गप्पी -- स्वतन्त्रता दिवस की पूर्ण संध्या पर महामहिम राष्ट्रपति ने देश को सम्बोधित किया। उनके भाषण के तुरंत बाद मोदीजी ने ट्वीट करके कह दिया की भाषण दूरदर्शी नही था। मोदीजी को मालूम था की ये एक भाषण था, अभिभाषण नही था। अभिभाषण वो होता है जो सरकार लिख कर देती है और राष्ट्रपति महोदय केवल पढ़ देते हैं। जैसे संसद सत्र के शुरू में होता है। सो मोदीजी ने इसे अदूरदर्शी करार दे दिया।
वैसे मुझे भी ये दूरदर्शी नही लगा। कारण एकदम साफ है। राष्ट्रपति भवन से संसद भवन की दूरी है ही कितनी। राष्ट्रपति महोदय राष्ट्रपति भवन में खड़े होकर संसद भवन की तरफ देख रहे थे। उन्हें संसद में बना हुआ अखाडा दिखाई दे रहा था। जो इतने निकट की चीज देखता हो उसे दूरदर्शी कैसे मान लिया जाये।
अगले दिन लालकिले से प्रधानमंत्री का भाषण था। मेरे एक पड़ौसी सुबह सुबह नहा-धोकर मेरे पास आकर बैठ गए। सबकी तरह उन्हें और मुझे भी प्रधानमंत्री के दूरदर्शी भाषण का इंतजार था। भाषण शुरू हुआ। उसमे प्रधानमंत्री ने एक सचमुच दूरदर्शी भाषण दिया। उन्होंने अपने भाषण में कहा की जातिवाद और साम्प्रदायिकता को बर्दाश्त नही किया जा सकता। तब भी प्रधानमंत्री ने अपने आसपास बैठे बाबाओं और साध्विओं को नही देखा जो लगातार जहर उगल रहे हैं। इनमे उनके साथी सांसद भी शामिल हैं। लेकिन वो लोग इतने निकट हैं की दूरदर्शी प्रधानमंत्री को दिखाई नही दिए। ठीक उसी तरह जैसे उन्हें संसद नही दिखाई दे रही थी और UAE दिखाई दे रहा था।
कई लोग उनसे वन रैंक-वन पेंशन पर किसी घोषणा की उम्मीद कर रहे थे। उनके नजदीक में ही कई दिनों से पूर्व सैनिक प्रदर्शन कर रहे थे। लेकिन पूर्व सैनिकों से यही गलती हो गयी। उन्हें दूरदर्शी प्रधानमंत्री के इतने नजदीक प्रदर्शन नही करना चाहिए था। इतनी नजदीक की चीजें उन्हें कहां दिखाई देती हैं। हमारे यहां एक पुरानी कहावत है की पहाड़ पर जलती हुई आग तो दिखाई देती है पर पैरों के नीचे जलती हुई आग दिखाई नही देती। इसलिए मेरा एक छोटा सा सुझाव है पूर्व सैनिकों को की यदि वो चाहते हैं की प्रधानमंत्री को उनकी समस्या दिखाई दे तो उनको अमेरिका के मैडिसन स्कवेयर में प्रदर्शन करना चाहिए। वो उन्हें जरूर दिखाई देगा।
उसके बाद प्रधानमंत्री सीधे भृष्टाचार पर आये। उन्होंने कहा की पंद्रह महीने के शासन में उनकी सरकार पर एक पैसे के भृष्टाचार का आरोप नही है। मेरे पड़ौसी को तो ये सुनते की हंसी का ऐसा दौरा पड़ा की वो पेट पकड़ कर सोफे से नीचे लुढ़क गए। हमने बड़ी मुश्किल से उन्हें इसी हालत में घर पहुंचाया। वहां भी वो बिस्तर पर पेट पकड़ कर दोहरे हुए जा रहे थे। उनकी हालत में जब कोई सुधार नही हुआ तो मैं उन्हें वैसे ही छोड़कर वापिस आ गया। मुझे समझ नही आया की इसमें प्रधानमंत्री ने कौनसी गलत बात कह दी। उन्हें अगर शुषमा स्वराज, शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे नही दिखाई दे रहे थे तो इसमें उनका क्या कसूर है। उन्हें नजदीक की चीजें कहां दिखाई देती हैं। एक दूरदर्शी प्रधानमंत्री को तो केवल दूर की चीजें ही दिखाई देंगी न।
