो की कभी तो वो भी रंग दिखाएगी।
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.