मैंने GST बिल पर कुछ दिन पहले लिखे अपने लेख में इस बिल के महंगाई बढ़ाने वाले और लघु उद्योग पर इस बिल के दुष्प्रभावों पर रौशनी डालने का प्रयास किया था। मेरा ये लेख इसी ब्लॉग में "GST बिल घोर जनविरोधी, भयंकर महंगाई बढ़ाने वाला और लघु उद्योगों की मौत का फरमान है"
के नाम से उपलब्ध है। इस लेख में मैंने इस बिल के कुछ व्यवहारिक पहलुओं पर लिखने की कोशिश की थी। उसी दिन शाम को NDTV पर एक टीवी बहस में देश के जाने माने अर्थशास्त्री प्रो अरुण कुमार ने उन सवालों की पुष्टि की। उसके बाद GST के सवाल पर कई तरह की टीवी बहसें भी हुई और कुछ राजनितिक पार्टियों के बयान भी आये। इसी क्रम में एक बहुत ही जानकारी पूर्ण लेख पीपुल्स डेमोक्रेसी में छपा है। ये लेख भी देश के जाने माने अर्थशास्त्री और केरल योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे श्री प्रभात पटनायक ने लिखा है। ये लेख "The Debate on GST" के नाम से छपा है। इस लेख में आदरणीय प्रभात पटनायक साहब ने इस बिल के सैद्धांतिक पहलुओं को उजागर किया है। इस लेख से मेरे द्वारा उठाये गए कुछ सवलों की पुष्टि भी होती है। इस लेख में मुख्य तौर पर दो सवालों को उठाया गया है।
के नाम से उपलब्ध है। इस लेख में मैंने इस बिल के कुछ व्यवहारिक पहलुओं पर लिखने की कोशिश की थी। उसी दिन शाम को NDTV पर एक टीवी बहस में देश के जाने माने अर्थशास्त्री प्रो अरुण कुमार ने उन सवालों की पुष्टि की। उसके बाद GST के सवाल पर कई तरह की टीवी बहसें भी हुई और कुछ राजनितिक पार्टियों के बयान भी आये। इसी क्रम में एक बहुत ही जानकारी पूर्ण लेख पीपुल्स डेमोक्रेसी में छपा है। ये लेख भी देश के जाने माने अर्थशास्त्री और केरल योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे श्री प्रभात पटनायक ने लिखा है। ये लेख "The Debate on GST" के नाम से छपा है। इस लेख में आदरणीय प्रभात पटनायक साहब ने इस बिल के सैद्धांतिक पहलुओं को उजागर किया है। इस लेख से मेरे द्वारा उठाये गए कुछ सवलों की पुष्टि भी होती है। इस लेख में मुख्य तौर पर दो सवालों को उठाया गया है।
१. अलोकतांत्रिक प्रणाली लाने की कोशिश
अपने लेख में उन्होंने ये महत्त्वपूर्ण सवाल उठाया है की इस बिल के बाद जो टैक्स प्रणाली लागु होगी वो लोगों के जनतांत्रिक अधिकारों को और उनकी चुनाव करने के विकल्पों को सिमित करेगा। इसको ठीक तरह से इस प्रकार समझा जा सकता है। अब तक लोगों के पास अलग राजनैतिक और आर्थिक विचारधारा वाली पार्टियों को चुनने का विकल्प है। इस प्रणाली के बाद राज्य में सरकार में आने वाली किसी भी पार्टी के लिए ये असम्भव हो जायेगा की वो किसी भी जरूरत मंद तबके को किसी भी तरह की टैक्स छूट देकर राहत दे सके। अब तक राज्य सरकारें अपनी आर्थिक और राजनैतिक नीतियों के अनुसार टैक्स की दरें तय करती हैं। जिनमे जीवन के लिए जरूरी वस्तुओं पर ये दर कम रखी जाती है और कुछ विलासिता की वस्तुओं पर टैक्स लगाकर उस नुकशान की भरपाई कर ली जाती है। GST की प्रणाली लागु होने के बाद सभी वस्तुओं पर सभी राज्यों में एक समान कर होगा और राज्य सरकार चाहे भी तो इसमें कोई बदलाव नही कर सकती। एक तरफ ये रोक राज्य सरकार के अधिकारों को बाधित करता है तो दूसरी तरफ लोगों के अपनी मर्जी का विकल्प चुनने के अधिकार को भी बाधित करता है। लोग चाहें किसी को भी चुने टैक्स की दर में कोई परिवर्तन नही हो सकता।
२. अमीरों को राहत देने की प्रणाली
दूसरा महत्त्व पूर्ण सवाल जो इसमें उठाया गया है वो ये है की GST लागु होने के बाद टैक्स की दरों में एक समानता (uniformity ) आ जाएगी। जिससे अमीरों द्वारा खरीदे जाने वाले विलासिता के सामान पर टैक्स की दर जो अभी ज्यादा हैं वो कम हो जाएगी, और गरीबों के जीवन जरूरत की चीजों पर अभी जो कम दर है वो बढ़ जाएगी। इसलिए ये बिल गरीबों के हितों के खिलाफ और अमीरों के हितों के अनुसार होगा। इस तरह की (uniformity ) अंतिम तौर पर गरीबों के खिलाफ ही होगी।
इस लेख में कुछ दूसरी महत्त्वपूर्ण बातें भी हैं। लेकिन मैं केवल उन्ही पहलुओं को उठा रहा हूँ जो इस लेख के लिए जरूरी हैं।
लघु उद्योगों के खिलाफ और बड़ी कम्पनियों के फायदे में ---
जिस (uniformity ) का जिक्र श्री प्रभात पटनायक साहब जरूरत और विलासिता की वस्तुओं के संदर्भ में कर रहे हैं उसी (uniformity ) की बात मैं लघु उद्योग और बड़े उद्योगों के संदर्भ में कर रहा हूँ। GST की नई टैक्स प्रणाली लागु होने के बाद लघु उद्योगों को मिलने वाली छूट केवल कागजों में रह जाएगी और उसका कोई व्यवहारिक मतलब नही रह जायेगा। इसकी पूरी तफ्सील मैंने अपने पिछले लेख में दी है। ये बिल लघु उद्योग को बर्बाद करने के बड़े उद्योग के षड्यंत्र का हिस्सा है जिसे समझने की जरूरत है।
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