उसके बाद प्रधानमंत्री अपने वायदों पर आ गए। उन्होंने कहा की हमने अपने सभी वायदे पूरे कर दिए। मैंने सोचा की अच्छा हुआ मेरे पड़ौसी पहले ही चले गए वरना पड़ोस में उलाहना हो जाता। ये बात सुनकर उनका जो हाल हुआ होता उसके बाद मैं उसके घर वालों को क्या जवाब देता। अब प्रधानमंत्री ने जो भी वायदे किये थे वो केवल पंद्रह महीने पहले ही तो किये थे। इतने नजदीक के वायदे उन्हें कैसे दिखाई देते। लोग है की इस तकनीकी समस्या को समझ ही नही पा रहे हैं। एक इतने दूरदर्शी नेता जिन्हे पंद्रह महीनो में अपना देश ही नही दिखाई दिया और बाकि दुनिया के नक्शे पर जितने देश हैं सब दिखाई दे रहे हैं उनसे इतने नजदीक के वायदों को देखने की उम्मीद करना कहां तक सही है। उन्हें दस दिन पहले पीडीपी के बारे में क्या कहा था और बाद में क्या कहा, दस दिन पहले एनसीपी के बारे में क्या कहा था और सीटें कम पड़ते ही क्या कहने लगे, और तो और वो हररोज परिवार वाद को कोसते हैं लेकिन अपने पास बैठे प्रकाश सिंह बादल, उद्धव ठाकरे, रामबिलास पासवान, रमन सिंह इत्यादि का परिवारवाद कभी दिखाई दिया। नही ना। तो इसमें उनका कोई दोष नही है। वो इतने दूरदर्शी हैं की उनको नजदीक की चीजें दिखाई नही देती।
शाम को मैं अपने पड़ौसी का हालचाल जानने उसके घर गया। पहले तो वो मुझे देखते ही बहुत देर तक हँसा फिर थोड़ा संयत होकर बोला भाई साब क्या मोदीजी ने कोई और चुलकुला सुनाया। मुझे तो मालूम ही नही था की मोदीजी की सेंस ऑफ ह्यूमर इतनी अच्छी है। अब मैं क्या जवाब देता।
खबरी -- ये बात तो ठीक है लेकिन जब लोग आपके भाषणो को चुटकुला समझना शुरू कर दें तो आपको सावधान हो जाना चाहिए।
वैसे मुझे भी ये दूरदर्शी नही लगा। कारण एकदम साफ है। राष्ट्रपति भवन से संसद भवन की दूरी है ही कितनी। राष्ट्रपति महोदय राष्ट्रपति भवन में खड़े होकर संसद भवन की तरफ देख रहे थे। उन्हें संसद में बना हुआ अखाडा दिखाई दे रहा था। जो इतने निकट की चीज देखता हो उसे दूरदर्शी कैसे मान लिया जाये।
अगले दिन लालकिले से प्रधानमंत्री का भाषण था। मेरे एक पड़ौसी सुबह सुबह नहा-धोकर मेरे पास आकर बैठ गए। सबकी तरह उन्हें और मुझे भी प्रधानमंत्री के दूरदर्शी भाषण का इंतजार था। भाषण शुरू हुआ। उसमे प्रधानमंत्री ने एक सचमुच दूरदर्शी भाषण दिया। उन्होंने अपने भाषण में कहा की जातिवाद और साम्प्रदायिकता को बर्दाश्त नही किया जा सकता। तब भी प्रधानमंत्री ने अपने आसपास बैठे बाबाओं और साध्विओं को नही देखा जो लगातार जहर उगल रहे हैं। इनमे उनके साथी सांसद भी शामिल हैं। लेकिन वो लोग इतने निकट हैं की दूरदर्शी प्रधानमंत्री को दिखाई नही दिए। ठीक उसी तरह जैसे उन्हें संसद नही दिखाई दे रही थी और UAE दिखाई दे रहा था।
