गप्पी -- लोग अब तक यही समझते थे की जो मंत्रालय जिस विभाग से संबंधित है वो केवल उसका ही काम करता है। ऐसा संविधान में नही लिखा है ये सरकार का मानना है। इसलिए किसी भी विभाग को कोई भी काम दिया जा सकता है। वैसे जो विभाग जिस काम के लिए बनाया गया है उसका काम तो वो करता ही है। जैसे मैंने सूरत की ट्रैफिक जाम की समस्या पर अपने पड़ौसी से पूछा की वो कौनसे दो मुख्य कारण मानते हैं ट्रैफिक जाम के लिए। तो उसने कहा की पहला तो ट्रैफिक पुलिस और दूसरा महानगर पालिका। उसने कहा की और किसी विभाग को तो अधिकार ही नही है ट्रैफिक जाम करने का।
मैंने आश्चर्य व्यक्त किया तो उसने समझाया।
देखो, जो ट्रैफिक पुलिस हम सड़कों पर देखते हैं और समझते हैं की ट्रैफिक को ठीक करने के लिए है दरअसल वो उसके लिए नही है। जो पांच ट्रैफिक कांस्टेबल और दस ट्रैफिक ब्रिगेड के जवान किसी चौराहे पर ड्यूटी दे रहे होते है उनमे से सात लोग चौराहे से पहले पैसे इकट्ठे करते है और सात चौराहे के आगे। चौराहे पर केवल एक आदमी होता है जो इसलिए खड़ा किया जाता है की अगर कोई पहली टीम को धोखा देकर निकलने की कोशिश करे तो वो आगे वाली को खबरदार कर दे। जब चौराहे पर जाम लग जाता है तो हमारी समझदार जनता दूसरी तीसरी लाइन लगा कर दोनों तरफ आमने सामने हो जाती है। कोई निकल नही सकता। तब एक जवान आता है और जो सबसे गलत तरीके से ट्रैफिक रोके हुए हैं उनको सबसे पहले निकलता है। इसलिए हर आदमी गलत जगह जाकर खड़ा होने की कोशिश करता है ताकि उसे पहले निकाल दिया जाये।
दूसरे, महानगर पालिका के लोग हैं जो वन वे सड़क के दोनों तरफ एक साथ गड्डा खोदते हैं। अगर किसी कारण से एक ही गड्डा खोदना पड़ता है तो उसके बाजू में ट्रक पार्क करके घर चले जाते हैं। उन्हें मालूम है की सड़क उनकी है और बाकि के जो लोग सड़क पर चलते हैं वो उनकी दयाभावना का फायदा उठा कर चलते हैं। शहर में कम से कम सौ जगह ऐसी होती हैं जहां हर तीन महीने में खुदाई की जाती है और दो महीने चलती है। अब तो लोग घर से निकलते ही पूछ लेते हैं की फलां जगह खुदाई तो नही चल रही है वरना दूसरा रास्ता लें। कभी कभी कोई बोर्ड इस्तेमाल करना भी होता है जिस पर लिखा होता है की आगे काम चालू है, तो उसको उस जगह रखा जाता है की वाहन वाले को उसे देखने के बाद कम से कम एक किलोमीटर वापिस आना पड़े।
मेरे पड़ौसी का मानना है की अगर ट्रैफिक पुलिस और महानगर पालिका को भंग कर दिया जाये तो सूरत की ट्रैफिक समस्या हल हो सकती है।
खैर, हम तो रेलवे की बात कर रहे थे। सो उसे जनसंख्या नियंत्रण का काम भी दे दिया गया है। यह काम उसे यों ही नही दिया गया है बल्कि बाकायदा उसकी योग्यता को ध्यान में रखकर दिया गया है। रेलवे ने इस काम के लिए कुछ कार्य योजना तय की हैं। जो इस प्रकार हैं।
१. सीधी कार्य योजना, जिसे लोग तकनीकी भाषा में दुर्घटना कहते हैं।
२. रेल में खाने की क्वालिटी ऐसी रखना जिससे आदमी धीरे-धीरे करके लेकिन निश्चित रूप से मर जाये।
३. रेल का किराया इतना रखना जिससे कमजोर दिल के आदमियों को भगवान से मिलने के लिए ज्यादा इंतजार ना करना पड़े।
४. रेल के डिब्बों में इतनी भीड़ रखना की घरवाले यात्री का श्राद्ध करके ही रेल में बिठाने आएं। ये जो एक एक आदमी को बीस बीस लोग बैठाने आते हैं वो इसीलिए आते हैं की उनको मालूम है की आखरी बार मिल रहे हैं।
५. रेल में टिकट चैकर और रेलवे पुलिस के जवानो को भी ट्रेनिंग दी गयी है और वो भी बीच बीच में यात्रियों को चलती ट्रेन से फेंक कर इसमें योगदान करते हैं।
६. जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर पहुंचती है, पानी की लाइन बंद कर दी जाती है ताकि गर्मी और प्यास को भी अपनी भूमिका निभाने का मौका मिल सके।
७.रेलवे स्टेशनों पर इतनी गंदगी रखी जाती है की यात्रियों की तरह ही हजारों बीमारियां भी शहर में रोज प्रवेश करती हैं।
८. इस कार्ययोजना को तेज करने के लिए एक विशेष सेल बनाया जा रहा है।
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