Friday, August 14, 2015

Vyang -- संसद की कार्यवाही कैसी होनी चाहिए ?

गप्पी -- हमारे देश में इस समय एक बड़ी बहस चल रही है। ये बहस है संसद की कार्यवाही को लेकर। इस बहस में पूरा देश शामिल है। जिस आदमी को ये नही मालूम की सोसायटी में रस्ते पर कूड़ा नही डालना चाहिए वो भी इस पर सुझाव दे रहा है की संसद की कार्यवाही कैसी होनी चाहिए। वो लोग जिन्हे ये नही समझ में आता की बाइक पर हेलमेट लगाना क्यों जरूरी है बता रहे हैं की देश की बहुत बदनामी हो गयी। हालत हास्यास्पद हो गयी है। मैं एक ट्रैन में जा रहा था जिसमे पंद्रह-बीस नौजवान भी यात्रा कर रहे थे। सबके सब पीछे कमर पर बैग लटकाये हुए थे और मोबाईल पर गेम खेल रहे थे। लेकिन सबके सब संसद की कार्यवाही ना चलने पर दुखी भी थे और गुस्से में भी थे। वो पुरे विपक्ष को कोस रहे थे। कार्पोरेट मीडिया का तिलस्मी प्रभाव पूरे जोर पर था। बहस बहुत देर चलती रही। अचानक एक जवान ने कहा " यार ये जो राज्य सभा है ये कौनसे राज्य की है। सारी  प्रॉब्लम तो इसी में है। "
         " पता नही यार। रोज तो एक राज्य बनता है। परन्तु मेरे ख्याल से तेलंगाना की होगी, वो ही बना है लास्ट में। " दूसरे ने कहा
        " लेकिन कुछ भी हो, मैं तो कहता हूँ की ये होनी ही नही चाहिए। " दूसरे ने कहा।
        " मैं तो कहता हूँ की ऐसा कानून बना देना चाहिए की कम से कम बीस बिल तो पास करना जरूरी होगा। वरना किसी भी सांसद को कोई वेतन नही मिलेगा। " दूसरे ने जोर देकर कहा।
         " बिलकुल सही बात है। काम नही तो वेतन नही। " लगभग सभी सहमत थे।
         " मैं बताता हूँ इसका परमानेंट इलाज। संसद में ठेका सिस्टम लागु कर देना चाहिए। एक बिल पास करने का दस हजार। वरना कोई पैसा नही। फिर देखो कैसे पास नही होते बिल। " एक नौजवान ने अतिरिक्त उत्साह से कहा। बाकि सबने इस पर तालियाँ बजाई।
           हमारे देश का भविष्य लोकतंत्र को ठेके पर देने पर विचार कर रहा था।
          मैं ट्रेन से उतर कर आगे गया तो रस्ते में एक मिल के खण्डहर आते हैं। ये मिल सालों पहले बंद हो चुकी है यहां शहर के कुछ आवारा लड़के जुआ इत्यादि खेलते हैं। आज वो सब बैठे हुए थे। खेल नही रहे थे। मैं वहां से गुजरा तो उनमे से एक ने मुझे आवाज दी। मैं रुका।
          " अंकल ये संसद क्यों नही चल रही ? इस तरह तो देश का सत्यानाश हो जायेगा। " एक लड़के ने कहा।
          मैं आश्वस्त हो गया भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के प्रति। अब कोई खतरा नही है। पहले हम इस लोकतंत्र की रक्षा की उम्मीद छात्रों, बुद्धिजीवियों, मजदूरों , किसानो और जनसंगठनों से करते थे। अब इसकी जिम्मेदारी जुआरियों ने उठा ली है।
             घर आया तो टीवी पर खबर चल रही थी की देश के उद्योगपतियों ने हस्ताक्षर अभियान चलाकर सांसदों से संसद की कार्यवाही चलने देने की मांग की है। मैं पुछना चाहता था की क्या इनमे वो उद्योगपति भी शामिल हैं जो बैंको का चार लाख करोड़ रुपया खा कर बैठे हैं। या वो उद्योगपति जो उन पर बकाया लाखों करोड़ रुपया टैक्स बाप का माल समझ कर हड़प कर गए।  वो भी शामिल हैं क्या, जो लोग देश के बैंको को फेल होने के कगार पर पहुंचाने के लिए जिम्मेदार हैं। उनको  देशभक्ति का दौरा पड़ा है।
