एक बात बहुत ही हास्यास्पद लगती है, और इसका कोई दूसरा लॉजिक कभी भी मेरी समझ में नही आया। प्राईवेट कंपनियां और कॉर्पोरेट जगत हमेशा पब्लिक सेक्टर के उद्योगों के निजीकरण की मांग करता है। इसके लिए वो तरह तरह के तर्क-कुतर्क करता है। परन्तु क्या हमारे देश में नए उद्योग लगाने पर पाबंदी है। जब कोई भी उद्योगपति नया उद्योग लगा सकता है तो उसे पब्लिक सेक्टर के उद्योग ही क्यों चाहिए ?
लेकिन उसे पब्लिक सेक्टर के उद्योग ही चाहियें। क्योंकि ये उद्योग उसे कोडियों के भाव चाहियें। जनता के पैसे से बनाई गयी और जनता के पसीने से सींची गयी कंपनियां चाहियें मुफ्त के भाव। जब भी किसी सरकारी उद्योग का निजीकरण किया जाता है तो उसकी सही कीमत निकालने का नाटक किया जाता है। उसके लिए विशेषज्ञों की टीम बनाई जाती है। इस टीम में निजी रेटिंग एजेंसियों के लोग होते हैं जो उसकी कीमत इतनी कम लगाते हैं की वो उसकी सही कीमत के आसपास भी नही बैठती। इस सारे फर्जीवाड़े को बड़े शानदार ढंग से अंजाम दे दिया जाता है। सरकार और कम्पनी खरीदने वालों के बयान आते हैं की पूरी कीमत दी गयी है। अब साबित करते रहो की कीमत पूरी नही है। जब सरकार खुद चोर के साथ मिली हुई हो तो चोरी साबित करना बहुत मुश्किल होता है। सेंटूर होटल जैसे उदाहरण हमारे सामने हैं।
दूसरा कारण जो पब्लिक सेक्टर की कम्पनियों को खरीदने के लिए होता है वो है उस क्षेत्र से सरकारी प्रतियोगिता का समाप्त हो जाना और एकाधिकार कायम करना। पहले हमारे देश में एक MRTP एक्ट होता था जो किसी भी क्षेत्र में एकाधिकार को रोकने के लिए कदम उठाता था। अब उसे भी खत्म कर दिया गया। रेशा बनाने वाली इकलोती पब्लिक सेक्टर की कम्पनी IPCL को उसके ही प्रतिद्वंदी रिलायंस को बेच दिया गया। अब इस क्षेत्र में रिलायंस का लगभग एकाधिकार है। जो दूसरे छोटे खिलाडी हैं भी तो उन्हें हर मामले में रिलायंस का अनुकरण करना पड़ता है।
भारतीय कॉर्पोरेट सेक्टर लगभग हमेशा ही करों में हेराफेरी और कानून कायदों के दुरूपयोग के भरोसे रहा है। वह ईमानदारी से कोई उद्यम स्थापित करने और चलाने के बजाय सरकारी सम्पत्ति के लूट पर नजरें गड़ाए रहता है। इस निजी क्षेत्र को पब्लिक सेक्टर से ज्यादा कुशल और ज्यादा योग्य माना जाता है। लेकिन आज यही सेक्टर है जो थोड़ी सी प्रतिकूल बाजार अवस्था होते ही बैंकों के लोन की पेमेंट नही कर रहा है। लाखों के टैक्स बाकि के केसों को अदालती प्रावधानों का दुरूपयोग करके लटकाए हुए है। और इसमें उसे सरकार का पूरा सहयोग हासिल है। करीब 250000 कारखाने बंद कर चूका है और अब भी ज्यादा कुशल कहलाता है। अगर ये सेक्टर इतना ही कुशल है और पूरी कीमत देकर पब्लिक प्रॉपर्टी को खरीदना चाहता है तो उसे नए उद्योग लगाने चाहियें, इससे देश में निवेश भी बढ़ेगा और रोजगार और उत्पादन भी बढ़ेगा।
लेकिन उसे पब्लिक सेक्टर के उद्योग ही चाहियें। क्योंकि ये उद्योग उसे कोडियों के भाव चाहियें। जनता के पैसे से बनाई गयी और जनता के पसीने से सींची गयी कंपनियां चाहियें मुफ्त के भाव। जब भी किसी सरकारी उद्योग का निजीकरण किया जाता है तो उसकी सही कीमत निकालने का नाटक किया जाता है। उसके लिए विशेषज्ञों की टीम बनाई जाती है। इस टीम में निजी रेटिंग एजेंसियों के लोग होते हैं जो उसकी कीमत इतनी कम लगाते हैं की वो उसकी सही कीमत के आसपास भी नही बैठती। इस सारे फर्जीवाड़े को बड़े शानदार ढंग से अंजाम दे दिया जाता है। सरकार और कम्पनी खरीदने वालों के बयान आते हैं की पूरी कीमत दी गयी है। अब साबित करते रहो की कीमत पूरी नही है। जब सरकार खुद चोर के साथ मिली हुई हो तो चोरी साबित करना बहुत मुश्किल होता है। सेंटूर होटल जैसे उदाहरण हमारे सामने हैं।
दूसरा कारण जो पब्लिक सेक्टर की कम्पनियों को खरीदने के लिए होता है वो है उस क्षेत्र से सरकारी प्रतियोगिता का समाप्त हो जाना और एकाधिकार कायम करना। पहले हमारे देश में एक MRTP एक्ट होता था जो किसी भी क्षेत्र में एकाधिकार को रोकने के लिए कदम उठाता था। अब उसे भी खत्म कर दिया गया। रेशा बनाने वाली इकलोती पब्लिक सेक्टर की कम्पनी IPCL को उसके ही प्रतिद्वंदी रिलायंस को बेच दिया गया। अब इस क्षेत्र में रिलायंस का लगभग एकाधिकार है। जो दूसरे छोटे खिलाडी हैं भी तो उन्हें हर मामले में रिलायंस का अनुकरण करना पड़ता है।
भारतीय कॉर्पोरेट सेक्टर लगभग हमेशा ही करों में हेराफेरी और कानून कायदों के दुरूपयोग के भरोसे रहा है। वह ईमानदारी से कोई उद्यम स्थापित करने और चलाने के बजाय सरकारी सम्पत्ति के लूट पर नजरें गड़ाए रहता है। इस निजी क्षेत्र को पब्लिक सेक्टर से ज्यादा कुशल और ज्यादा योग्य माना जाता है। लेकिन आज यही सेक्टर है जो थोड़ी सी प्रतिकूल बाजार अवस्था होते ही बैंकों के लोन की पेमेंट नही कर रहा है। लाखों के टैक्स बाकि के केसों को अदालती प्रावधानों का दुरूपयोग करके लटकाए हुए है। और इसमें उसे सरकार का पूरा सहयोग हासिल है। करीब 250000 कारखाने बंद कर चूका है और अब भी ज्यादा कुशल कहलाता है। अगर ये सेक्टर इतना ही कुशल है और पूरी कीमत देकर पब्लिक प्रॉपर्टी को खरीदना चाहता है तो उसे नए उद्योग लगाने चाहियें, इससे देश में निवेश भी बढ़ेगा और रोजगार और उत्पादन भी बढ़ेगा।
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