Saturday, August 8, 2015

Vyang -- एक कुली से वाद-विवाद

गप्पी -- मुझे अपनी ये रेल यात्रा भी याद रहेगी। और वो भी एक कुली से वाद-विवाद के कारण। मैं अपने चार बैग के साथ रेलवे स्टेशन पहुंचा। वहां से मुझे पुल पार करके दूसरे प्लेटफार्म पर जाना था जो मैं एकसाथ चार बैग उठाकर नही जा सकता था। मुझे एक कुली की जरूरत थी जो मुझसे थोड़ी दूर मेरे बुलाने का इंतजार कर रहा था। मैंने उसे इशारा किया। वो आराम से चलकर मेरे पास आया और बोला, कहिये साहब, कहाँ जाना है ?
        दो नंबर पर।  मैंने कहा।
       सामान गाड़ी में भी रखवाना है या केवल प्लेटफार्म पर छोड़ना है ?
       गाड़ी में तो रखवाना ही पड़ेगा, वरना इतना सामान लेकर मैं गाड़ी में चढूंगा कैसे ?
       कोई बात नही, सामान गाड़ी में ही क्यों आपकी सीट के नीचे व्यवस्थित तरीके से रख देंगे। आप आराम से चढ़ना।
        कितना पैसा लोगे ? मैंने पहले तय करना ठीक समझा।
         दौ सौ रूपये दे देना। उसने एकदम आराम से कहा जैसे टिकट का रेट बता रहा हो।
         दौ सौ !!!!!!!! मैंने आश्चर्य व्यक्त किया। केवल एक ही प्लेटफार्म आगे तो है ?
         इसीलिए दौ सौ होते हैं, वरना हर प्लेटफार्म के हिसाब से बीस रूपये बढ़ जायेंगे।
         ये तो जनरल डिब्बे का दिल्ली तक का किराया होता है जो तुम मुझसे एक प्लेटफार्म पार करवाने का मांग रहे हो। इतनी तो कलेक्टर की तनखा भी नही होती।  मैंने अपने सारे तर्क एकसाथ झोँक दिए।
         जनरल डिब्बे में 70 सीटों पर 400 यात्री सफर करते हैं सो रेलवे का हिसाब तो बराबर हो जाता है। और जहां तक कलेक्टर का सवाल है उसे चार बैग उठाकर नही चलना पड़ता। अगर उसे भी चार बैग उठाकर चलना पड़ता तो वह भी इस तनखा में काम करने से इनकार कर देता। उसने एकदम सहज भाव से जवाब दिया।
           उससे तो अच्छा है की मैं खुद दो बार में ले जाऊँ। मैंने आखरी तरीका अपनाया।
          नही, वो अच्छा नही है। आप दो बैग लेकर ऊपर जायेंगे और जब तक वापिस आएंगे आपको यहां वाले दो बैग गायब मिलेंगे। जब आप यहां से चीख-चिल्लाकर वापिस जायेंगे तो वहां वाले दोनों बैग भी गायब मिलेंगे। इस तरह दौ सौ बचाने के चककर में आपके चारों बैग चोरी हो जायेंगे। उसने फिर पूरे आराम से कहा।
           ये तो सरासर धोखाधड़ी है। एकदम दादागिरी। मुझे गुस्सा आया।
           नही ये धोखाधड़ी नही है। धोखाधड़ी वो है जब एक डॉक्टर वो टेस्ट लिखता है जिसकी जरूरत नही होती। या फिर वो दवाई देता है जिसकी मरीज को कोई जरूरत नही होती। और दादागिरी वो होती है जब स्कूल का हैड मास्टर आपको बच्चे की यूनिफॉर्म उसी दुकान से खरीदने को बाध्य करता है जिसका रेट स्कूल का कमीशन मिलाकर बाजार से दुगना होता है। उसने फिर बिना किसी परेशानी के जवाब दिया।
            तुम्हे पता है की डाक्टर बनने के लिए कितना खर्चा करना पड़ता है ? तुम अपने काम की तुलना डॉक्टर से कर रहे हो। मैंने असहमति में सिर झटका।
             आपको क्या लगता है की रेलवे में कुली का काम लेना MBBS में एडमिशन से आसान है ?
            एक डॉक्टर को पढ़ाई पूरी करने में 20 साल लगते हैं। मैंने हँसते हुए एतराज किया।
            मुझे भी MBA करने में बीस साल लगे हैं। उसने जैसे बम फोड़ा।
            तुम MBA हो !!!! फिर कुली का काम क्यों कर रहे हो। कोई अच्छा काम क्यों नही करते? मैंने आश्चर्य प्रकट किया।
             ये भी अच्छा काम है। इसमें क्या खराबी है। फिर अच्छा काम किसको कहते हैं ? बड़े बड़े लोग जिनको समाज में बहुत इज्जत मिलती है ड्रग्स का धंधा करते हैं, सैक्स रैकेट चलाते हैं, मंदिर चलाते हैं, निजी गौशालाएँ चलाते हैं। अगर आपने मधुर भंडारकर की फिल्म " ट्रैफिक सिगनल " देखी  हो तो मालूम पड़ेगा की भीख मांगना की कितना बड़ा धन्धा है। उन सबसे ये धन्धा मुझे लाख गुना अच्छा लगता है। उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
             अब मेरे पास कोई तर्क नही बचा था सो मैंने उससे कहा, ठीक है ले चलो।
             उसने एक लड़के को आवाज दी और उससे कहा की साहब को दो नंबर पर गाड़ी में बिठा देना। इनका सामान ठीक से सीट के नीचे रखवा देना और साहब को पानी या चाय वगैरा की जरूरत हो तो वो भी लाकर दे देना।
         तभी एक बूढी और भारी शरीर की महिला ने स्टेशन में प्रवेश किया। उसके पास सामान के नाम पर कुछ था नही लेकिन वो अपनी छड़ी के सहारे बड़ी मुश्किल से चल पा रही थी। उस कुली ने उससे पूछा, माताजी कहां जाना है ?
            पांच नंबर पर जाना है बेटा। पता नही वहाँ पहुँचते पहुँचते गाड़ी ना निकल जाये। महिला ने हांफते हुए जवाब दिया।
            दो मिनट रुको माताजी, उसने एक दूसरे लड़के को आवाज लगाई। जाओ व्हीलचेयर लेकर आओ और माताजी को पांच नंबर पर छोड़ दो।
             कितने पैसे लोगे बेटा ? महिला ने पूछा।
            व्हीलचेयर का बीस रुपया दे देना माताजी।
             मैं हैरान था। मैंने उसकी तरफ देखा तो उसने हँसकर कहा , आपने कुछ दुकान वालों को गौशाला का दानपात्र रखे देखा होगा, ये हमारा दान पात्र है। और वो आगे चला गया।

खबरी -- इस पर कहने के लिए मेरे पास कोई शब्द नही हैं।      

          

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