कई लोग उनसे वन रैंक-वन पेंशन पर किसी घोषणा की उम्मीद कर रहे थे। उनके नजदीक में ही कई दिनों से पूर्व सैनिक प्रदर्शन कर रहे थे। लेकिन पूर्व सैनिकों से यही गलती हो गयी। उन्हें दूरदर्शी प्रधानमंत्री के इतने नजदीक प्रदर्शन नही करना चाहिए था। इतनी नजदीक की चीजें उन्हें कहां दिखाई देती हैं। हमारे यहां एक पुरानी कहावत है की पहाड़ पर जलती हुई आग तो दिखाई देती है पर पैरों के नीचे जलती हुई आग दिखाई नही देती। इसलिए मेरा एक छोटा सा सुझाव है पूर्व सैनिकों को की यदि वो चाहते हैं की प्रधानमंत्री को उनकी समस्या दिखाई दे तो उनको अमेरिका के मैडिसन स्कवेयर में प्रदर्शन करना चाहिए। वो उन्हें जरूर दिखाई देगा।
उसके बाद प्रधानमंत्री सीधे भृष्टाचार पर आये। उन्होंने कहा की पंद्रह महीने के शासन में उनकी सरकार पर एक पैसे के भृष्टाचार का आरोप नही है। मेरे पड़ौसी को तो ये सुनते की हंसी का ऐसा दौरा पड़ा की वो पेट पकड़ कर सोफे से नीचे लुढ़क गए। हमने बड़ी मुश्किल से उन्हें इसी हालत में घर पहुंचाया। वहां भी वो बिस्तर पर पेट पकड़ कर दोहरे हुए जा रहे थे। उनकी हालत में जब कोई सुधार नही हुआ तो मैं उन्हें वैसे ही छोड़कर वापिस आ गया। मुझे समझ नही आया की इसमें प्रधानमंत्री ने कौनसी गलत बात कह दी। उन्हें अगर शुषमा स्वराज, शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे नही दिखाई दे रहे थे तो इसमें उनका क्या कसूर है। उन्हें नजदीक की चीजें कहां दिखाई देती हैं। एक दूरदर्शी प्रधानमंत्री को तो केवल दूर की चीजें ही दिखाई देंगी न।
उसके बाद प्रधानमंत्री अपने वायदों पर आ गए। उन्होंने कहा की हमने अपने सभी वायदे पूरे कर दिए। मैंने सोचा की अच्छा हुआ मेरे पड़ौसी पहले ही चले गए वरना पड़ोस में उलाहना हो जाता। ये बात सुनकर उनका जो हाल हुआ होता उसके बाद मैं उसके घर वालों को क्या जवाब देता। अब प्रधानमंत्री ने जो भी वायदे किये थे वो केवल पंद्रह महीने पहले ही तो किये थे। इतने नजदीक के वायदे उन्हें कैसे दिखाई देते। लोग है की इस तकनीकी समस्या को समझ ही नही पा रहे हैं। एक इतने दूरदर्शी नेता जिन्हे पंद्रह महीनो में अपना देश ही नही दिखाई दिया और बाकि दुनिया के नक्शे पर जितने देश हैं सब दिखाई दे रहे हैं उनसे इतने नजदीक के वायदों को देखने की उम्मीद करना कहां तक सही है। उन्हें दस दिन पहले पीडीपी के बारे में क्या कहा था और बाद में क्या कहा, दस दिन पहले एनसीपी के बारे में क्या कहा था और सीटें कम पड़ते ही क्या कहने लगे, और तो और वो हररोज परिवार वाद को कोसते हैं लेकिन अपने पास बैठे प्रकाश सिंह बादल, उद्धव ठाकरे, रामबिलास पासवान, रमन सिंह इत्यादि का परिवारवाद कभी दिखाई दिया। नही ना। तो इसमें उनका कोई दोष नही है। वो इतने दूरदर्शी हैं की उनको नजदीक की चीजें दिखाई नही देती।
शाम को मैं अपने पड़ौसी का हालचाल जानने उसके घर गया। पहले तो वो मुझे देखते ही बहुत देर तक हँसा फिर थोड़ा संयत होकर बोला भाई साब क्या मोदीजी ने कोई और चुलकुला सुनाया। मुझे तो मालूम ही नही था की मोदीजी की सेंस ऑफ ह्यूमर इतनी अच्छी है। अब मैं क्या जवाब देता।
खबरी -- ये बात तो ठीक है लेकिन जब लोग आपके भाषणो को चुटकुला समझना शुरू कर दें तो आपको सावधान हो जाना चाहिए।
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