            आगे खबर आई की मशहूर रेल इंजीनियर श्रीधरन ने उच्चतम न्यायालय में याचिका देर करके मांग की है की उच्चतम न्यायालय संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने के लिए हस्तक्षेप करे। मुझे लगा की श्रीधरन संसद और मेट्रो रेल में फर्क नही कर पा रहे हैं। उन्हें पहले भरतीय रेल को सुचारू रूप से चलाने पर ध्यान देना चाहिए और संसद को सांसदों के भरोसे छोड़ देना चाहिए।
              मुझे लगा की देश का कॉर्पोरेट मीडिया और उसके विशेषज्ञ जैसी कार्यवाही चाहते हैं वो इस तरह की होगी।
                सदन के अध्यक्ष सदन में प्रवेश करते हैं। सभी सांसद खड़े हो जाते हैं। अध्यक्ष बैठ जाते हैं तो सभी बैठ जाते हैं। अध्यक्ष पिछले दिन हुई दुर्घटना के मृतकों को श्रद्धांजलि का प्रस्ताव पढ़ते हैं फिर पूरा सदन खड़े होकर मौन धारण करता है। उसके बाद विपक्ष के चार पांच सदस्य खड़े होकर कहते हैं की उन्होंने कार्यस्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया है। अध्यक्ष कहते हैं की उन्हें नोटिस मिले हैं लेकिन वो उनको ख़ारिज करते हैं। विपक्ष के सदस्य अध्यक्ष का धन्यवाद करके वापिस बैठ जाते हैं। फिर संसदीय कार्य मंत्री खड़े होकर कहते हैं की सरकार का विचार है की कई दिन से विपक्ष के सदस्यों को बोलने का मौका नही दिया गया इसलिए आज का प्रस्ताव मान लिया जाये।
               अध्यक्ष प्रस्ताव स्वीकार कर लेते हैं।
                विपक्ष के नेता कहते हैं की अख़बारों में खबर छपी है की सरकार द्वारा विदेशी कम्पनी को दिए गए ठेके में भृष्टाचार हुआ है। और उसमे सत्ताधारी पार्टी के एक राज्य के मुख्यमंत्री का बेटा और वित्तमंत्री की बेटी दोनों शामिल हैं।
                  अध्यक्ष कहते हैं की अख़बार में छपी खबर के हिसाब से आरोप नही लगाये जा सकते।
                  विपक्ष के नेता माफ़ी मांगते हैं और कहते हैं की अगर जाँच हो जाये तो क्या हर्ज है ?
                  अध्यक्ष कहते हैं की सदन में किसी मुख्यमंत्री का नाम नही लिया जा सकता।
                  विपक्ष के नेता फिर माफ़ी मांगते हैं और कहते हैं की वित्तमंत्री की बेटी उसी कम्पनी में काम करती है जिस कम्पनी को ठेका दिया गया है।
                  वित्त मंत्री खड़े होकर कहते हैं की जिन लोगों ने ठेके के कागज पर दस्तखत किये हैं उनमे उनकी बेटी शामिल नही है इसलिए सरकार सारे आरोपों को ख़ारिज करती है। सत्तापक्ष के लोग जोर जोर से मेज थपथपाते हैं। सरकार जाँच करवाने के लिए भी तैयार है लेकिन विपक्ष उसके लिए वो सारे सबूत लेकर आये। अगर विपक्ष सबूत लेकर आता है तो सरकार उन सबूतों की जाँच करवाने के लिए तैयार है। चर्चा समाप्त हो जाती है।
                    उसके बाद सरकार ताजमहल को बेचने का बिल पेश करती है
                    विपक्ष के लोग कहते हैं की ताजमहल नही बेचा जा सकता।
                    मंत्री कहते हैं की सरकार कुछ भी कर सकती है। और कि तुम चुनाव हार गए हो इसलिए तुम्हे बोलने का कोई अधिकार नही है।
                      बिल पास हो जाता है।
 कॉर्पोरेट मीडिया खबर देता है की आज सदन में 105 % काम हुआ। और जो खर्च संसद पर हुआ उसका पूरा उपयोग हुआ।
                           पूरा देश इस पर संतोष व्यक्त करता है।

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