गप्पी -- अब अल्बर्ट पिन्टो को गुस्सा नही आता , रोना आता है। बेचारगी में किसी को गुस्सा नही आता रोना ही आता है। अल्बर्ट पिन्टो 30 साल का नौजवान है। उसने बी-टेक किया है कम्प्यूटर साइंस में। कभी उसे इस बात का गर्व होता था अब मलाल होता है। आदमी को जिंदगी में बहुत सी चीजों पर मलाल होता है। परन्तु दिक्क्त ये है की जब तक उसे पता चलता है की अमुक चीज पर उसे मलाल होने वाला है और कुछ होने का समय ही नही होता। जब उसे बी-टेक पर मलाल होने का पता लगा, वो बी-टेक कर चूका था। और बी-टेक करने के जुर्माने के रूप में एक लाख का कर्जा भी हो चुका था। उसने बहुत दिन इंतजार किया की ये मलाल मिट जाये, यानि उसे कोई नौकरी मिल जाये परन्तु इस देश के बहुमत के नौजवानो की तरह उसका मलाल मिट नही पाया। दो तीन साल गुजर जाने के बाद पता चला की अब तो कर्जे का ब्याज चुकाने के लिए भी कुछ नही बचा है तो उसने कॉल सेंटर में नौकरी कर ली। 10000 की फिक्स पगार। कुल मिलाकर 120 लोग। जिंदगी मलाल के साथ साथ आगे बढ़ने लगी।
कुछ दिन पहले ही ये खबर आई की सरकार श्रम कानूनो में सुधार कर रही है। उसे आशा बंधी, अब कुछ होगा। ये सरकार और प्रधानमंत्री उसके और उस जैसे नौजवानो के लिए कुछ जरूर करेंगे। उन्होंने वादा किया था। और चाहे कुछ भी हो ये "आदमी" अपने वादे का पक्का है। उसने भी चुनाव के दौरान रैलियों में उसके लिए नारे लगाये थे। सोशल मीडिया पर विपक्षियों को गलियां दी थी। अब जाकर उसका दिन आया है। अब सरकार श्रम कानूनो में सुधार करने जा रही है। सरकार का कहना है की इससे रोजगार बढ़ेगा। मजदूरों की कमाई बढ़ेगी। उसे उम्मीद है।
लेकिन ये क्या हो रहा है। उसके कॉल सेंटर के मालिक भी खुश हैं और इसका समर्थन कर रहे हैं। उनको तो घबराना चाहिए। लेकिन वो तो मांग कर रहे हैं की इसे जल्दी लागु किया जाये। विपक्ष की पार्टियां और मजदूरों के संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। उसे कुछ समझ में नही आ रहा है। सब कुछ उलझा उलझा लग रहा है।
आज प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर टीवी में कुछ कहने वाले हैं। बिलकुल "मन की बात" की तरह। टीवी पर आने वाले कार्यक्रम से आधा घंटा पहले ही वह सोफे पर बैठ गया है। घर वाले सीरियल देखना चाहते हैं लेकिन वो सबको डांट देता है। सही समय पर प्रधानमंत्री टीवी पर रूबरू होते हैं। मित्रो, हम इस देश में अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे कुछ श्रम कानूनो में बदलाव करना चाहते हैं। हम चाहते हैं की इस देश में श्रम के बाजार में बढ़ौतरी हो। सब नौजवानो को काम मिले जिससे वो अपने और अपने माँ-बाप के सपनो को पूरा कर सकें। हम ओवर टाइम के कानूनो में बदलाव करना चाहते हैं। दुगना ओवर-टाइम की शर्त गलत शर्त है। क्या किसी मजदूर को इसका हक नही है की वो अपने मालिक के सामने खड़ा होकर अपनी मजदूरी तय कर सके। मैं कहता हूँ की उसको इसका पूरा हक है। क्या उसे हक नही है की वो ये कह सके की वो कितनी देर तक ओवर-टाइम करना चाहता है। मैं कहता हूँ की पूरा हक है। हर मजदूर, हर नौजवान को इस बात का हक है की नही की वो मालिक की आँखों में आँखे डालकर कह सके की वो इतनी देर ओवर-टाइम करेगा और उसके लिए इतनी मजदूरी लेगा। अगर वो नौकरी छोड़ना चाहता है तो उसे इसका पूरा हक है। वो किसी का बंधुआ मजदूर नही है। फिर उस पर एक महीने के नोटिस का प्रतिबंध क्यों है। हम इस प्रतिबंध को समाप्त कर रहे हैं। ये कानून पास होने के बाद हर नौजवान गर्व से अपने नौकरी दाताओं को कह सकेगा की उसे क्या चाहिए।
