गप्पी -- मैं ये बात पूरी जिम्मेदारी और होशोहवास में कह रहा हूँ। पूरी दुनिया में अब तक अथशास्त्र के क्षेत्र में जितनी खोजें हुई हैं ये अकेली खोज उन सब पर भारी है। इस खोज से पूरी दुनिया की गरीबी मिटाई जा सकती है। पूरी दुनिया में पूंजी की जो कमी है वो दूर की जा सकती है। बताओ आपने कभी इससे ज्यादा क्रन्तिकारी खोज के बारे में सुना है। और सबसे बड़ी बात ये है की कई विपक्षी दल भी इस खोज से सहमत हैं। कृपया धर्य रखिये, मैं इस खोज के बारे में बताने ही जा रहा हूँ। अगर इस पर मैं पहले कही गयी बातें नही कहता तो इसकी महान स्थिति को समझने में अापसे गलती हो सकती थी। या फिर आप इसे यों ही ध्यान से निकाल सकते थे। इसलिए पहले मैंने इसके महत्त्व को रखांकित किया और बाद में इसकी तफ्सील बता रहा हूँ। परन्तु मेरी पाठकों से विनती है की वो इसको जरा ध्यान पूर्वक पढ़ें।
हमारी सरकार ने संसद में एक बिल पेश किया है जिसे GST बिल कहते हैं। वैसे तो ये बिल टैक्स लगाने और इकट्ठा करने से संबंधित है। और इसको टैक्स क्षेत्र में किये जाने वाला अब तक का सबसे बड़ा सुधार कहा गया है। परन्तु इस बिल के बारे में जो कुछ सरकार की तरफ से और मीडिया में कहा गया है और जो जानकारी दी गयी है उसमे इसकी महानता छिपी हुई है। जैसे,--
१. इस बिल से ग्राहकों को सस्ता सामान मिलेगा।
२. इस बिल से उद्योगों को फायदा होगा और उनकी लागत घटेगी।
३. इस बिल से सरकार की आमदनी बढ़ेगी।
४. इस बिल से राज्य सरकारों की टैक्स की उगाही बढ़ेगी।
आया कुछ समझ में ?
अगर किसी चीज से सरकार की टैक्स उगाही बढ़ती है तो जाहिर है की ये पैसा सामान खरीदने वाले की जेब से जाता है। लेकिन सरकार कह रही है की खरीददार को सामान सस्ता मिलेगा। अगर ग्राहक को सामान सस्ता मिलता है और सरकार को टैक्स ज्यादा मिलता है तो बीच का पैसा कहां से आएगा। जाहिर है की हवा से पैदा होगा। और अगर कोई सरकार हवा से पैसा पैदा कर दे तो उसे नोबल पुरुस्कार मिलना चाहिए की नही। अब तक दुनिया में ऐसे हवा से पैसा पैदा करने की कोई खोज नही हुई है। इसलिए इस क्रन्तिकारी खोज को पूरी दुनिया में लागु करके गरीबी मिटाई जा सकती है। पूंजी की कमी को दूर किया जा सकता है।
मीडिया में बैठे हुए एक्सपर्ट इस पर घंटों बहस करते हैं और सिद्ध करते हैं की हाँ, ऐसा ही होने वाला है। इससे देश की जीडीपी में दो प्रतिशत तक बढ़ौतरी हो सकती है। मुझे अब तक ये समझ में नही आया की टैक्स उगाही का सिस्टम बदल देने से पुरे देश की जीडीपी कैसे बढ़ जाएगी। टैक्स उगाही का जीडीपी से क्या लेना देना है। लोग सामान अपनी हैसियत के मुताबिक खरीदते हैं। उसमे दस प्रतिशत की बजाए बीस प्रतिशत टैक्स लगना शुरू हो जाये तो जीडीपी कैसे बढ़ जाएगी। एक ही चीज है जिससे जीडीपी बढ़ सकती है। वो है उत्पादन करने वाले उद्योगों में बदलाव आना। इस सिस्टम के हिसाब से अपना सामान बनाने और उसे बाजार में बेचने के लिए जितनी तरह की लाइसेंस की श्रृंखला चाहिए वो छोटे उद्योगों के लिए सम्भव नही है। इसलिए उनके उत्पादन का स्थान बड़ी कंपनियां ले लेंगी। छोटे उद्योगों का हमारे ओद्योगिक उत्पादन में जो बड़ा हिस्सा है, बड़ी कम्पनियों की आँखे उस पर लगी हुई हैं। इसलिए उनका इतना दबाव है इसे लागु करने का। बड़े उद्योगों को फायदा करवाने के लिए प्रतिबद्ध सरकार पहले छोटे उद्योगों के मरने का रास्ता साफ करेगी और बाद में उस पर संसद में आंसू बहाएगी किसानो की तरह। जो विपक्षी दल आज इसको समर्थन कर रहे हैं कल वो छोटे उद्योगों की मौत पर दहाड़ें मार मार कर रोयेंगे और सरकार को कोसेंगे।
