गप्पी -- कुछ लोगों का ये उम्दा ख्याल है की हर तनाव का रास्ता बातचीत से ही निकलता है। जो जो लोग इस बात में यकीन करते हैं उन्हें अब अपने विचार बदल लेने चाहियें। मेरा मतलब भारत - पाक बातचीत से है। जितना तनाव बातचीत होने को लेकर पैदा हो गया है उतना तो तब भी नही था जब बातचीत नही हो रही थी। लोग इस बात का जोड़-घटा कर रहे हैं की ये बातचीत तनाव कम करने के लिए है या बढ़ाने के लिए।
भारत-पाक वार्ता पर पहले बीजेपी का ये मत था की गोलीबारी और बातचीत दोनों साथ-साथ नही चल सकती। उस समय लोग कह रहे थे की गोलीबारी बंद करने को लेकर भी तो बातचीत ही करनी पड़ेगी। लेकिन बीजेपी नही मानी। उसने साफ कह दिया की जब तक पाक आतंकवाद को समर्थन करता रहेगा तब तक उसके साथ कोई बातचीत नही हो सकती। उसने किसी शरारती बच्चे की तरह कूद-कूद कर आसमान सिर पर उठा लिया। लोगों ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन बीजेपी नही मानी। एक बार तो ऐसा समय आ गया की अगर कोई पाकिस्तान से बातचीत करने के बारे में एक शब्द भी मुंह से निकाल दे उसे गद्दार घोषित कर दिया जाता। हमारे देश में देशभक्ति का केवल एक ही मापदण्ड बाकि बचा, वो था पाकिस्तान को गालियां देना। हमारे आसपास में ऐसे लोगों की तादाद बहुत बड़ी हो गयी थी जो ये कहते थे की एकबार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन जाएँ, उसके बाद पाकिस्तान एक गोली नही चला सकता। बाद में 56 इंच के सीने और इस तरह की दूसरी कहावतों को भी पाकिस्तान के साथ जोड़ दिया।
समय ने पलटी मारी। वही नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हो गए। उन्होंने पहले ही दिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बुला लिया।
भक्तों ने बहुत वाह-वाह की। देखा इसको कहते हैं असली विदेश नीति।
फिर सीमा पर गोलियों का सिलसिला चला। बीजेपी ने कहा की हम पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दे रहे हैं। पहले नही दिया जाता था।
भक्तों ने फिर वाह-वाह की। देखो हमारी ताकत।
फिर भारत पाक के सुरक्षा सलाहकारों की मीटिंग तय हुई। हर बार की तरह पाकिस्तान ने कश्मीरी हुरियत के नेताओं को बातचीत के लिए बुला लिया।
भारत सरकार ने ये कहते हुए बातचीत रद्द कर दी की हुरियत से बातचीत हमे मंजूर नही।
भक्तों ने फिर वाह-वाह की। देखा मजबूत विदेश नीति। पहले ये कहां थी।
भारत सरकार ने स्पष्ट घोषणा कर दी की जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन करता रहेगा उससे कोई बात नही होगी।
उसके बाद कई मौके आये जिसमे हमारे प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शामिल रहे लेकिन इस तरह जैसे कोई जानपहचान ही नही हो।
भक्त खुश थे।
अचानक खबर आई की उफ़ा में दोनों देशों के प्रधानमंत्री बातचीत करेंगे। पाकिस्तान ने कहा की बातचीत का न्योता भारत की तरफ से आया है। भारत सरकार ने इसका खंडन नही किया।
भक्तों को थोड़ी परेशानी हुई।
दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों की बातचीत का दिन तय हो गया। कई लोगों ने कहा की अंतरराष्ट्रीय दबाव है। भक्तों को फिर थोड़ी सी परेशानी हुई।
उसके बाद इस सरकार आने के बाद के सबसे बड़े आतंकवादी हमले हुए। सीमापर गोलियों की रफ़्तार तेज हो गयी। पाकिस्तान ने फिर हुरियत को बातचीत के लिए बुला लिया। लेकिन भारत सरकार ने कहा की बातचीत तय समय पर होगी।
अब भक्तों को जवाब नही सूझ रहा था। नरेंद्र मोदी की सरकार और अंतरराष्ट्रीय दबाव ! ये कैसे हो सकता है। अब तक तो हम नेहरू पर अंतरराष्ट्रीय दबाव में आने के आरोप लगाते रहे थे। अब वही ----
अब लोगों ने कहा की बातचीत रद्द कर दो। इन हालात में कोई सार्थक बातचीत सम्भव नही है, लेकिन सरकार ने कहा की आतंकवाद पर ही तो बातचीत होगी। और पाकिस्तान हुरियत से बातचीत के बाद मिल ले, बस पहले ना मिले।
पर पाकिस्तान अड़ गया की पहले मिलेगा। सरकार ने बातचीत रद्द करने की घोषणा नही की।
अब भक्त दूसरे रस्ते से जाने लगे।
अब सरकार ने कहा की पाकिस्तान को पुख्ता सबूत देंगे। लोगों ने कहा की पहले भी दिए हैं। पाकिस्तान कह रहा है की जब तुम अपनी अदालतों में आतंकवादी कार्यवाहियों के जो सबूत दे रहे हो उन्हें अदालतें नही मान रही और समझौता एक्सप्रेस से लेकर मालेगांव धमाकों तक सभी आरोपियों की जमानत हो रही है तो हमारे लिए पुख्ता सबूत कहाँ से लाओगे।
सरकार कह रही है की ये हमारा अंदरुनी मामला है। और हमारी अदालतें स्वतंत्र हैं वो कानून के हिसाब से फैसला करती हैं। पाकिस्तान कहता है की हमारी अदालतें भी स्वतंत्र हैं। बहस है की चल रही है। बातचीत नही हो रही लेकिन बहस हो रही है। कुछ लोगों का मत है की दोनों देशों की मंशा केवल बहस की है और बातचीत कोई नही चाहता।
मैंने एक भक्त से इस बारे में पूछना चाहा तो उसने कहा की छोडो ना यार, अपने को क्या मतलब है।
खबरी -- जब मुखौटे चेहरों से ज्यादा प्रभावशाली हो जाएँ तो कोई बातचीत काम नही करती।
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