उसे शरीर में झुरझुरी महसूस हुई। उसे एक नए माहौल का अहसास हुआ। आत्म सम्मान के अतिरेक में उसे रात को देर से नींद आई।
टीवी पर संसद का सीधा प्रसारण हो रहा था। सरकार बिल पेश करने की कोशिश कर रही थी। परन्तु विपक्ष उसे हंगामा करके रोक रहा था। उसके मन में जितनी गलियां याद थी वो सारी की सारी विपक्ष को दे चूका था। आखिर सरकार बिल को पेश करने और बिना बहस के पास कराने में कामयाब हो गयी। उसने चैन की साँस ली। एक अजीब सा संतोष उसके चेहरे पर झलक रहा था।
अगले दिन ड्यूटी के दौरान उसका आत्म विश्वास बढ़ा हुआ था। शाम को ड्यूटी खत्म होने के समय उसे मैनेजर के कार्यालय में बुलाया गया। वहां बाकि के 25-30 लोग भी मौजूद थे। मैनेजर ने कहा की कल से ड्यूटी 12 घंटे की होगी। और ओवर-टाइम भी सिंगल रेट से दिया जायेगा।
उसने आगे बढ़कर कहा की पहले दुगना ओवर-टाइम मिलता था। हम तो अब उस पर भी काम करने को तैयार नही हैं। आपको हमारे साथ बात करके रेट तय करना होगा। मैनेजर और उसके साथ बैठे दो-तीन लोग जोर से हँसे। " लगता है भाषण सुन कर आया है समझ कर नही। "
" ठीक है, अब दुगने ओवर-टाइम का कानून तो है नही। अब हम सिंगल से ज्यादा नही देंगे। जिसको मंजूर नही हो वो कैश काउन्टर पर जाकर अपना हिसाब ले ले। "
आप इस तरह बिना नोटिस दिए अचानक कैसे नौकरी से निकाल सकते हो। उसने अधिकार से कहा।
" तुम्हे मालूम नही की एक महीने का नोटिस पीरियड खत्म कर दिया गया है। " मैनेजर ने मुस्कुराते हुए कहा।
वह बाहर निकल आया। उसे प्रधानमंत्री का भाषण याद आ रहा था, " क्या किसी नौजवान को हक नही की -----------" और उसे रोना आ गया।
कुछ दिन पहले ही ये खबर आई की सरकार श्रम कानूनो में सुधार कर रही है। उसे आशा बंधी, अब कुछ होगा। ये सरकार और प्रधानमंत्री उसके और उस जैसे नौजवानो के लिए कुछ जरूर करेंगे। उन्होंने वादा किया था। और चाहे कुछ भी हो ये "आदमी" अपने वादे का पक्का है। उसने भी चुनाव के दौरान रैलियों में उसके लिए नारे लगाये थे। सोशल मीडिया पर विपक्षियों को गलियां दी थी। अब जाकर उसका दिन आया है। अब सरकार श्रम कानूनो में सुधार करने जा रही है। सरकार का कहना है की इससे रोजगार बढ़ेगा। मजदूरों की कमाई बढ़ेगी। उसे उम्मीद है।
लेकिन ये क्या हो रहा है। उसके कॉल सेंटर के मालिक भी खुश हैं और इसका समर्थन कर रहे हैं। उनको तो घबराना चाहिए। लेकिन वो तो मांग कर रहे हैं की इसे जल्दी लागु किया जाये। विपक्ष की पार्टियां और मजदूरों के संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। उसे कुछ समझ में नही आ रहा है। सब कुछ उलझा उलझा लग रहा है।