परन्तु अगर ये सब नही होगा और व्ही सब होगा जो सरकार कह रही है तो सरकार निश्चित रूप से नोबल पुरुस्कार की अधिकारी है।
हमारी सरकार ने संसद में एक बिल पेश किया है जिसे GST बिल कहते हैं। वैसे तो ये बिल टैक्स लगाने और इकट्ठा करने से संबंधित है। और इसको टैक्स क्षेत्र में किये जाने वाला अब तक का सबसे बड़ा सुधार कहा गया है। परन्तु इस बिल के बारे में जो कुछ सरकार की तरफ से और मीडिया में कहा गया है और जो जानकारी दी गयी है उसमे इसकी महानता छिपी हुई है। जैसे,--
१. इस बिल से ग्राहकों को सस्ता सामान मिलेगा।
२. इस बिल से उद्योगों को फायदा होगा और उनकी लागत घटेगी।
३. इस बिल से सरकार की आमदनी बढ़ेगी।
४. इस बिल से राज्य सरकारों की टैक्स की उगाही बढ़ेगी।
आया कुछ समझ में ?
अगर किसी चीज से सरकार की टैक्स उगाही बढ़ती है तो जाहिर है की ये पैसा सामान खरीदने वाले की जेब से जाता है। लेकिन सरकार कह रही है की खरीददार को सामान सस्ता मिलेगा। अगर ग्राहक को सामान सस्ता मिलता है और सरकार को टैक्स ज्यादा मिलता है तो बीच का पैसा कहां से आएगा। जाहिर है की हवा से पैदा होगा। और अगर कोई सरकार हवा से पैसा पैदा कर दे तो उसे नोबल पुरुस्कार मिलना चाहिए की नही। अब तक दुनिया में ऐसे हवा से पैसा पैदा करने की कोई खोज नही हुई है। इसलिए इस क्रन्तिकारी खोज को पूरी दुनिया में लागु करके गरीबी मिटाई जा सकती है। पूंजी की कमी को दूर किया जा सकता है।
मीडिया में बैठे हुए एक्सपर्ट इस पर घंटों बहस करते हैं और सिद्ध करते हैं की हाँ, ऐसा ही होने वाला है। इससे देश की जीडीपी में दो प्रतिशत तक बढ़ौतरी हो सकती है। मुझे अब तक ये समझ में नही आया की टैक्स उगाही का सिस्टम बदल देने से पुरे देश की जीडीपी कैसे बढ़ जाएगी। टैक्स उगाही का जीडीपी से क्या लेना देना है। लोग सामान अपनी हैसियत के मुताबिक खरीदते हैं। उसमे दस प्रतिशत की बजाए बीस प्रतिशत टैक्स लगना शुरू हो जाये तो जीडीपी कैसे बढ़ जाएगी। एक ही चीज है जिससे जीडीपी बढ़ सकती है। वो है उत्पादन करने वाले उद्योगों में बदलाव आना। इस सिस्टम के हिसाब से अपना सामान बनाने और उसे बाजार में बेचने के लिए जितनी तरह की लाइसेंस की श्रृंखला चाहिए वो छोटे उद्योगों के लिए सम्भव नही है। इसलिए उनके उत्पादन का स्थान बड़ी कंपनियां ले लेंगी। छोटे उद्योगों का हमारे ओद्योगिक उत्पादन में जो बड़ा हिस्सा है, बड़ी कम्पनियों की आँखे उस पर लगी हुई हैं। इसलिए उनका इतना दबाव है इसे लागु करने का। बड़े उद्योगों को फायदा करवाने के लिए प्रतिबद्ध सरकार पहले छोटे उद्योगों के मरने का रास्ता साफ करेगी और बाद में उस पर संसद में आंसू बहाएगी किसानो की तरह। जो विपक्षी दल आज इसको समर्थन कर रहे हैं कल वो छोटे उद्योगों की मौत पर दहाड़ें मार मार कर रोयेंगे और सरकार को कोसेंगे।
परन्तु अगर ये सब नही होगा और व्ही सब होगा जो सरकार कह रही है तो सरकार निश्चित रूप से नोबल पुरुस्कार की अधिकारी है।
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