आज प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर टीवी में कुछ कहने वाले हैं। बिलकुल "मन की बात" की तरह। टीवी पर आने वाले कार्यक्रम से आधा घंटा पहले ही वह सोफे पर बैठ गया है। घर वाले सीरियल देखना चाहते हैं लेकिन वो सबको डांट देता है। सही समय पर प्रधानमंत्री टीवी पर रूबरू होते हैं। मित्रो, हम इस देश में अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे कुछ श्रम कानूनो में बदलाव करना चाहते हैं। हम चाहते हैं की इस देश में श्रम के बाजार में बढ़ौतरी हो। सब नौजवानो को काम मिले जिससे वो अपने और अपने माँ-बाप के सपनो को पूरा कर सकें। हम ओवर टाइम के कानूनो में बदलाव करना चाहते हैं। दुगना ओवर-टाइम की शर्त गलत शर्त है। क्या किसी मजदूर को इसका हक नही है की वो अपने मालिक के सामने खड़ा होकर अपनी मजदूरी तय कर सके। मैं कहता हूँ की उसको इसका पूरा हक है। क्या उसे हक नही है की वो ये कह सके की वो कितनी देर तक ओवर-टाइम करना चाहता है। मैं कहता हूँ की पूरा हक है। हर मजदूर, हर नौजवान को इस बात का हक है की नही की वो मालिक की आँखों में आँखे डालकर कह सके की वो इतनी देर ओवर-टाइम करेगा और उसके लिए इतनी मजदूरी लेगा। अगर वो नौकरी छोड़ना चाहता है तो उसे इसका पूरा हक है। वो किसी का बंधुआ मजदूर नही है। फिर उस पर एक महीने के नोटिस का प्रतिबंध क्यों है। हम इस प्रतिबंध को समाप्त कर रहे हैं। ये कानून पास होने के बाद हर नौजवान गर्व से अपने नौकरी दाताओं को कह सकेगा की उसे क्या चाहिए।
उसे शरीर में झुरझुरी महसूस हुई। उसे एक नए माहौल का अहसास हुआ। आत्म सम्मान के अतिरेक में उसे रात को देर से नींद आई।
टीवी पर संसद का सीधा प्रसारण हो रहा था। सरकार बिल पेश करने की कोशिश कर रही थी। परन्तु विपक्ष उसे हंगामा करके रोक रहा था। उसके मन में जितनी गलियां याद थी वो सारी की सारी विपक्ष को दे चूका था। आखिर सरकार बिल को पेश करने और बिना बहस के पास कराने में कामयाब हो गयी। उसने चैन की साँस ली। एक अजीब सा संतोष उसके चेहरे पर झलक रहा था।
अगले दिन ड्यूटी के दौरान उसका आत्म विश्वास बढ़ा हुआ था। शाम को ड्यूटी खत्म होने के समय उसे मैनेजर के कार्यालय में बुलाया गया। वहां बाकि के 25-30 लोग भी मौजूद थे। मैनेजर ने कहा की कल से ड्यूटी 12 घंटे की होगी। और ओवर-टाइम भी सिंगल रेट से दिया जायेगा।
उसने आगे बढ़कर कहा की पहले दुगना ओवर-टाइम मिलता था। हम तो अब उस पर भी काम करने को तैयार नही हैं। आपको हमारे साथ बात करके रेट तय करना होगा। मैनेजर और उसके साथ बैठे दो-तीन लोग जोर से हँसे। " लगता है भाषण सुन कर आया है समझ कर नही। "
" ठीक है, अब दुगने ओवर-टाइम का कानून तो है नही। अब हम सिंगल से ज्यादा नही देंगे। जिसको मंजूर नही हो वो कैश काउन्टर पर जाकर अपना हिसाब ले ले। "
आप इस तरह बिना नोटिस दिए अचानक कैसे नौकरी से निकाल सकते हो। उसने अधिकार से कहा।
" तुम्हे मालूम नही की एक महीने का नोटिस पीरियड खत्म कर दिया गया है। " मैनेजर ने मुस्कुराते हुए कहा।
वह बाहर निकल आया। उसे प्रधानमंत्री का भाषण याद आ रहा था, " क्या किसी नौजवान को हक नही की -----------" और उसे रोना आ गया।
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